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एक ब्लॉगर की एफआइआर

संपादकीय ब्लॉग
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Rajeev Sachanदिग्विजय सिंह को विभिन्न वेबसाइट्स और खास कर सोशल नेटवर्किग साइट्स में अपने खिलाफ की गई टिप्पणियों से इतनी तकलीफ पहुंची है कि उन्होंने फेसबुक, ट्विटर, यू ट्यूब समेत दस साइट्स के खिलाफ एफआइआर दर्ज करा दी है। चूंकि वह कांग्रेस के बड़े नेता हैं इसलिए दिल्ली पुलिस ने उनकी एफआइआर दर्ज कर ली, अन्यथा इस तरह की रपट का कोई तुक नहीं बनता। खुद ब्लॉग लिखने वाले दिग्विजय सिंह को यह पता होना चाहिए कि सोशल नेटवर्किग साइट्स एवं न्यूज वेबसाइट्स पर एक हद तक ही निगाह रख सकती हैं कि उनमें कौन किसके खिलाफ कैसी प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहा है? यदि दिग्विजय सिंह यह समझते हैं कि वह किसी मसले पर कुछ भी बोल सकते हैं तो फिर उन्हें यह भी पता होना चाहिए कि सोशल नेटवर्किग साइट्स पर लोग भी कुछ लिख सकते हैं। कम से कम दिग्विजय सिंह अपने आलोचकों से संयत-शालीन भाषा का इस्तेमाल करने की अपेक्षा नहीं कर सकते। ऐसी अपेक्षा वही कर सकता है जो खुद भी संयम-शालीनता का परिचय देता हो। दुर्भाग्य से दिग्विजय सिंह ऐसा बिल्कुल भी नहीं करते। अभी हाल में उन्होंने कहा, बाबा रामदेव ठग था, ठग है और रहेगा। वह यहीं तक सीमित नहीं रहे। उन्होंने कहा कि ऐसे ठग संतों के लिए मनुस्मृति में कहा गया है कि राजा को चाहिए कि उनके गले में पत्थर बांधकर नदी में डुबो दे। एक सामान्य समझ वाले व्यक्ति को भी यह पता होना चाहिए कि ऐसे वक्तव्यों पर आम लोगों की प्रतिक्रिया कैसी होगी? दिग्विजय सिंह रामदेव के खिलाफ इस तरह के ओछे बयान पहले भी दे चुके हैं। समस्या यह है कि केवल रामदेव ही उनके निशाने पर नहीं रहते। कांग्रेस और केंद्र सरकार का हर आलोचक उनके विष बुझे बाणों का शिकार होता रहता है।


जब दिग्विजय सिंह को अन्ना हजारे को लांछित करने के लिए और कुछ नहीं सूझा तो उन्होंने उन्हें आरएसएस का मुखौटा करार दिया। अन्ना के पास टीवी चैनलों के समक्ष प्रतिक्रिया व्यक्त करने की सुविधा थी, इसलिए उन्होंने छूटते ही कहा कि दिग्विजय सिंह को पागलखाने भेजा जाना चाहिए। उन्होंने एक पागलखाने का नाम भी सुझा दिया। अन्ना के समर्थकों के पास ऐसी सुविधा नहीं और न हो सकती है, इसलिए यह स्वाभाविक ही है कि उन्होंने सोशल नेटवर्किग साइट्स पर अपनी भड़ास निकाली होगी। इसके पहले दिग्विजय सिंह के खिलाफ तब तीखी और भद्दी टिप्पणियां की गई थीं जब उन्होंने ओसामा बिल लादेन को इस्लामिक रीति-रिवाजों के तहत न दफनाने पर अपनी आपत्ति जताई थी। ऐसी आपत्ति जताने वाले वह संभवत: भारत के इकलौते शख्स थे। इस्लामी दुनिया में भी उनकी तरह विचार रखने वाले सिर्फ एक ही सज्जन मिस्र के एक मौलाना थे। हालांकि कांग्रेस ने तुरंत ही खुद को दिग्विजय सिंह की इस आपत्ति से अलग कर लिया था, लेकिन यह सहज ही समझा जा सकता है कि आम लोग उनकी इस आपत्ति को पचा नहीं पाए होंगे और वे सोशल नेटवर्किग साइट्स पर अपनी-अपनी तरह से उन पर बरसे होंगे। ऐसी साइट्स पर सक्रिय रहने वालों को दिग्विजय सिंह ने ऐसा ही मौका तब दिया था जब वाराणसी के दौरे पर उन्होंने ओसामा को ओसामा जी कहकर संबोधित किया था। दुनिया के नंबर एक आतंकी को आदर सूचक शब्द से संबोधित करना अपराध नहीं, लेकिन वह इतना तो समझते ही होंगे कि इससे कुछ लोग चिढ़ सकते हैं और चिढ़े हुए लोग कुछ भी लिख सकते हैं।


दिग्विजय सिंह ने लोगों को चिढ़ाने का काम तब भी किया था जब उन्होंने यह रहस्योद्घाटन किया था कि मुंबई आतंकवाद निरोधक दस्ते के प्रमुख हेमंत करकरे ने हिंदू संगठनों से अपनी जान को खतरा बताया था। उनके इस बयान को भी कांग्रेस ने तो तुरंत खारिज कर ही दिया था, खुद हेमंत करकरे की पत्नी ने भी नाराजगी जताई थी। यह कल्पना सहज ही की जा सकती है कि आम लोगों ने सोशल नेटवर्क साइट्स पर किस तरह नाराजगी जताई होगी, क्योंकि दिग्विजय सिंह ने हेमंत करकरे की हत्या के दो वर्ष बाद उनसे अपनी बातचीत का खुलासा किया। चूंकि मीडिया ने भी उनके इस खुलासे पर भरोसा नहीं किया इसलिए खुद उन्हें ही यह प्रमाणित करना पड़ा कि उनकी हेमंत करकरे से बात हुई थी। बावजूद इसके यह साबित नहीं हुआ कि इस बातचीत में करकरे ने वही कहा था जैसा दिग्विजय सिंह ने दावा किया और इस सवाल का जवाब तो आज तक नहीं मिला कि वह दो साल तक मौन क्यों रहे?


दिग्विजय सिंह ने लोगों को तब भी चौंकाया था जब उन्होंने हाल ही में मुंबई में हुए आतंकी हमले के बाद कहा था कि इसके पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का हाथ हो सकता है। इस आरोप से संघ विरोधी भी सन्न रह गए होंगे। जो ज्यादा सन्न हुए होंगे उनकी प्रतिक्रिया के बारे में अनुमान लगाना कठिन नहीं। दिग्विजय सिंह को इसके लिए भी याद किया जाता है कि वह केंद्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम को बौद्धिक रूप से अहंकारी बता चुके हैं। ऐसा उन्होंने उनके नक्सलियों से निपटने के तौर-तरीकों के विरोध में कहा था। हाल ही में उन्होंने अपने ब्लॉग में चिदंबरम की यह कहकर खिंचाई की कि उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि आंतरिक सुरक्षा के लिए गृहमंत्री जिम्मेदार हैं या राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार? शायद दिग्विजय सिंह को यह पता नहीं होगा कि जिन न्यूज वेबसाइट्स पर पहले-पहले यह खबर आई कि उन्होंने दस वेबसाइट्स के खिलाफ एफआइआर दर्ज कराई है उनमें भी उनके खिलाफ भद्दी प्रतिक्रियाएं व्यक्त की गई हैं। नि:संदेह उस तरह की टिप्पणियों का समर्थन नहीं किया जा सकता जैसी विभिन्न वेबसाइट्स में दिग्विजय सिंह के खिलाफ की गई हैं और इस संदर्भ में सोशल नेटवर्किग साइट्स समेत न्यूज वेबसाइट्स से सतर्कता बरतने की अपेक्षा है, लेकिन ऐसी ही अपेक्षा दिग्विजय सिंह से भी की जाती है।


लेखक राजीव सचान दैनिक जागरण में एसोसिएट एडीटर हैं


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