Menu
blogid : 133 postid : 2115

क्या पीएम को निर्दोष बताने वाली जेपीसी रिपोर्ट भरोसेमंद है?

संपादकीय ब्लॉग
संपादकीय ब्लॉग
  • 422 Posts
  • 640 Comments

जेपीसी रिपोर्ट ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को 2जी घोटाले में संलिप्तता से पूरी तरह मुक्त बताया है. यूपीए सरकार और कांग्रेस इसके लिये खुलकर खुशी का इजहार भी कर चुकी हैं, लेकिन इस रिपोर्ट की विश्वसनीयता पर सवाल उठाने वाली तमाम तरह की अटकलों का बाजार अभी भी गर्म है.

Read: सेक्युलर तंत्र पर सवाल


2जी घोटाले के मुख्य आरोपी पूर्व टेलीकॉम मंत्री ए. राजा प्रधानमंत्री को 2जी की नीलामी के संबंध में अंधेरे में रखने पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहते हैं कि यह निराधार है. सीबीआई ने इस पर अपनी रिपोर्ट लिखने से पहले पीएम का भी साक्षात्कार करना जरूरी नहीं समझा और अब लगता है जेपीसी ने भी इसे जरूरी नहीं समझा है. ऐसा किया होता तो उन्हें पता होता कि पीएम को इसके बारे में पूरी जानकारी थी. वे दावा करते हैं कि नवम्बर 2007 से जुलाई 2008 के बीच ही इस घोटाले का प्रारूप तैयार हुआ और इस बीच वे लगातार पीएम के संपर्क में थे. यहां वे यह जोड़ना नहीं भूलते कि उनका संपर्क सिर्फ पीएम कार्यालय से न होकर निजी तौर पर पीएम से भी था और 2जी के प्रारूप पर वे ए. राजा से पूरी तरह सहमत थे. उनके दावों में कितनी सच्चाई है यह तो पीएम और वही बता सकते हैं पर अपनी बात की सच्चाई समझाने के लिये राजा यहां तक कहते हैं कि प्रधानमंत्री से उनकी मुलाकात न केवल पीएम ऑफिस बल्कि उनके घर पर भी हुई और अगर उन्हें लगा कि मैंने उन्हें भरमाया है तो 2009 के चुनाव के बाद उन्होंने दुबारा मुझे कैबिनेट में शामिल ही क्यूं किया?


Read: भुखमरी से अधूरी जंग



गौरतलब है कि 2011 में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक द्वारा 3जी लाइसेंस वितरण द्वारा जमा राशि की तुलना में 2जी की राशि बहुत कम पाई गई. भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (ट्राइ) को इसमें लगभग 1 लाख 76 हजार 379 करोड़ का घाटा माना गया. फलस्वरूप 2008 में हुए ‘पहले आओ, पहले पाओ (एफसीएफएस)’ के आधार पर स्वान और यूनिटेक को 2जी लाइसेंस दिये जाने में (ट्राइ) को हानि हुई राशि की 2011 में आयकर विभाग द्वारा जांच की गई और इसमें हुई अनिमितताएं सामने आईं. उस समय इसी मुद्दे को लेकर नीरा राडिया फोन टैपिंग मामला भी खासा चर्चा में रहा जिसमें पूर्ण रूप से घोटाले की पुष्टि हुई. तत्काल दूरसंचार मंत्री ए. राजा पर आरोप है कि 2जी लाइसेंस वितरण में अनिमियतता बरतते हुए उन्होंने ट्राई के लाभ को हाशिये पर रखा. एफसीएफएस की जगह अगर नीलामी या अन्य व्यवस्था द्वारा लाइसेंस का वितरण किया जाता तो ट्राई करोड़ों के लाभ में होती जबकि इस वितरण प्रणाली में अन्य अनिमितताएं पाये जाने के साथ ही ट्राई को इससे हजारों करोड़ का नुकसान हुआ. पिछले दो वर्षों से चल रहे इस प्रकरण में बाद में साफ छवि वाले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की संलिप्तता के आरोपों ने इसे और भी विवादित कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने भी माना कि कथित दो कंपनियों को लाइसेंस वितरण के बाद फंड ट्रांसफर के नाम पर कई लोगों ने बड़ा मुनाफा कमाया और अगर एफसीएफएस प्रक्रिया की जगह किसी और प्रक्रिया द्वारा लाइसेंस वितरण किया जाता तो देश को करोड़ों का मुनाफा होता. मामले की निष्पक्ष जांच का जिम्मा संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को सौंपी गई जिसकी रिपोर्ट भी अब प्रश्नचिह्न के घेरे में है.


