Menu
blogid : 133 postid : 1629

संकट का सतही समाधान

संपादकीय ब्लॉग
संपादकीय ब्लॉग
  • 422 Posts
  • 640 Comments

Sanjay Gupt2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में गृहमंत्री पी. चिदंबरम की भूमिका को संदेह के घेरे में लाने वाले बहुचर्चित नोट के संदर्भ में भले ही वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी के वक्तव्य के बाद केंद्र सरकार के दो दिग्गज मंत्रियों की तनातनी पर तात्कालिक रूप से विराम लग गया हो, लेकिन यह स्पष्ट नजर आ रहा है कि यह समाधान सतही ही है। चिदंबरम और सरकार को तब तक राहत नहीं मिलने वाली जब तक सुप्रीम कोर्ट और संयुक्त संसदीय समिति भी इस नोट को महत्वहीन न करार दे। इस पर आश्चर्य नहीं कि वित्तमंत्री के स्पष्टीकरण और उस पर गृहमंत्री की ओर से संतोष जताए जाने के बावजूद विपक्ष वित्त मंत्रालय के नोट के आधार पर चिदंबरम की घेरेबंदी जारी रखे हुए है और उसकी ओर से लगातार उनके इस्तीफे की मांग की जा रही है। चिदंबरम के खिलाफ यदि मुख्य विपक्षी दल भाजपा के साथ-साथ वामपंथी दल भी आक्रामक हैं तो इसका कारण इस नोट की गंभीरता ही है, जिसे वित्त मंत्रालय की ओर से प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजा गया। इस नोट में यह कहा गया है कि यदि तत्कालीन वित्तमंत्री पी. चिदंबरम चाहते तो वह 2जी स्पेक्ट्रम की नीलामी पर जोर दे सकते थे। इस नोट की गंभीरता इसलिए भी बढ़ जाती है, क्योंकि इसे तैयार करने में न केवल वित्त मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी शामिल थे, बल्कि आफिस मेमोरेंडम का रूप लेने के पहले इसे प्रधानमंत्री कार्यालय के आला अधिकारियों ने भी देखा था।


सूचना अधिकार के तहत सार्वजनिक हुए इस नोट ने जिस तरह चिदंबरम को कठघरे में खड़ा किया उससे आम जनता के बीच यह धारणा उत्पन्न हुई कि संप्रग सरकार का नेतृत्व कर रही कांग्रेस के दो दिग्गज मंत्रियों के बीच सब कुछ ठीक नहीं। यह नोट किस तरह केंद्र सरकार के लिए एक संकट की तरह बन गया, इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि वित्तमंत्री को वाशिंगटन का दौरा समेटकर न्यूयार्क में प्रधानमंत्री से मुलाकात करनी पड़ी और चिदंबरम को प्रधानमंत्री के देश लौटने तक मौन धारण करना पड़ा।


चूंकि वित्त मंत्रालय के नोट से स्पेक्ट्रम आवंटन में चिदंबरम की भूमिका गंभीर सवालों के घेरे में आ गई इसलिए उनका आहत होना स्वाभाविक था। उनका आहत होना यह संकेत करता है कि स्पेक्ट्रम आवंटन के संदर्भ में तत्कालीन वित्त मंत्रालय ने नीलामी पर जोर न देने का जो निर्णय लिया उसमें वह अकेले शामिल नहीं थे। चिदंबरम ने नोट प्रकरण पर प्रणब मुखर्जी के बयान के बाद मामले को समाप्त घोषित कर दिया है, लेकिन इस संभावना से इंकार नहीं कि आने वाले समय में इस नोट को लेकर कुछ नए तथ्य सामने आ सकते हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि स्पेक्ट्रम आवंटन को लेकर प्रणब मुखर्जी और चिदंबरम के बीच जो विवाद सामने आया उसने यह संकेत भी दिया है कि न तो तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए. राजा ने सारे निर्णय अपने दम पर किए और न ही वित्त मंत्री के रूप में चिदंबरम इस स्थिति में थे कि वह पहले आओ, पहले पाओ की नीति के आधार पर स्पेक्ट्रम आवंटन की प्रक्रिया रोककर उसकी नीलामी पर जोर देते। राजा कोर्ट में चल रही सुनवाई के दौरान यह स्पष्ट रूप से कह भी चुके हैं कि उन्होंने स्पेक्ट्रम आवंटन के संदर्भ में सभी फैसले तत्कालीन वित्तमंत्री और प्रधानमंत्री की जानकारी में लिए थे और उन्हें गवाह के रूप में बुलाया जाना चाहिए। कांग्रेस राजा के कथन को एक अभियुक्त का बयान बताकर महत्वहीन करार दे रही है, लेकिन यह स्पष्ट है कि 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन पर संप्रग सरकार के पहले कार्यकाल में लिए गए उस निर्णय के संदर्भ में सामूहिक जिम्मेदारी लेने से बचा जा रहा जिसके चलते देश को 1.76 लाख करोड़ रुपये की चपत लगी।


2जी स्पेक्ट्रम आवंटन पर वित्त मंत्रालय के नोट से उपजे संकट के लिए कांग्रेस और सरकार ने जिस तरह विपक्षी दलों, और मीडिया को भी दोष दिया उसे हास्यास्पद ही कहा जाएगा। इस संदर्भ में प्रधानमंत्री ने तो यहां तक कह दिया कि विपक्षी दल मध्यावधि चुनाव के लिए बेचैन हो रहे हैं। केंद्रीय कानून मंत्री ने भी इस नोट को निर्जीव बताते हुए इसे वित्त मंत्रालय के कनिष्ठ अधिकारियों की टिप्पणी की संज्ञा दी, लेकिन प्रश्न यह है कि यदि यह नोट इतना ही महत्वहीन था तो फिर उसे 2जी घोटाले की जांच कर रही संयुक्त संसदीय समिति के सामने प्रस्तुत करने से क्यों बचा गया? प्रश्न यह भी है कि एक कथित निर्जीव नोट ने कांग्रेस के साथ-साथ पूरी सरकार को सांसत में क्यों डाल दिया? यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कांग्रेस की ओर से शुरू से 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन में हुए घोटाले और इसके चलते हुई राजस्व क्षति को दबाने-छिपाने की कोशिश की जा रही है। ऐसी ही एक नई कोशिश के तहत राजस्व क्षति के नए सिरे से आकलन की बातें की जा रही हैं। केंद्र सरकार और विशेषकर कांग्रेस की ओर से 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन के संदर्भ में चाहे जैसी सफाई क्यों न दी जाए, लेकिन तथ्य यही है कि इस घोटाले के कारण न केवल एक पूर्व केंद्रीय मंत्री जेल में हैं, बल्कि द्रमुक की एक सांसद कनीमोरी के साथ-साथ अनेक कंपनियों के आला अधिकारी भी जेल में हैं।


चिदंबरम की भूमिका पर उंगली उठाने वाला जो नोट सार्वजनिक हुआ उससे यह प्रतीति भी होती है कि 2जी मामले की जांच कर रही सीबीआइ भी सही दिशा में बढ़ नहीं पा रही है। यह जांच एजेंसी न केवल अंधेरे में तीर चला रही है, बल्कि केंद्र सरकार के दबाव में काम करने के आरोपों से भी नहीं बच पा रही है। यदि सीबीआइ वित्त मंत्रालय के नोट की अनदेखी कर देती है तो आम जनता इस नतीजे पर पहुंचने के लिए विवश होगी कि 2जी आवंटन को लेकर पर्दे के पीछे जो खेल हुआ उसे उजागर करने में इस जांच एजेंसी की दिलचस्पी नहीं है। जो भी हो, एक चिट्ठी को लेकर प्रणब मुखर्जी और चिदंबरम के बीच मनमुटाव को दूर करने के लिए हुए समझौते के बाद केंद्र सरकार और विशेषकर कांग्रेस ऐसे संकेत दे रही है कि वह विपक्ष के दबाव में नहीं आने वाली, लेकिन विपक्षी दल इतनी आसानी से इस मसले को छोड़ने वाले नहीं हैं। इसलिए और भी नहीं, क्योंकि अभी यह स्पष्ट होना शेष है कि जिस नोट ने न केवल दो दिग्गज केंद्रीय मंत्रियों को आमने-सामने ला दिया, बल्कि चिदंबरम की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए उसको तैयार करने के पीछे क्या मंशा थी? यदि यह मान भी लिया जाए कि यह नोट इस आशय से तैयार किया गया था कि सभी मंत्रालय स्पेक्ट्रम आवंटन विवाद पर समान नजरिया रखें तो भी इस सवाल का जवाब मिलना चाहिए कि आखिर इस नोट में चिदंबरम को कठघरे में क्यों खड़ा किया गया? एक सवाल यह भी है कि इस नोट पर सफाई देने में सरकार को एक सप्ताह क्यों लगा?


2जी घोटाले के संदर्भ में वित्त मंत्रालय के नोट के कारण चिदंबरम और साथ ही सरकार को अभी भी सवालों के घेरे में देख रहे हैं संजय गुप्त


Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply to shuklaomCancel reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh