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आतंक से सतर्कता जरूरी

संपादकीय ब्लॉग
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nishikant thakurपंजाब की गिनती देश के सबसे प्रगतिशील और खुशहाल राज्यों में होती रही है। पहले की उसकी यह पहचान अगर निर्बाध बनी रह सकी होती तो आज शायद न केवल पंजाब, बल्कि पूरे भारत की ही तस्वीर कुछ और होती। दुर्भाग्य यह है कि वह निर्बाध बनी नहीं रह सकी। 80 के दशक में आतंकवाद का जो दंश इस प्रदेश को ङोलना पड़ा, उसने इसका सारा सुख-चैन छीन लिया। लंबे समय तक हालात इस तरह बिगड़े रहे कि यहां लोगों का जीना दुश्वार हो गया। खेतीबाड़ी और उससे जुड़े छोटे-मोटे कुटीर उद्योगों से लेकर बड़े उद्योग तक सभी प्रभावित हुए। लंबे समय तक चले आतंकवाद के काले दौर ने पंजाब के आर्थिक ढांचे को बुरी तरह प्रभावित किया। सभी तरह के कामकाज पर भी विपरीत असर पड़ा। यहां तक कि सामाजिक ताने-बाने को भी झकझोर कर रख दिया।

लूट सको तो लूट लो


कई साल के लंबे संघर्ष के बाद बड़ी मुश्किल से इस पर काबू पाया जा सका। तब जाकर पंजाब में जनजीवन अपने पुराने र्ढे पर लौट पाया। दुख इस बात का है कि इस पर अभी भी कुछ दुश्मनों की नजर लगी हुई है। वे समय-समय पर सिर उठाने की कोशिश करते रहे हैं, यह अलग बात है कि हर बार वे हमारी सुरक्षा एजेंसियों की पकड़ में आ जाते रहे हैं और एक बार फिर ऐसा ही हुआ है।हाल ही में प्रदेश के बरनाला जिले में एक ऐसे व्यक्ति को पकड़ा गया है, जिसका संबंध बब्बर खालसा से बताया जाता है। पुलिस ने इस संबंध में जो तथ्य पेश किए हैं उनके मद्देनजर इस बात से इनकार करने का कोई कारण दिखाई नहीं देता है। उसके पास से कुछ हथियारों के अलावा विभिन्न आतंकी संगठनों के सदस्यों के पते व नंबर लिखी डायरी भी बरामद हुई है।


इसके अलावा उसके पास से भड़काऊ सामग्री भी मिली है। इस बात का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि इन चीजों का किस तरह और कैसा उपयोग किया जाता रहा होगा। आतंकवादी गतिविधियों में सबसे पहली और सबसे महत्वपूर्ण भूमिका भड़काऊ सामग्री की ही होती है। इसका इस्तेमाल जरूरी नहीं है कि सभाओं में भाषण के जरिये ही किया जाए। इसे पर्चो-पुस्तिकाओं के रूप में भी छपवा कर बांटा जा सकता है और इस रूप में भी यह भड़काऊ सामग्री किशोरों-युवाओं के मन पर बहुत बुरा प्रभाव डाल सकती है। क्योंकि अपरिपक्व उम्र और समझ के लोग तथ्यों और सत्य की पड़ताल बाद में करते हैं, कोई बात पढ़ या सुन कर उसके बारे में अपनी राय पहले बना लेते हैं। यही उनके और पूरे समाज के लिए सबसे बड़ा खतरा होता है।वैसे भी यह दौर पहले की तरह किताबों, पचोर्, पोस्टरों और अखबारों जैसे केवल मुद्रण और दृश्य-श्रव्य माध्यमों तक सीमित नहीं रह गया है। अब इंटरनेट जैसा तेज गति वाला और सशक्त माध्यम गांवों तक अपनी पैठ बना चुका है और युवा वर्ग इसमें पूरी तरह रमा हुआ है। नई पीढ़ी के लोग अपनी चिट्ठी-पत्री से लेकर पढ़ाई-लिखाई तक बहुत कुछ इसी माध्यम से करना पसंद करते हैं। अनेक तरह की ठगी इंटरनेट के माध्यम से हो रही है और लोग इसके शिकार हो रहे हैं, इस तरह की खबरें हम आए दिन अखबारों में पढ़ते रहते हैं।

