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Communal Riots In India: सांप्रदायिकता का साया

संपादकीय ब्लॉग
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sanjay guptराज्यों के पुलिस महानिदेशकों के सम्मेलन में खुफिया ब्यूरो (आइबी) के प्रमुख ने चुनावी साल में देश में बढ़ते सांप्रदायिक तनाव के प्रति जो चेतावनी दी वह आंतरिक सुरक्षा के लिए एक बड़े खतरे का आभास कराने वाली है। पिछले कुछ समय में देश के विभिन्न स्थानों पर छोटी-छोटी बातों को लेकर सांप्रदायिक तनाव और संघर्ष के जैसे मामले देखने को मिले हैं उनसे यह चेतावनी सही जान पड़ती है। चिंता इसलिए और अधिक गहरा रही है, क्योंकि सामाजिक एकता को मजबूती देने के स्थान पर सांप्रदायिक विभाजन को गहराने की कोशिश की जा रही है। इसी कोशिश का नतीजा है कि अक्सर छोटा-मोटा मनमुटाव भी सांप्रदायिक शत्रुता में बदल जाता है। देश को लंबे अर्से से सांप्रदायिक संघर्ष की घटनाओं का सामना करना पड़ रहा है। आजादी के बाद यह अपेक्षा की गई थी कि विभाजन की त्रसदी से उबरकर देश धीरे-धीरे सामाजिक सद्भाव और शांति की दिशा में अग्रसर होगा, लेकिन संकीर्ण स्वार्थो वाली राजनीति के चलते ऐसा हो नहीं सका। कांग्रेस को इसके लिए दोषी ठहरा ही जाएगा कि वह ज्यादातर समय केंद्र और राज्यों की सत्ता में रहने के बावजूद जनता को सही राह नहीं दिखा सकी। उसने सामाजिक सद्भाव वाली बातें अवश्य कीं, लेकिन ऐसे कदम नहीं उठाए जिससे विभिन्न समुदायों, विशेष रूप से हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच खाई न बढ़ती।


पाकिस्तान के निर्माण के समय दोनों समुदायों की एक बड़ी संख्या में आबादी के पलायन के बाद जो मुस्लिम भारत में रह गए उनके मन में कहीं न कहीं यह भाव कायम रहा कि उन्हें सही तरह अपनाया नहीं जा रहा। वह पीढ़ी अब समाप्त सी हो गई है जो विभाजन से सीधे-सीधे प्रभावित हुई थी, लेकिन नई पीढ़ी इतिहास के कुछ स्याह पन्नों से अपने को अलग नहीं कर पा रही है। जहां मुस्लिम समुदाय की नई पीढ़ी का एक हिस्सा गलत इतिहास के दुष्प्रभाव में हिंदुओं के प्रति वैमनस्य का भाव रखता है वहीं हिंदू समुदाय का एक वर्ग इस सच्चाई को स्वीकार नहीं कर पा रहा कि मुस्लिम समाज भारतीय उपमहाद्वीप का अभिन्न अंग है। कई ऐसे हिंदू संगठन हैं जो मुगल कालीन या उसके पहले के इतिहास की आड़ में एक तरह की कट्टरता को भड़काने का काम कर रहे हैं। ऐसे संगठन भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की कल्पना करते हैं। इसके चलते भी मुस्लिम समुदाय खुद को असुरक्षित महसूस करता है। हिंदू संगठन यह भूल रहे हैं कि हिंदू संस्कृति की एक बड़ी विशेषता यही है कि उसने बाहर से आए अलग-अलग मतों, संप्रदायों और वर्गो को खुले दिल से स्वीकार किया है। कुछ संगठनों ने हिंदुत्व को अपने राजनीतिक फायदे के लिए मनमाने तरीके से परिभाषित करने की कोशिश की है, लेकिन उच्चतम न्यायालय अपने फैसले में यह पूरी तरह साफ कर चुका है कि हिंदुत्व एक जीवनशैली है। उसकी तुलना अन्य मतों, पंथों, संप्रदायों आदि से नहीं की जा सकती। बावजूद इसके कुछ राजनीतिक दल हिंदुत्व को गलत तरीके से परिभाषित करते हैं और इसका लाभ उठाकर कुछ अन्य राजनीतिक दल मुस्लिम समाज का ध्रुवीकरण करने की कोशिश करते हैं ताकि उनकी वोट बैंक की राजनीति चलती रहे। मुस्लिम समाज वोट बैंक की इस राजनीति को समझते हुए भी उससे बाहर आने का प्रयास नहीं कर रहा है।

