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खतरनाक होगी ढील

संपादकीय ब्लॉग
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Nishikant Thakurराजनीतिक नेतृत्व को आतंकवाद के खिलाफ सख्ती बरतने का सुझाव दे रहे हैं निशिकान्त ठाकुर


अंबाला में बड़ी मात्रा में भयावह विध्वस का सामान पकड़ कर हमारी सुरक्षा एजेंसियों ने एक बड़ी साजिश को नाकाम तो कर दिया, लेकिन षडयत्र विफल कर दिए जाने के बावजूद यह घटना हमारी व्यवस्था के लिए ही कई सवाल छोड़ गई है। बेशक इसके लिए सुरक्षा एजेंसियों व खुफिया एजेंसियों की पीठ थपथपाई जानी चाहिए कि उन्होंने बड़ी दुर्घटना से लोगों को बचा लिया। ऐसा उनकी मुस्तैदी से ही सभव हो सका है। खासतौर से खुफिया एजेंसियों की भूमिका की तो इस मामले में जितनी भी तारीफ की जाए, वह कम है। इसके बावजूद एक हैरतअंगेज बात यह है कि विस्फोटक सामग्री से लदा वाहन तो पकड़ लिया गया, पर इस साजिश में शामिल लोग बच निकले। देखने में यह बात किसी को सामान्य मानवीय चूक लग सकती है, लेकिन मामले के सभी पक्षों पर अगर गौर करें और इन पर गभीरतापूर्वक विचार करें तो ऐसा लगता है कि यह मामला सामान्य मानवीय चूक से कुछ आगे का है। यह भी हो सकता है कि कुछ ही नहीं, बल्कि बहुत आगे का हो। इस मामले में यह मानना बहुत मुश्किल लग रहा है कि यह मामला सिर्फ चूक, लापरवाही या योग्यता की कमी तक सीमित है।


देश की खुफिया एजेंसियों ने इस साजिश की जानकारी फोन कॉल इंटरसेप्ट करके हासिल की थी। इसकी जानकारी उन्हें दस दिन पहले ही हो गई थी। इसके तहत उन्हें इस बात की भी पूरी जानकारी हो गई थी कि ये विस्फोटक कहा से, किस तरह और किन लोगों के जरिये लाए जाएंगे। उन्हें यह जानकारी भी है कि इसके पीछे किन-किन सगठनों का हाथ है और वे उसे दिल्ली पहुंचाने के लिए किन अन्य सगठनों का इस्तेमाल कर रहे थे। मुख्य रूप से यह कारगुजारी आइएसआइ की थी। आइएसआइ ने ही कश्मीर में सक्रिय आतकवादी गुट लश्कर-ए-तैयबा के जरिये बब्बर खालसा इंटरनेशनल से सपर्क साधा और उनके जरिये वही इन विस्फोटकों को जम्मू से हरियाणा होते हुए दिल्ली पहुंचाना चाहती थी। ये विस्फोटक कहीं सीधे तौर पर इस्तेमाल नहीं किए जाने थे। बल्कि योजना के मुताबिक इनका प्रयोग कार बम के तौर पर किया जाना था। जिस इंडिका गाड़ी में ये सारा सामान लाया जा रहा था, उस पर फर्जी नबर प्लेट लगाई गई थी। अंबाला में यह कार बदली जानी थी। सारा विस्फोटक किसी दूसरी कार में डाला जाता और फिर उसका प्रयोग आगे चल कर वे कार बम के तौर पर करने वाले थे। अंबाला में यह कार स्टेशन पार्किंग में मिली।


यह पूरा प्रकरण यह स्पष्ट कर देने के लिए काफी है कि आतकवादियों के इरादे क्या थे। ऐन दीपावली के ही मौके पर दिल्ली में पहले भी भयावह विस्फोट जैसी दुर्घटना घट चुकी है। इधर तो हाल में ही दिल्ली हाईकोर्ट परिसर के बाहर भयावह विस्फोट हो चुका है। दीवाली के मौके पर दिल्ली में ऐसी कोई जगह नहीं बचती है जहा जोरदार भीड़ न होती हो। ठीक दो दिन पहले पड़ने वाले पर्व धनतेरस के दिन सारे बाजार पूरी तरह भरे होते हैं। दीवाली के दिन भी सारी सड़कें भीड़ भरी होती हैं। इन दिनों में खरीदारी और मित्रों-परिचितों से मिलने-जुलने की परंपरा न केवल दिल्ली, बल्कि पूरे भारत में है। हमारे पड़ोसी मुल्कों में ही नहीं, दूर-दराज के देशों में भी भारतीय जनता की उत्सवधर्मिता के बारे में सभी जानते हैं और यह भी सभी जानते हैं कि इन दिनों पूरे देश में कैसी भीड़ जुटी रहती है। मुश्किल बात यह है कि हमारे पास जो पुलिस बल है, उसका सही तरीके से योजनाबद्ध इस्तेमाल भी नहीं किया जाता है। ऐसी स्थिति में अगर किसी के इरादे खतरनाक हैं तो वह जहा चाहे वहीं हमारी मामूली चूक का फायदा उठाकर बड़ी दुर्घटना को अंजाम दे सकता है। हमें सोचना यह होगा कि हमारे अपने बचने का उपाय क्या हो?


यह बात सभी जानते हैं कि सिर्फ विस्फोटक पकड़ लिए जाने या एक साजिश विफल कर दिए जाने भर से आतकवादियों के हौसले पस्त होने वाले नहीं हैं। ऐसी न जाने कितनी साजिशें हर साल विफल की जाती हैं। तमाम आतकी पकड़े भी जाते हैं। इसके बावजूद उन पर कोई फर्क नहीं पड़ता है। हर बार पकड़े जाने के बाद वे और नए रास्ते तलाश लेते हैं। जरूरत इस बात की है कि उन तत्वों को हर हाल में पकड़ा ही जाए जो इनमें शामिल होते हैं। उन्हें कड़ी से कड़ी सजा दी जाए और उनके जरिये यह बात भी हर हाल में जानी जाए कि उन्हें भारत के भीतर किन लोगों का सहयोग मिल रहा है। यह सहयोग उन्हें किस तरह और किन शतरें पर मिल रहा है। जाहिर है, यह कोई आसान काम नहीं है, लेकिन आसानी से कुछ भी कहा होता है? क्या इन विस्फोटकों को पकड़े जाने का ही काम आसानी से हुआ है? हमें उन आतकवादियों का पता हर हाल में लगाना ही होगा जिनके जरिये इन विस्फोटकों को अंबाला तक पहुंचाया गया है।


सच तो यह है कि उनका छूट निकलना बहुत ही खतरनाक बात है। इस तरह हमने एक दुर्घटना तो बचा ली, लेकिन उनके हौसले पस्त नहीं कर सके। जब तक उनके हौसले हम पस्त नहीं कर देते तब तक तबाही का सिलसिला नहीं रोका जा सकेगा। बल्कि आगे से वे और अधिक सतर्क हो जाएंगे। दूसरे रास्ते तलाश लेंगे। यह एक बड़ा सवाल है कि ये विस्फोटक जम्मू से चले थे। बीच में पजाब भी पड़ता है और वह आतकवाद का दंश बहुत लबे समय तक झेल चुका है। आखिर पजाब में ही इन्हें क्यों नहीं पकड़ लिया गया? अंबाला में भी वे कैसे आए और वहा उन्होंने कौन सा तरीका अपनाया कि बच निकले, यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण सवाल है। निश्चित रूप से उन्होंने कहीं न कहीं पुलिस की चूक का फायदा ही उठाया है। वह चूक चाहे कुछ भी और किसी भी तरह की क्यों न रही हो।


इस बात पर भी गौर किया जाना चाहिए कि इसी बीच मध्य प्रदेश के रीवा में भी विस्फोटक पकड़े गए हैं। दूसरी तरफ, खुफिया एजेंसियों ने यह भी चेतावनी दे दी है कि दीवाली के मौके पर सिर्फ दिल्ली ही नहीं, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता, हैदराबाद और बेंगलूर भी आतकवादियों के निशाने पर हैं। मुंबई में हुए विस्फोटों के बाद जिस तरह आतकी पकड़े गए, उससे आइएसआइ काफी परेशान भी है। वह अपने तौर-तरीके बदल रही है और भारत में आतकवाद को वह पूरी तरह भारतीय स्वरूप देना चाहती है। इसके लिए वह बहुत बड़े पैमाने पर साजिश कर रही है। नेपाल और बाग्लादेश की धरती का प्रयोग भी भारत में आतक फैलाने के लिए किया गया है। इन तथ्यों को किसी भी कीमत पर नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। देश की खुफिया एजेंसियों के साथ-साथ सभी सुरक्षा एजेंसियों को भी पूरी तरह सतर्क होना होगा। सभी राज्यों में ऐसी स्थितियों से निबटने के लिए पुलिस का मनोबल बढ़ाया जाना भी बहुत जरूरी है। यह सब तभी सभव होगा जब हमारा राजनीतिक नेतृत्व इन मामलों में सख्ती बरतने के लिए पूरी तरह तैयार हो जाए। किसी भी तरह के आतकवाद को टालू नजरिये से देखना बेहद खतरनाक साबित होगा।


लेखक निशिकान्त ठाकुर दैनिक जागरण पंजाब, हरियाणा व हिमाचल प्रदेश के स्थानीय सपादक हैं


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