रक्षा सौदों पर गंभीर सवाल


एक क्लिक पर हजारों लोगों को ईमेल के जरिये ऐसी चीजें पहुंचाई जा सकती हैं और कोई भरोसा नहीं है कि पहुंचाई जा रही हों। सोशल नेटवर्किग साइटों का भी ऐसे कुत्सित उद्देश्यों के लिए दुरुपयोग किया जा सकता है। इन बातों को ध्यान में रखते हुए पुलिस और अन्य सुरक्षा एवं खुफिया एजेंसियों को इस संदर्भ में सचेत और सतर्क रहना चाहिए। खेदजनक है कि हमारे यहां अभी भी साइबर सेल को तकनीकी दृष्टि से बहुत मजबूत नहीं बनाया जा सका है।पंजाब की भौगोलिक स्थितियों और ऐतिहासिक अनुभवों को देखते हुए ऐसी घटनाओं को हल्के में नहीं लिया जा सकता है। इसके पहले भी पंजाब में आतंकवाद को हवा पड़ोसी देश से ही मिली थी और बाद में भी वह लगातार इसे हवा देने की कोई न कोई कोशिश करता ही रहा है। यह अलग बात है कि इसमें उसे पूरी सफलता कभी नहीं मिल सकी, लेकिन उसकी कुंठित और कुत्सित मानसिकता को आसानी से समझा जा सकता है। वह बदले की मानसिकता में जीने और उसे हवा देने की मनोदशा का शिकार हो चुका है। इसी का नतीजा है कि वह हमेशा कश्मीर में किसी न किसी तरह घुसपैठ कराने की ताक में लगा ही रहता है। पाकिस्तान भूल-भटक कर किसी तरह अपनी सीमा में चले गए हमारे किसानों को जबरन घुसपैठिया साबित करने की कोशिश करता है और उन्हें तरह-तरह से प्रताड़ित करता है। भले ही पंजाब में घुसपैठ कराने की उसकी कोशिश कामयाब नहीं हो पा रही है, लेकिन वह अपनी साजिशें छोड़ने वाला नहीं है।


इन बातों पर गौर करते हुए सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों को चाहिए कि वे साइबर क्राइम पर पैनी नजर रखने की पूरी व्यवस्था बना लें।1पूरी तरह कुचल दिए जाने के बाद भी पंजाब में आतंकवादी समय-समय पर अपने पैर पसारने की कोशिश करते ही रहे हैं। कई मौकों पर ये बातें जाहिर होती रही हैं और पुख्ता सूचनाएं मिलने पर उनकी धरपकड़ भी होती रही है। फिर भी इसमें कोई दो राय नहीं है कि इधर कुछ वषों से उनकी गतिविधियां लगभग ठप पड़ गई सी लग रही थीं। लगभग चार-वषों से ऐसी कोई घटना पंजाब में सुनी नहीं गई। निश्चित रूप से इसका श्रेय पुलिस और खुफिया एजेंसियों को ही दिया जाना चाहिए। सरकार ने उन्हें उनके ढंग से काम करने की स्वतंत्रता दी, इस बात की भी सराहना की जानी चाहिए। लेकिन, इसका यह अर्थ बिलकुल नहीं लगाया जाना चाहिए कि उनकी गतिविधियां पूरी तरह बंद हो गई थीं। अभी तक अगर ऐसे लोग पकड़ में आ रहे हैं तो इसका साफ मतलब है कि इनकी गतिविधियां दबे-छिपे ढंग से चलती रही हैं। खुफिया एजेंसियों को चाहिए कि वे इन पर गहरी नजर रखें।1सच तो यह है कि इस मामले में हर स्तर पर और हर तरफ से नजर रखे जाने की जरूरत है। उन सभी तत्वों पर भी नजर रखी जानी चाहिए जो किसी भी तरह से इनके मददगार बनते हैं। इनका आर्थिक आधार हवाला जैसे अवैधानिक तरीकों पर टिका है। उनका यह नेटवर्क भी तोड़ा जाना बहुत जरूरी है। सीमावर्ती प्रदेश होने और पड़ोसी प्रदेश जम्मू-कश्मीर में अभी पूरी तरह शांति की बहाली संभव न हो पाने के कारण भी स्थितियां चिंताजनक हैं। इन रास्तों से अलगाववादी तत्वों को पंजाब में घुसपैठ का मौका मिल सकता है। इन सभी तथ्यों के मद्देनजर इस बात का पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए कि अलगाववादी तत्वों को फिर से पंजाब का माहौल बिगाड़ने का मौका न मिल सके। हालांकि पंजाब के लोग अब इस मामले में पूरी तरह सतर्क हैं, लेकिन ऐसे लोगों के मामले में केवल जनता की ओर से सतर्कता ही काफी नहीं होती है। इसके लिए जरूरी है सरकार और प्रशासन भी पूरी तरह सतर्क हो और जरूरत पड़ने पर कोई भी कार्रवाई करने से न हिचके।

इस आलेख के लेखक निशिकांत ठाकुर हैं


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