Menu
blogid : 133 postid : 651004

बड़ा प्रश्न है सुरक्षा

संपादकीय ब्लॉग
संपादकीय ब्लॉग
  • 422 Posts
  • 640 Comments

nishikant thakurअराजक तत्वों की बढ़ती तादाद पूरे देश के लिए चिंता का विषय बनी हुई है। ये कहीं आतंक के रूप में हैं तो कहीं दबंगों के रूप में और कहीं नक्सलवाद के रूप में। कश्मीर से आंध्र प्रदेश और इधर बिहार से लेकर असम तक आए दिन इनकी धमक सुनाई देती रहती है। अब तक हजारों जानें इनके चलते जा चुकी हैं और बहुत सारे घर बर्बाद हो चुके हैं। इनसे निबटने के लिए पूरे देश की जनता की आस सिर्फ एक जगह टिकी होती है और वे हैं हमारे सुरक्षा बल। मुश्किल यह है कि भारत के लगभग सभी प्रदेशों में पुलिस और अन्य सुरक्षा बलों की स्थिति भी दुरुस्त नहीं है। न केवल भ्रष्टाचार, बल्कि आधुनिक हथियारों की कमी भी इनके लिए एक बड़ा संकट है। एक तरफ तो आतंकवादी अत्याधुनिक हथियारों और अबूझ रणनीति से लैस हैं, दूसरी तरफ हमारे पुलिस बल अभी भी कई प्रदेशों में पुराने ढंग के हथियारों से ही काम चला रहे हैं। संख्याबल तो इनका पहले से ही कम है, जो है उसमें से भी अधिकतर वीआइपी सुरक्षा और कई दूसरे कामों में लगा दिए जाते हैं। इस तरह आम जनता की सुरक्षा भगवान भरोसे होकर रह जाती है। पिछले दिनों बिहार में दो ऐसी घटनाएं घटीं, जिन्होंने आम जनता के मनोबल को हिलाकर रख दिया। इनमें से एक है हाल ही में राजधानी पटना में हुई भाजपा की रैली के दौरान कई जगह विस्फोटक रखे जाने का मामला और दूसरा मामला है औरंगाबाद में हुई नक्सली हिंसा। हालांकि इन दोनों की मामलों की तह तक पहुंचने की पूरी कोशिश की जा रही है, लेकिन इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि अभी तक इन मामलों में पुलिस व सुरक्षा बलों को पूरी सफलता नहीं मिल सकी है। ऐसे मामलों में आम तौर पर इतनी जल्दी कोई सफलता मिल भी नहीं पाती। क्योंकि ऐसे अराजक तत्वों का सिर्फ सूचना तंत्र ही नहीं, बल्कि पुलिस व सुरक्षा बलों को भरमाने का तंत्र भी बहुत मजबूत होता है। ये जानबूझ कर पहले से ही ऐसे उपाय बनाकर रखते हैं, जिससे वे जांच दलों को लंबे समय तक भरमाते रह सकें। इस दौरान वे अपने भाग निकलने के उपाय करते रहते हैं। बिहार और पंजाब जैसे प्रदेशों में आतंकवादियों के लिए यह अधिक आसान इसलिए भी हो जाता है क्योंकि उनसे कई जगहों पर अंतरराष्ट्रीय सीमा सटी हुई हैं। अगर वे एक बार इन जगहों से देश से बाहर भाग निकलने में सफल हो गए तो फिर उन्हें पकड़ना बेहद मुश्किल हो जाता है।

मनमोहन और आडवाणी


बिहार जैसे विपन्न राज्य को नीतीश कुमार की सरकार अब विकसित करने में लगी हुई है। लेकिन, इसके पहले यह लंबे समय तक बुनियादी सुविधाओं के अभाव से ही जूझता रहा है। इतनी जल्दी इसके सभी मामलों में सक्षम हो जाने की उम्मीद की भी नहीं जानी चाहिए। किसी भी प्रदेश में नए आए शासनतंत्र की सबसे पहली प्राथमिकता आम जनता को बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराने की होती है। यह कहने की जरूरत नहीं कि बिहार में सड़क, बिजली, पानी और शिक्षा जैसी सुविधाओं की क्या स्थिति रही है। नतीजा यह हुआ कि बिहार पिछड़ेपन के पर्याय के रूप में देखा जाने लगा था। पिछले सात-आठ वषों में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का पूरा ध्यान इन्हीं मोचोर्ं पर केंद्रित रहा है। बेशक इन क्षेत्रों में उन्होंने काफी काम किया, लेकिन अभी भी वहां बहुत कुछ करना बाकी है। औद्योगीकरण और कृषि विकास की स्थिति अभी भी बिहार में बहुत पिछड़ेपन की है। इस दिशा में कुछ सार्थक उपलब्धि हासिल हो सके, इसके लिए अभी भी बिहार में बहुत काम करने की जरूरत है। नीतीश कुमार इस स्थिति को अच्छी तरह समझते हैं। यही वजह है जो वे बार-बार बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग करते रहे हैं। कई तरफ से लगातार विरोध के बावजूद वे अपनी इस मांग पर डटे रहे हैं और किसी हद तक वे अपने इस मुद्दे पर सफल होते हुए भी दिख रहे हैं। यह बात सभी जानते हैं कि बिहार में औद्योगीकरण की स्थिति क्या है और यह भी कि यह स्थिति सुधरे बगैर वहां बेरोजगारी को कम नहीं किया जा सकता। आज भी बड़ी संख्या में बिहार के युवा दूसरे राज्यों में जाकर काम की तलाश करने के लिए विवश हैं। इसका एक बड़ा कारण बिहार में बार-बार आती रही प्राकृतिक आपदाएं भी हैं। प्राकृतिक आपदाओं से लोगों को बचाने और उनके पुनर्वास की व्यवस्था में प्रदेश सरकार को अपनी बहुत सारी ऊर्जा व तमाम संसाधन भी खर्च कर देने पड़े। इनके अलावा अराजकता वहां शुरू से ही एक बड़ा मुद्दा रहा है। इस तरह कई मोचोर्ं पर लोहा लेते हुए आगे बढ़ना और फिर वहां सुरक्षा के भी पुख्ता इंतजाम करना किसी भी सरकार के लिए आसान नहीं हो सकता। इसके बावजूद आम जनता की सुरक्षा एक बड़ा प्रश्न है और इसे हल्के ढंग से नहीं लिया जा सकता। वहां कई जिलों में अग्निशमन दल की मुकम्मल व्यवस्था नहीं है। लगभग यही स्थिति बम निरोधक दस्ते की भी है। पुलिस बल की भी कई जगहों पर भारी कमी है और कैमरों की व्यवस्था भी पर्याप्त नहीं है। औरंगाबाद जैसे संवेदनशील जिले की स्थिति यह है कि वहां गश्त और वारंटियों की गिरफ्तारी के लिए भी पुलिस को कई बार वाहन तक भाड़े पर लेने पड़ते हैं। आतंकवादी ही नहीं, दूसरे अराजक तत्व भी हमेशा अत्याधुनिक हथियारों से लैस होते हैं। जबकि पुलिस वहां अभी भी पुराने ढंग के हथियारों पर निर्भर है। यह स्थिति आम जनता तो क्या, खुद पुलिस की अपनी सुरक्षा के लिए ही मुफीद नहीं है।


जाहिर है, ऐसी स्थिति में सुरक्षा व्यवस्था बहुत बेहतर नहीं हो सकती। इस हाल में हमें पुलिस या अन्य सुरक्षा बलों से केवल हौसले और हिम्मत के बल पर बहुत कुछ कर पाने की उम्मीद नहीं करनी चाहिए।1इसमें कोई दो राय नहीं है कि राज्य का विकास किसी भी सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए। क्योंकि विकास के बिना किसी भी जगह सुख-समृद्धि की कल्पना नहीं की जा सकती। नीतीश की सरकार इस मसले पर पूरा ध्यान दे रही है और यह आम जनता के लिए आश्वस्ति की बात है। यही कारण है जो उन्हें लगातार दूसरी बार सत्ता में आने का मौका मिला। लेकिन इस सत्य का एक दूसरा पहलू यह भी है कि विकास का भी सुरक्षा के बिना कोई अर्थ नहीं रह जाता। आखिर सारा विकास हम जिसके लिए कर रहे हैं, अगर उसके प्राण ही सुरक्षित न हों तो विकास का अर्थ क्या रह जाता है? प्रदेश में अराजक तत्वों के बढ़ते दुस्साहस को देखते हुए यह जरूरी हो गया है कि सरकार इस दिशा में तुरंत ध्यान दे। विकास के मुद्दे से भटकने की जरूरत बिलकुल नहीं है, लेकिन बेहतर यही होगा कि सरकार अपनी प्राथमिकताओं में अब सुरक्षा के मुद्दे को भी जोड़ ले। अगर उपलब्ध संसाधनों से इस दिशा में कुछ खास नहीं हो पाता है तो भी चिंता की कोई जरूरत नहीं है और न ही इससे पीछे हटने की आवश्यकता है। सरकार अन्य उपायों पर गौर करे। कोई न कोई रास्ता जरूर निकलेगा।अराजक तत्वों की बढ़ती तादाद पूरे देश के लिए चिंता का विषय बनी हुई है। ये कहीं आतंक के रूप में हैं तो कहीं दबंगों के रूप में और कहीं नक्सलवाद के रूप में। कश्मीर से आंध्र प्रदेश और इधर बिहार से लेकर असम तक आए दिन इनकी धमक सुनाई देती रहती है। अब तक हजारों जानें इनके चलते जा चुकी हैं और बहुत सारे घर बर्बाद हो चुके हैं। इनसे निबटने के लिए पूरे देश की जनता की आस सिर्फ एक जगह टिकी होती है और वे हैं हमारे सुरक्षा बल। मुश्किल यह है कि भारत के लगभग सभी प्रदेशों में पुलिस और अन्य सुरक्षा बलों की स्थिति भी दुरुस्त नहीं है। न केवल भ्रष्टाचार, बल्कि आधुनिक हथियारों की कमी भी इनके लिए एक बड़ा संकट है। एक तरफ तो आतंकवादी अत्याधुनिक हथियारों और अबूझ रणनीति से लैस हैं, दूसरी तरफ हमारे पुलिस बल अभी भी कई प्रदेशों में पुराने ढंग के हथियारों से ही काम चला रहे हैं।

