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एनआरआइ शादियों के स्याह पहलू

संपादकीय ब्लॉग
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Nishikant Thakurमहिलाओं के उत्पीड़न का इससे अधिक कष्टप्रद मामला और क्या हो सकता है कि किसी लड़की की शादी हो, वह पति के घर आए और पति उसके साथ दो-चार दिन रहने के बाद वर्षो के लिए गायब हो जाए तथा उसकी कोई खोज-खबर तक न ले? बहुत लोगों को यह बात आश्चर्यजनक लग सकती है, लेकिन पंजाब में यह आम बात है। सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि देश के अधिकतर इलाकों की स्ति्रयां तो स्वयं प्रयास करके या दूसरे रिश्तेदारों की मदद से किसी तरह पति के पास जा सकती हैं, पर पंजाब की कुछ बेटियां तो विवाह के कुछ दिनों बाद ही अपने पति से मिलने की कल्पना तक नहीं कर सकतीं। इसलिए नहीं कि उनमें यह कूवत नहीं है, बल्कि इसलिए कि इसके लिए पहले तो अपने और दूसरे देश की तमाम कानूनी अड़चनों से पार पाना होगा और उसके बाद भी इस बात का कोई भरोसा नहीं है कि उसे उसका पति मिल ही जाएगा, क्योंकि उसे विदेश में उसके पति का जो पता बताया गया है, उसके सत्यापन का न तो उसके माता-पिता के पास कोई उपाय होता है और न खुद उसके पास। एनआरआई दूल्हों का पूरे पंजाब में जो क्रेज है, उसकी शिकार राज्य की हजारों लड़कियां हो चुकी हैं। पंजाब में यह समस्या कोई आज से नहीं, पिछले करीब चार दशकों से चली आ रही है। इस समस्या पर पिछले दो दशकों में काफी कुछ सोचा गया, लेकिन बहुत सोचने-विचारने के बाद भी समस्या का कोई प्रभावी समाधान निकला नहीं।


आखिरकार पंजाब सरकार इसके लिए कानून ले आई। हाल ही में जालंधर में इसी सिलसिले में हुए एक आयोजन में राज्य के उप मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल ने कहा है कि इस तरह सताई गई लड़कियों को इंसाफ दिलाने के लिए सरकार इसी साल अगस्त से एक सख्त कानून लागू करने जा रही है। इस नए कानून के तहत धोखेबाज एनआरआइ दूल्हों पर शिकंजा कसा जाएगा। यह कानून पहली अगस्त से लागू होगा। वास्तव में तो यह कानून, जो अब लाया जा रहा है, बहुत पहले लाया जाना चाहिए था। बहरहाल, कानून बनाने और लागू करने की प्रक्रिया इतनी सरल भी नहीं होती कि उसे कभी भी लागू किया जा सके। इसलिए अभी भी अगर इसे लागू किया जा रहा है तो सरकार को धन्यवाद कहा जाना चाहिए। क्योंकि इस संबंध में कानून बनाने और उसे लागू करने से पहले सरकार को कई महत्वपूर्ण और जटिल मसलों पर सोचना पड़ा है। इस मामले में देर आयद दुरुस्त आयद की बात मानी जानी चाहिए। ध्यान रहे, अकाली नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री बलवंत सिंह रामूवालिया लंबे समय से इसकी मांग करते रहे हैं। उन्होंने इस विषय पर काफी काम भी किया है। वह कहते हैं कि किसी अनिवासी भारतीय को भारतीय लड़की से शादी की अनुमति तब तक नहीं दी जानी चाहिए जब तक उसके बारे में पूरी जानकारी न कर ली जाए। हमें इस बात की पक्की जानकारी होनी चाहिए कि विदेश में वह कहां रहता है, उसे उस देश की नागरिकता मिली है या फिर वह वहां वर्किग परमिट पर रह रहा है या कि किसी अनुबंध के तहत।


अगर उस देश में सोशल सिक्योरिटी नंबर की व्यवस्था है तो वह अपना विदेश का पहचान पत्र और वह नंबर भी यहां जिलाधिकारी कार्यालय में जमा करे तथा उसका सत्यापन कराया जाए। इस बात की जानकारी भी होनी चाहिए कि कहीं उसने विदेश में पहले कोई शादी तो नहीं कर रखी है। कई देशों में स्त्री-पुरुष को बिना विवाह के भी साथ रहने की अनुमति है। अगर ऐसी कोई बात है तो उसकी भी ठीक-ठीक जानकारी होनी चाहिए। इन बातों की जानकारी किए बगैर विदेश में रह रहे किसी भी व्यक्ति को किसी भारतीय लड़की से विवाह की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। रामूवालिया तो यहां तक कहते हैं कि अधिकतर मामलों में एनआरआइ दूल्हे जान-बूझ कर हमारी लड़कियों की जिंदगी बर्बाद करते हैं। पहले तो मोटी रकम बतौर दहेज ले लेते हैं और उसके बाद भी किसी न किसी बहाने वे बार-बार लड़की के माता-पिता से पैसे की मांग करते रहते हैं। उन्होंने कुछ ऐसी घटनाओं का जिक्र भी किया जिसमें दूल्हों ने अपनी पत्नी से यह तक कहा कि अब उनके पास बचा क्या है और वे उन्हें पूरी तरह बर्बाद कर देंगे। ऐसे लोग यह भी धमकी देते हैं कि यहां का कानून उनका कुछ भी बिगाड़ नहीं सकता। जब तक इस मसले पर कोई सख्त कानून नहीं बन जाता और उसे पूरी सख्ती के साथ लागू नहीं करा दिया जाता तब तक तो स्थिति सचमुच यही है। क्योंकि हमारे पास इस तरह की धोखाधड़ी करने वाले लोगों से निबटने के लिए पहले से किसी कानून की व्यवस्था है ही नहीं। इस संबंध में कानून का बनना और उसे पूरी सख्ती से लागू कराया जाना बेहद जरूरी है, लेकिन इससे भी ज्यादा जरूरी पंजाब के लोगों को स्वयं सतर्क होना है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि जब तक लोग स्वयं सतर्क न हों, तब तक कोई भी कानून ऐसी लड़कियों की बर्बादी नहीं रोक सकता।


आम तौर पर होता है यह कि पंजाब में लोग स्वयं अपनी लड़कियों की शादी अनिवासी लड़कों से करना बहुत प्रतिष्ठा की बात समझते हैं। हालांकि कई बार लोग ऐसी शादियों को विफल होते हुए देख चुके हैं। ऐसी कोई एक-दो घटनाएं नहीं घटी हैं। इस तरह के हजारों मामले पंजाब के हर शहर और यहां तक कि गांवों में भी मिल जाएंगे। इसके बावजूद लोग स्वयं अपने स्तर से पूरी छानबीन किए बगैर ऐसे लोगों से अपनी बेटियों की शादी कर देते हैं। यह भी नहीं सोचते यह कोई एक-दो दिन का मसला नहीं, बेटी की पूरी जिंदगी का सवाल है। आखिरकार होता यह है कि वह दुल्हन पूरी जिंदगी रोते हुए गुजारने के लिए विवश हो जाती है। असल में इसके लिए जितने जिम्मेदार वे दूल्हे या वर पक्ष के लोग होते हैं, दुल्हन के माता-पिता भी उससे कम जिम्मेदार नहीं होते। सच तो यह है कि कानून को भी लोगों का सहयोग मिलना जरूरी है। क्योंकि किसी भी देश में कोई भी कानून लोगों के ही भरोसे सफल हो सकता है। लोगों को यह समझना चाहिए कि कानून उनके और उनकी बेटियों के हित के लिए ही बनाया गया है। इसलिए उन्हें दलालों और चिकनी-चुपड़ी बातें करने वाले एजेंटों के बहकावे में आने से स्वयं बचना चाहिए। निश्चित रूप से सभी एनआरआइ इस मामले में धोखेबाजी करने वाले लोग नहीं हैं। कई लोग लड़कियों से शादी करके उन्हें या तो अपने साथ ले जाते हैं या शादी के बाद स्वयं अपने देश में ही रहने लगते हैं। लेकिन इस संबंध में किसी की पहचान ऐसे ही नहीं की जा सकती। क्योंकि किसी के चेहरे पर यह नहीं लिखा होता कि वह सच बोल रहा है या झूठ। इसलिए अगर कोई व्यक्ति किसी एनआरआइ लड़के के साथ अपनी बेटी की शादी करने जा रहा हो तो उसे अपनी ओर से कोई तथ्य छुपाए बगैर कानूनी प्रक्रिया पूरी करनी चाहिए। तभी इस कानून की भी सार्थकता सिद्ध हो सकेगी।


लेखक निशिकांत ठाकुर दैनिक जागरण हरियाणा, पंजाब व हिमाचल प्रदेश के स्थानीय संपादक हैं


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