Read: हताशा बढ़ाने वाला विचार



बहरहाल स्थिति ऐसी है कि जेपीसी की रिपोर्ट पर न केवल ए. राजा लेकिन विपक्षी दलों की आवाज भी मुखर हो रही है. जेपीसी की यह रिपोर्ट शंकित इस दृष्टि से भी है क्योंकि इसके चैयरमैन पी.सी. चाको लोकसभा में कांग्रेस पार्टी से नाता रखते हैं. अत: घोटाले की इस उलझी हुई रूपरेखा में रिपोर्ट को यूपीए सरकार के पक्ष में प्रभावित करने की संभावना से भी इनकार नहीं कर सकते. जिस तरह अचानक से घोटाला सामने आने पर पहले पूर्व दूरसंचार मंत्री, फिर प्रधानमंत्री तक इसके तार पहुंचे और जिस प्रकार सीबीआई की अनियमित नीलामी के आरोपों में पीएम को सुरक्षित रखते हुए पूरे प्रकरण के लिये ए. राजा को ही जिम्मेवार माना गया और अब जेपीसी की रिपोर्ट में भी ऐसा ही दिख रहा है, तो कहीं-न-कहीं घोटाले के तार किसी और से जुड़े होने का भी शक पैदा कर ही जाते हैं. एक बार को अगर मान भी लिया जाए कि पीएम पर ए. राजा के आरोप सच में निराधार हैं, तो यह भी सोचने वाली बात है कि आखिर क्यूं पूर्व मंत्री बार-बार देश के सबसे प्रतिष्ठित पद की गरिमा को ठेस पहुंचाने की लगातार कोशिश में हैं. आखिर क्यूं वे बार-बार पीएम से इस मसले पर निजी सहमति प्राप्त होने की बात करते हैं. यहां यह भी उल्लेखनीय है कि जेपीसी रिपोर्ट के अनुसार ए. राजा द्वारा प्रधानमंत्री को भरमाए जाने पर ए. राजा ने 2 नवंबर, 2007 से 2 जुलाई, 2010 के बीच न केवल 7 खातों के जरिये, बल्कि निजी मुलाकातों द्वारा भी पीएम से एफसीएफएस पर सहमति की बात कही. गौर करने वाली बात यह है कि उन पर लगे इन आरोपों के बाद संसद में इस पर अपने वक्तव्य के दौरान पीएम ने एक बार भी इन मुलाकातों का जिक्र नहीं किया, क्यूं? और इतना बड़ा सौदा जिसमें पीएम की सहमति सर्वोपरि थी, एक मंत्री ने अकेले अपने बूते पर उन्हें बेवकूफ बना दिया. अगर ऐसा है भी तो यह पीएम की योग्यता पर भी सवाल खड़े करते हैं. ये सारे सवाल किसी जगह जेपीसी की निष्पक्ष कार्यप्रणाली और रिपोर्ट पर भी सवाल खड़े करते हैं, जिन्हें हम अनदेखा नहीं कर सकते.


Read: दवाओं की तकदीर बदलेगा यह फैसला



सच जो भी हो, यह एक अलग मुद्दा है लेकिन अगर जेपीसी की रिपोर्ट गलत साबित होती है तो यह जनतंत्र के कई बड़े छेदों में एक और होगा जो जन और तंत्र के बीच जोड़-तोड़ की कड़ियां बनाते हुए इसके जनतांत्रिक रूप को नुकसान पहुँचाते हैं. यह लोकतंत्र का एक बड़ा घाव है जो विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक संस्था के लिये आत्महत्या की स्थिति उत्पन्न करती सी जान पड़ती है. हालांकि सभी चाहते हैं कि असलियत में पीएम इसमें शामिल न हों और लोकतंत्र की यह सबसे बड़ी संस्था अपने सर्वसुरक्षित जगह सुरक्षित ही रहे पर कांग्रेस कार्यकाल में पी.वी. नरसिम्हा राव का वाकया भी भूला नहीं जा सकता जिसमें वे दोषी भी पाये गये और सजा भी हुई.


Read:

अवसादग्रस्त समाज

महिला मुद्दों पर राजनीति

दोहरी ज्यादती की त्रसदी

भारी पड़ती पुरानी भूल


Tags: 2G scam, Raja, JPC, spectrum allocation,  2G Spectrum Scandal, 2G scam, JPC report, Manmohan Singh, CAG loss figure, A. Raja, Swan and Unitech,Swan, Unitech, PM, Prime Minister, Manamohan Singh, FCSF, TRAI, 2G License, Supreme Court, Telecom Minister, JPC Report, JPC Report on 2G Scam, Nira Radia, P C Chacko, P V Narasimha Rao.

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply to harirawatCancel reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh