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कांग्रेस महासचिव के बयानों से टीम अन्ना के बजाय कांग्रेस की छवि पर बुरा असर पड़ता देख रहे है राजीव सचान
अब यह और पुख्ता हो गया है कि कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह का एकसूत्रीय एजेंडा भ्रष्टाचार का सवाल उठाने वालों की नाक में दम करना और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जोड़कर उन्हें बदनाम करना है। वह 24 घंटे में औसतन एक बार टीम अन्ना अथवा बाबा रामदेव पर कटाक्ष अवश्य करते हैं। मीडिया के लिए वह नए लालू यादव बन गए हैं। पत्रकारों को लगता है कि वह कुछ बोलेंगे तो कम से कम एक खबर तो बन ही जाएगी। अब तो उनके विचार जानने के लिए उनसे सवाल पूछने की भी जरूरत नहीं है। वह ट्वीट कर यह बता देते हैं कि टीम अन्ना के बारे में उन्हें नया क्या सूझा है? हालांकि वह कई बार ऐसा कुछ बोल जाते हैं जिसका या तो उन्हें ही खंडन करना पड़ता है या फिर उनकी पार्टी को उनसे पल्ला झाड़ना पड़ता है, लेकिन टीम अन्ना पर नए-नए आरोप थोपने में उनका कोई सानी नहीं। वह कांग्रेस के प्रवक्ता नहीं हैं, लेकिन उनसे भी ज्यादा बोलते हैं। वह कांग्रेस के महासचिव तो हैं ही, सोनिया गांधी के विश्वासपात्र और राहुल गांधी के राजनीतिक सलाहकार भी माने जाते हैं। मध्य प्रदेश में चुनाव हारने के बाद उन्होंने 10 सालों तक चुनाव न लड़ने का जो संकल्प लिया था उस पर वह कायम हैं। इस संकल्प के जरिये दिग्विजय सिंह यह आभास कराते हैं कि वह पार्टी की नि:स्वार्थ सेवा कर रहे हैं। हो सकता है कि उनके समर्थक अभी भी यह मानते हों कि वह पार्टी की नि:स्वार्थ सेवा कर रहे हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि अब वह कांग्रेस की कुसेवा कर रहे हैं। वह अपने बयानों से पार्टी के लिए जिस तरह नकारात्मक माहौल तैयार कर रहे हैं उसे देखते हुए यदि विरोधी दल यह कामना कर रहे हों तो आश्चर्य नहीं कि वह इसी तरह बयान देते रहें।
यदि कांग्रेसजन यह समझ रहे हैं कि दिग्विजय सिंह की टीम अन्ना को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का हिस्सा बताने की रणनीति पाटी के लिए हितकारी है तो वे भ्रम में हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की रीति-नीति से असहमत होने वालों की कमी नहीं, लेकिन ऐसे लोगों के लिए भी ऐसे किसी नतीजे पर पहुंचना कठिन हो रहा है कि अन्ना हजारे अथवा उनकी टीम संघ से संचालित, नियंत्रित अथवा प्रेरित है। यह अच्छा हुआ कि टीम अन्ना ने संकोच से उबरते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि उसे संघ के स्वयंसेवकों से कोई परहेज नहीं। उसे परहेज होना भी नहीं चाहिए। यदि किसी रैली, प्रदर्शन अथवा अन्य सार्वजनिक आयोजन में संघ के सदस्य शिरकत करते हैं तो उन्हें कोई कैसे रोक सकता है? क्या दिग्विजय सिंह यह चाहते हैं कि अन्ना हजारे अपने अनशन-आंदोलन के दौरान यह घोषणा करते कि रामलीला मैदान में संघ सदस्यों का प्रवेश निषेध है।
दिग्विजय सिंह ठीक उसी तरह काम कर रहे हैं जैसे नाजी जर्मनी में यहूदियों को तंग करने वाले करते थे। उनके लिए बस इतना ही पर्याप्त होता था कि अपने विरोधी को यहूदी समर्थक करार दें। दिग्विजय सिंह का आचरण पाकिस्तान के उन कट्टरपंथी मुल्लाओं की भी याद दिलाता है जो ईशनिंदा के आरोपों के जरिये अल्पसंख्यकों का जीना मुहाल किए हुए हैं। किसी को भी यह समझने के लिए आइंस्टीन होने की जरूरत नहीं कि दिग्विजय सिंह टीम अन्ना को इसलिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के रंग से रंगने के लिए अतिरिक्त मेहनत कर रहे हैं ताकि आगामी विधानसभा चुनावों में मुस्लिम समुदाय को टीम अन्ना से प्रभावित होने से रोका जा सके। उनकी इस धारणा में कुछ बल हो सकता है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नाम लेकर मुस्लिम समुदाय को टीम अन्ना से भयभीत किया जा सकता है, लेकिन ऐसा कुछ तो तभी संभव है जब यह टीम हिसार वाली गलती उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब में भी करेगी। यदि टीम अन्ना इन राज्यों के विधानसभा चुनावों में हिसार की तरह केवल कांग्रेस को हराने का अभियान नहीं छेड़ती तो दिग्विजय सिंह की रणनीति सफल होने वाली नहीं है। हां, इसका खतरा अवश्य है कि उनके बेढब बयानों से आजिज आए लोग कांग्रेस से किनारा कर लें।
दिग्विजय सिंह की मानें तो बाबा रामदेव, अन्ना हजारे और श्रीश्री रविशंकर भ्रष्टाचार को लेकर जो कुछ कह रहे हैं वह सब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एजेंडे का हिस्सा है। यदि एक क्षण के लिए यह मान भी लिया जाए कि ये तीनों लोग संघ के इशारे पर सक्रिय हैं और उससे अपने कथित संबंधों को उजागर नहीं करना चाहते तो भी क्या यह कोई अपराध है? हालांकि कांग्रेस को कई बार दिग्विजय सिंह के बयानों को उनके निजी विचार बताना पड़ा है, लेकिन यह आश्चर्यजनक है कि नेतृत्व को यह समझ नहीं आ रहा कि वह पार्टी का नुकसान कर रहे हैं। आम जनता को यह संदेश जा रहा है कि पार्टी नेतृत्व ने दिग्विजय सिंह को टीम अन्ना पर हमला करने की अतिरिक्त छूट दी हुई है। ऐसा इसलिए और भी लगता है, क्योंकि अन्य दलों की तरह कांग्रेस में आलाकमान अर्थात सोनिया और राहुल गांधी की मर्जी के बगैर पत्ता भी नहीं खड़कता। यदि दिग्विजय सिंह के मामले में ऐसा कुछ नहीं है और वह कांग्रेस में व्याप्त हो गए आंतरिक लोकतंत्र का प्रतीक बन गए हैं तो भी यह समझ से परे है कि जिन अन्ना हजारे को प्रधानमंत्री सलाम कर रहे हैं उन्हें ही उनकी पार्टी के एक महासचिव बदनाम करने के लिए कोई कसर न छोड़ें? इसमें किसी को संदेह नहीं कि दिग्विजय सिंह को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ फूटी आंख भी नहीं सुहाता, लेकिन क्या इसका यह भी मतलब है कि संघ जिस बात का समर्थन कर दे वह गुनाह अथवा संाप्रदायिक हो जाएगी? संघ नेताओं के हालिया बयानों से यह स्पष्ट है कि वे जम्मू-कश्मीर से सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम हटाने के विरोधी हैं। ऐसी ही राय सेना की भी है। दिग्विजय सिंह के फार्मूले से तो सेना भी संघ समर्थक हो जाएगी।
लेखक राजीव सचान दैनिक जागरण में एसोसिएट एडीटर हैं
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