क्या पीएम को निर्दोष बताने वाली जेपीसी रिपोर्ट भरोसेमंद है?


संख्याबल तो इनका पहले से ही कम है, जो है उसमें से भी अधिकतर वीआइपी सुरक्षा और कई दूसरे कामों में लगा दिए जाते हैं। इस तरह आम जनता की सुरक्षा भगवान भरोसे होकर रह जाती है।1पिछले दिनों बिहार में दो ऐसी घटनाएं घटीं, जिन्होंने आम जनता के मनोबल को हिलाकर रख दिया। इनमें से एक है हाल ही में राजधानी पटना में हुई भाजपा की रैली के दौरान कई जगह विस्फोटक रखे जाने का मामला और दूसरा मामला है औरंगाबाद में हुई नक्सली हिंसा। हालांकि इन दोनों की मामलों की तह तक पहुंचने की पूरी कोशिश की जा रही है, लेकिन इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि अभी तक इन मामलों में पुलिस व सुरक्षा बलों को पूरी सफलता नहीं मिल सकी है। ऐसे मामलों में आम तौर पर इतनी जल्दी कोई सफलता मिल भी नहीं पाती। क्योंकि ऐसे अराजक तत्वों का सिर्फ सूचना तंत्र ही नहीं, बल्कि पुलिस व सुरक्षा बलों को भरमाने का तंत्र भी बहुत मजबूत होता है। ये जानबूझ कर पहले से ही ऐसे उपाय बनाकर रखते हैं, जिससे वे जांच दलों को लंबे समय तक भरमाते रह सकें। इस दौरान वे अपने भाग निकलने के उपाय करते रहते हैं। बिहार और पंजाब जैसे प्रदेशों में आतंकवादियों के लिए यह अधिक आसान इसलिए भी हो जाता है क्योंकि उनसे कई जगहों पर अंतरराष्ट्रीय सीमा सटी हुई हैं। अगर वे एक बार इन जगहों से देश से बाहर भाग निकलने में सफल हो गए तो फिर उन्हें पकड़ना बेहद मुश्किल हो जाता है।1बिहार जैसे विपन्न राज्य को नीतीश कुमार की सरकार अब विकसित करने में लगी हुई है। लेकिन, इसके पहले यह लंबे समय तक बुनियादी सुविधाओं के अभाव से ही जूझता रहा है। इतनी जल्दी इसके सभी मामलों में सक्षम हो जाने की उम्मीद की भी नहीं जानी चाहिए। किसी भी प्रदेश में नए आए शासनतंत्र की सबसे पहली प्राथमिकता आम जनता को बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराने की होती है। यह कहने की जरूरत नहीं कि बिहार में सड़क, बिजली, पानी और शिक्षा जैसी सुविधाओं की क्या स्थिति रही है। नतीजा यह हुआ कि बिहार पिछड़ेपन के पर्याय के रूप में देखा जाने लगा था। पिछले सात-आठ वषों में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का पूरा ध्यान इन्हीं मोचोर्ं पर केंद्रित रहा है। बेशक इन क्षेत्रों में उन्होंने काफी काम किया, लेकिन अभी भी वहां बहुत कुछ करना बाकी है। औद्योगीकरण और कृषि विकास की स्थिति अभी भी बिहार में बहुत पिछड़ेपन की है। इस दिशा में कुछ सार्थक उपलब्धि हासिल हो सके, इसके लिए अभी भी बिहार में बहुत काम करने की जरूरत है। नीतीश कुमार इस स्थिति को अच्छी तरह समझते हैं।


यही वजह है जो वे बार-बार बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग करते रहे हैं। कई तरफ से लगातार विरोध के बावजूद वे अपनी इस मांग पर डटे रहे हैं और किसी हद तक वे अपने इस मुद्दे पर सफल होते हुए भी दिख रहे हैं। यह बात सभी जानते हैं कि बिहार में औद्योगीकरण की स्थिति क्या है और यह भी कि यह स्थिति सुधरे बगैर वहां बेरोजगारी को कम नहीं किया जा सकता। आज भी बड़ी संख्या में बिहार के युवा दूसरे राज्यों में जाकर काम की तलाश करने के लिए विवश हैं। इसका एक बड़ा कारण बिहार में बार-बार आती रही प्राकृतिक आपदाएं भी हैं। प्राकृतिक आपदाओं से लोगों को बचाने और उनके पुनर्वास की व्यवस्था में प्रदेश सरकार को अपनी बहुत सारी ऊर्जा व तमाम संसाधन भी खर्च कर देने पड़े। इनके अलावा अराजकता वहां शुरू से ही एक बड़ा मुद्दा रहा है। इस तरह कई मोचोर्ं पर लोहा लेते हुए आगे बढ़ना और फिर वहां सुरक्षा के भी पुख्ता इंतजाम करना किसी भी सरकार के लिए आसान नहीं हो सकता। इसके बावजूद आम जनता की सुरक्षा एक बड़ा प्रश्न है और इसे हल्के ढंग से नहीं लिया जा सकता। वहां कई जिलों में अग्निशमन दल की मुकम्मल व्यवस्था नहीं है। लगभग यही स्थिति बम निरोधक दस्ते की भी है। पुलिस बल की भी कई जगहों पर भारी कमी है और कैमरों की व्यवस्था भी पर्याप्त नहीं है। औरंगाबाद जैसे संवेदनशील जिले की स्थिति यह है कि वहां गश्त और वारंटियों की गिरफ्तारी के लिए भी पुलिस को कई बार वाहन तक भाड़े पर लेने पड़ते हैं। आतंकवादी ही नहीं, दूसरे अराजक तत्व भी हमेशा अत्याधुनिक हथियारों से लैस होते हैं। जबकि पुलिस वहां अभी भी पुराने ढंग के हथियारों पर निर्भर है। यह स्थिति आम जनता तो क्या, खुद पुलिस की अपनी सुरक्षा के लिए ही मुफीद नहीं है। जाहिर है, ऐसी स्थिति में सुरक्षा व्यवस्था बहुत बेहतर नहीं हो सकती। इस हाल में हमें पुलिस या अन्य सुरक्षा बलों से केवल हौसले और हिम्मत के बल पर बहुत कुछ कर पाने की उम्मीद नहीं करनी चाहिए।1इसमें कोई दो राय नहीं है कि राज्य का विकास किसी भी सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए। क्योंकि विकास के बिना किसी भी जगह सुख-समृद्धि की कल्पना नहीं की जा सकती। नीतीश की सरकार इस मसले पर पूरा ध्यान दे रही है और यह आम जनता के लिए आश्वस्ति की बात है। यही कारण है जो उन्हें लगातार दूसरी बार सत्ता में आने का मौका मिला। लेकिन इस सत्य का एक दूसरा पहलू यह भी है कि विकास का भी सुरक्षा के बिना कोई अर्थ नहीं रह जाता। आखिर सारा विकास हम जिसके लिए कर रहे हैं, अगर उसके प्राण ही सुरक्षित न हों तो विकास का अर्थ क्या रह जाता है? प्रदेश में अराजक तत्वों के बढ़ते दुस्साहस को देखते हुए यह जरूरी हो गया है कि सरकार इस दिशा में तुरंत ध्यान दे। विकास के मुद्दे से भटकने की जरूरत बिलकुल नहीं है, लेकिन बेहतर यही होगा कि सरकार अपनी प्राथमिकताओं में अब सुरक्षा के मुद्दे को भी जोड़ ले। अगर उपलब्ध संसाधनों से इस दिशा में कुछ खास नहीं हो पाता है तो भी चिंता की कोई जरूरत नहीं है और न ही इससे पीछे हटने की आवश्यकता है। सरकार अन्य उपायों पर गौर करे। कोई न कोई रास्ता जरूर निकलेगा।

इस आलेख के लेखक निशिकान्त ठाकुर हैं


अवसरवादी राजनीति

साख के संकट से घिरी सत्ता



Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh