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नापाक इरादों की झलक

संपादकीय ब्लॉग
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Sanjay Gupt आंतरिक सुरक्षा के परिदृश्य पर नए सिरे से निगाह डालने की आवश्यकता जता रहे हैं संजय गुप्त

सऊदी अरब में जबीउद्दीन अंसारी उर्फ अबू जुंदाल की गिरफ्तारी और उसका भारत प्रत्यर्पण खुफिया एजेंसियों ही नहीं, बल्कि देश की कूटनीति की एक बड़ी सफलता है। अबू जुंदाल ने पूछताछ के दौरान जैसी जानकारियां दी हैं उससे सुरक्षा एजेंसियों के होश उड़ना स्वाभाविक है। जुंदाल ने खुलासा किया है कि किस तरह आतंकवादी संगठन भारत में हमलों की साजिश रच रहे हैं। जुंदाल फिलहाल दिल्ली पुलिस की हिरासत में है और पूछताछ के सिलसिले में लगभग रोज ही ऐसी बातें सामने आ रही हैं जो देश में आतंकी खतरे की गंभीरता को रेखांकित कर रही हैं। इन जानकारियों के सामने आने के बाद पुलिस और खुफिया एजेंसियों को विशेष सतर्कता बरतने की आवश्यकता है ताकि आतंकी तत्व अपने मंसूबों में कामयाब न हो सकें। चूंकि अबू जुंदाल की गिरफ्तारी से आतंकी संगठनों को न केवल झटका लगा है, बल्कि उनकी साजिशें भी धरी की धरी रह गई हैं इसलिए वे आनन-फानन में किसी ऐसी घटना को अंजाम दे सकते हैं जिससे देश की शांति खतरे में पड़ जाए और पाकिस्तान के साथ भारत के संबंध बिगड़ जाएं। अबू जुंदाल का सऊदी अरब से प्रत्यर्पण इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि पाकिस्तान ने हरसंभव तरीके से यह कोशिश की कि लश्कर-ए-तैयबा के इस आतंकी को या तो रिहा कर दिया जाए या उसका भारत प्रत्यर्पण न हो सके, लेकिन सऊदी अरब ने उसकी एक न सुनी। इतना ही नहीं सऊदी अरब ने भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के अनुरोध पर लश्कर के एक अन्य आतंकी फसीह मुहम्मद को अपने शिकंजे में ले लिया। आतंकवाद के मसले पर सऊदी अरब का यह सहयोग इस क्षेत्र के सामरिक-कूटनीतिक परिदृश्य पर एक नया प्रभाव डालेगा।


सऊदी अरब का रवैया इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि उसे पाकिस्तान का मित्र माना जाता है। अबू जुंदाल की गिरफ्तारी के एक सप्ताह बाद ही भारत और पाकिस्तान के विदेश सचिवों की वार्ता हुई। जैसा कि माना जा रहा था, यह वार्ता द्विपक्षीय संबंधों में किसी उल्लेखनीय प्रगति का मार्ग प्रशस्त नहीं कर सकी। स्पष्ट है कि इस वार्ता पर जुंदाल की गिरफ्तारी का असर पड़ा। पाकिस्तान के संदर्भ में यह किसी से छिपा नहीं कि वह मुंबई हमले के षड्यंत्रकारियों को कानून के घेरे में लाने का इच्छुक नहीं। तमाम अकाट्य सुबूतों के बावजूद पाकिस्तान यह मानने के लिए तैयार नहीं कि इस हमले में न केवल उसके यहां प्रशिक्षित आतंकियों की भूमिका थी, बल्कि उसकी खुफिया एजेंसी आइएसआइ भी इसमें शामिल थी। भारत की ओर से सौंपे गए सभी सुबूतों को पाकिस्तान अपर्याप्त बताता है। पाकिस्तान आतंकवाद के मामले में अंतरराष्ट्रीय बिरादरी के बीच लज्जित होने के डर से मुंबई हमले में अपने देश के आतंकी तत्वों की भूमिका को स्वीकार नहीं कर रहा है। विदेश सचिव स्तर की वार्ता के दौरान भी भारत ने अबू जुंदाल से हुई पूछताछ के आधार पर पाकिस्तान को तमाम जानकारी मुहैया कराई, लेकिन पाकिस्तान का रवैया अति नकारात्मक ही रहा। स्पष्ट है कि पाकिस्तान एक जिम्मेदार राष्ट्र के रूप में व्यवहार करने के लिए तैयार नहीं।


हालांकि भारत के राजनयिक भी यह समझ गए होंगे कि पाकिस्तान कभी भी इन सुबूतों को स्वीकार नहीं करेगा, लेकिन इसके बावजूद यह आवश्यक है कि नई दिल्ली पाकिस्तान पर दबाव बनाना कम न करे। यह जगजाहिर है कि आइएसआइ और पाकिस्तानी सेना का एक वर्ग अपने भारत विरोधी एजेंडे में जुटा हुआ है। इसी एजेंडे के तहत वह उन आतंकी संगठनों को हर तरह की मदद और समर्थन उपलब्ध करा रहा है जिनका मकसद भारत में तबाही फैलाना है। इस तथ्य से भारत ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय बिरादरी भी परिचित है, लेकिन किसी न किसी बहाने पाकिस्तान दुनिया की आंखों में धूल झोंकने में कामयाब हो जाता है। अफगानिस्तान में अपने अभियान के लिए अमेरिका और उसके सहयोगी देशों को पाकिस्तानी जमीन की आवश्यकता है। पश्चिमी जगत की इस मजबूरी का पाकिस्तान भरपूर फायदा उठाता है। आश्चर्य नहीं कि अमेरिका और पाकिस्तान के संबंधों में जो खटास कुछ समय पहले देखने को मिली थी वह अब कम होती दिख रही है। अमेरिका नए सिरे से पाकिस्तान को वित्तीय मदद देने को राजी हो गया है-यह जानते-बूझते हुए भी कि इस मदद का दुरुपयोग भारत के खिलाफ किया जा सकता है। भारत अनेक अवसर पर इसके पुख्ता प्रमाण भी दे चुका है, लेकिन कोई सार्थक नतीजा नहीं निकला।


पाकिस्तान कश्मीर में लगातार अलगाववाद को शह देने में लगा हुआ है। इस बार भी विदेश सचिव स्तर की वार्ता में जब भारत ने अबू जुंदाल का मुद्दा उठाया तो पाकिस्तान ने कश्मीर का राग अलाप दिया। पाकिस्तान के इस रवैये के चलते दोनों देशों के रिश्ते घूम-फिरकर वहीं पहुंच जाते हैं जहां से शुरुआत की जाती है। पाकिस्तान के साथ संबंधों के मामले में यह एक यथार्थ है कि भारत के पास फिलहाल वार्ता के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है। बल प्रयोग का कोई भी तरीका पूरे क्षेत्र की शांति के लिए खतरा बन सकता है। भारत के लिए यही उचित है कि संयम का परिचय देते हुए संबंध सुधार की प्रक्रिया जारी रखे, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि नई दिल्ली उस खतरे की अनदेखी कर दे जो पाकिस्तान में पोषित-संरक्षित आतंकी तत्व भारत के समक्ष उत्पन्न कर रहे हैं। मौजूदा माहौल में सुरक्षा बलों और खुफिया एजेंसियों को आतंकवाद के खिलाफ अपनी रणनीति को नए सिरे से निर्धारित करना होगा। इस मामले में प्रस्तावित राष्ट्रीय आतंकवाद रोधी केंद्र यानी एनसीटीसी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, लेकिन दुर्भाग्य से राजनीतिक विरोध के कारण यह पहल परवान नहीं चढ़ रही। यह कहना कठिन है कि एनसीटीसी के प्रति ममता बनर्जी, नवीन पटनायक समेत अन्य मुख्यमंत्रियों का विरोध समाप्त हो सकेगा या नहीं, लेकिन इससे बड़ी विडंबना कोई और नहीं कि आंतरिक सुरक्षा जैसे विषय पर भी राजनीतिक स्वार्थ हावी हो गए हैं। यह बात अटपटी लगी कि जब दिल्ली पुलिस अबू जुंदाल से पूछताछ कर ही रही थी तभी महाराष्ट्र पुलिस ने उसे अपनी हिरासत में लेने के लिए कोर्ट में अर्जी लगा दी।


राष्ट्रीय जांच एजेंसी के साथ-साथ गुजरात, आंध्र प्रदेश पुलिस भी जुंदाल को अपनी हिरासत में लेने को बेचैन हैं। इससे यही जाहिर होता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े आतंकवाद सरीखे मुद्दे को राज्य सरकारें अपने अधिकार क्षेत्र वाला मुद्दा मान रही हैं। महाराष्ट्र और दिल्ली पुलिस का आचरण तो ऐसा जाहिर करता है जैसे ये दोनों अलग-अलग देशों की पुलिस हों। क्या अलग-अलग राज्यों की पुलिस जुंदाल से एकसाथ पूछताछ नहीं कर सकतीं? केंद्र और राज्यों की पुलिस में समन्वय का अभाव तो आतंकियों के लिए ही हितकारी होगा। यहां यह ध्यान रहे कि पिछले दिनों दिल्ली और मुंबई पुलिस की खींचतान के चलते एक आतंकी बच निकलने में सफल रहा था। सच तो यह है कि राज्यों की पुलिस के रवैये से एनसीटीसी सरीखे केंद्रीय संगठन की आवश्यकता को और अधिक बल मिलता है। एनसीटीसी पर राज्यों की जो भी शंका है उसे केंद्र को जल्द से जल्द दूर करना चाहिए। प्रयास यह होना चाहिए कि यह संगठन जल्द से जल्द काम शुरू करे। बढ़ते आतंकी खतरे को देखते हुए बेहतर होगा कि जब तक एनसीटीसी पर सहमति कायम नहीं होती तब तक केंद्र और राज्यों की सुरक्षा एजेंसियां समन्वय का परिचय दें।


इस आलेख के लेखक संजय गुप्त हैं


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