बिल्कुल औरों की तरह भाजपा


ऐसे राजनीतिक दलों की कमी नहीं जो बातें तो मुस्लिम समाज के उत्थान की करते हैं, लेकिन उसे मुख्यधारा में लाने के लिए जैसे कदम उठाने चाहिए उनसे जानबूझकर बचते हैं। इन दलों की ओर से मुस्लिम समुदाय के थोक में वोट हासिल करने के लिए उसके हितों की पैरोकारी इस तरह की जाती है कि बहुसंख्यक समुदाय के बीच यह संदेश जाता है कि मुसलमानों का तुष्टीकरण किया जा रहा है। यह कहने में हर्ज नहीं कि कुछ दलों के पक्षपात भरे रवैये ने सांप्रदायिक सद्भाव के लिए एक गंभीर खतरा उत्पन्न कर दिया है। मुजफ्फरनगर दंगों के संदर्भ में यही स्पष्ट हुआ कि उत्तर प्रदेश सरकार और प्रशासनिक तंत्र के रवैये के कारण ही सांप्रदायिक हिंसा की आग बेकाबू हुई। हत्या की एक घटना के बाद यदि स्थानीय पुलिस ने बिना भेदभाव के कार्रवाई की होती और शासन पक्षपात के संकेत नहीं देता तो स्थिति इतनी अधिक नहीं बिगड़ती। कोई भी यह आसानी से समझ सकता है कि ऐसा वोट बैंक की राजनीति के तहत किया गया। उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी को यह लगता है कि उसके लिए मुस्लिम मत ज्यादा मायने रखते हैं और शायद इसी कारण स्थानीय पुलिस और प्रशासनिक तंत्र पर एकतरफा कार्रवाई के लिए दबाव बनाया गया-बिना इसकी परवाह किए कि इससे दूसरे समुदाय में कितना असंतोष भड़केगा। 1हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच तनाव का एक बड़ा कारण पाकिस्तान का भारत विरोधी रवैया भी है। अब यह पूरी तरह स्पष्ट हो चुका है कि पाकिस्तान भारत के मुस्लिम समाज के कुछ भटके हुए युवाओं को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर रहा है।


ऐसे मुस्लिम युवा पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ के हाथों का खिलौना बनकर आतंकी घटनाओं में लिप्त हो रहे हैं। आइबी प्रमुख ने इस खतरे के प्रति आगाह करते हुए यह रेखांकित भी किया कि इंडियन मुजाहिदीन अभी भी इतना सशक्त है कि वह सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने के लिए देश में कहीं भी आतंकी घटनाएं कर सकता है। यही बात प्रधानमंत्री ने कुछ भिन्न तरीके से कही। भारतीय मुसलमानों को पाकिस्तान की इस नापाक कोशिश के प्रति सचेत रहना चाहिए। उन्हें यह समझना होगा कि उनके बीच के कुछ लोगों को सीमा पार से एक खास मकसद से भड़काया जा रहा है। उन्हें पाकिस्तान की इस कोशिश की जानकारी देश को देनी चाहिए, लेकिन ऐसा होता नहीं है। चूंकि यह बिल्कुल भी नहीं कहा जा सकता कि सरकारों ने मुस्लिम समुदाय को किसी अधिकार से वंचित करने का कोई कदम उठाया है अथवा उन्हें दबाकर रखने की कोशिश की है इसलिए इस समुदाय के किसी भी शख्स के पाकिस्तान के झांसे में आने का कोई औचित्य नहीं। मुस्लिम समुदाय की कुछ जायज शिकायतें और समस्याएं हो सकती हैं। इन शिकायतों और समस्याओं को मिल-बैठकर सुलझाया जा सकता है। इस दिशा में कुछ कामयाबी भी मिली है। सामाजिक सद्भाव के लिए जितना आवश्यक मुस्लिम तुष्टीकरण वाली नीतियों का परित्याग है उतना ही यह भी कि हिंदुत्व के नाम पर लोगों को उकसाने वाली किसी कोशिश को सफल न होने दिया जाए। देश के सभी समुदायों को यह समझना होगा कि राष्ट्रीय एकता के लिए यह अनिवार्य है कि सभी के लिए एक समान नागरिक संहिता बने। भाजपा ने एक समय समान नागरिक संहिता के पक्ष में आवाज बुलंद की थी, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से इस मांग को पंथनिरपेक्षता के खिलाफ चित्रित किया गया। गठबंधन राजनीति के इस दौर में भाजपा ने अपने इस मुद्दे से किनारा करना ही बेहतर समझा। इसमें संदेह है कि राजनीति के मौजूदा स्वरूप में कोई राजनीतिक दल समान नागरिक संहिता के पक्ष में बात करेगा। समान नागरिक संहिता के निर्माण की राह तभी बन सकती है जब सभी धर्मो और वर्गो की अगुआई करने वाले लोग इस मसले पर आम सहमति कायम करें। उन्हें अपने धार्मिक मतभेदों से ऊपर उठकर देश की एकता और अखंडता के लिए समान नागरिक संहिता के निर्माण के लिए राजनीतिक दलों पर दबाव बनाना चाहिए। यह महसूस किया जाना चाहिए कि भारत सरीखे बहुलता वाले देश में ऐसी किसी संहिता की आवश्यकता है।

इस आलेख के लेखक संजय गुप्त हैं


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