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यह स्थापित सत्य है कि भारत में इस्लामी आतंकवादी हमलों का जनक मूलत: पाकिस्तान है। अपने इस खूनी एजेंडे को मूर्त रूप देने के लिए स्वाभाविक रूप से उसे स्थानीय सहायता की आवश्यकता पड़ती है। यह सहायता उसे बौद्धिक और साजिश को अंजाम देने वाले हाथों के रूप में चाहिए। भारत में यह खूनी खेल खेलते हुए पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय जगत में अपने दामन को खून के छींटों से बचाने की भी जरूरत पड़ती है। क्या यह सच नहीं कि भारत में कुछ लोग यदि यह सहायता उपलब्ध न कराएं तो पाकिस्तान के लिए अपने नापाक इरादों में सफल होना बहुत कठिन हो जाएगा?
आज विश्व में इस्लामी आतंक के खिलाफ भारी जनमत है। स्वाभाविक है कि भारत में समय-समय पर होने वाली आतंकी घटनाओं से पाकिस्तान अपने आप को दोषमुक्त करने का प्रयास करता है और इन घटनाओं (पाकिस्तान में होने वाली आतंकी घटनाओं के लिए भी) के लिए भारत और हिंदू समाज को लांछित करता आया है। अल्पकालिक राजनीतिक हितों के लिए भारत का एक वर्ग पाकिस्तान की इस घृणित साजिश के साथ आ खड़ा हुआ है, जिसकी बानगी समय-समय पर देखने को मिलती है।
विगत 26 दिसबर को मुंबई में ‘आरएसएस की साजिश 26/11’ नामक पुस्तक के विमोचन के अवसर पर कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने एक बार फिर मुंबई के आतकी हमलों में शहीद हुए हेमंत करकरे की मौत के लिए सघ को कठघरे में खड़ा किया। हालांकि कांग्रेस दिग्विजय सिह के बयानों से अलग होने का दावा करती है, किंतु वोट बैंक की राजनीति के कारण उन पर लगाम भी नहीं लगाना चाहती।
इस पुस्तक के लेखक अजीज बर्नी जैसे कलम के जिहादी भारत की बहुलतावादी संस्कृति को सम्मान देने का दिखावा तो करते हैं, परंतु अपनी पूरी बौद्धिक क्षमता उन तत्वों को बल प्रदान करने में लगाते हैं जो इस सनातन परंपरा को समाप्त करना चाहते हैं। बर्नी ने 26 सितबर की घटना के दोषी कसाब व पाकिस्तान को दोषमुक्त करते हुए भारत की जाच एजेंसियों, हिंदू सगठनों और अमेरिकी व इजरायली जासूसी संस्थाओं को उक्त आतंकी हमले का कसूरवार बताया है। बर्नी के अनुसार इंडियन मुजाहिदीन सघ द्वारा खड़ा किया गया सगठन है। वह इसे बजरंग दल का कोड नाम बताते हैं। बर्नी बताते हैं कि भारत में होने वाले सभी आतंकी हमले संघ और मोसाद की मिलीभगत से हुए, करकरे यही सच सामने लाने वाले थे और इसीलिए उनकी हत्या कर दी गई। उन्होंने पुस्तक में भारतीय फौज, जांच एजेंसियों और न्यायपालिका को लांछित किया है।
इस पुस्तक के विमोचन के अवसर पर राज्यसभा के उपसभापति रहमान खान ने एक कदम आगे बढ़ते हुए कहा, ‘आरएसएस की साजिश 26/11′ केवल मुंबई घटना की ओर ही नहीं, बल्कि उस मानसिकता की ओर भी इशारा करती है जिस मानसिकता ने गांधीजी की हत्या की। वह मानसिकता आज भी बनी हुई है।’ गांधीजी की हत्या के लिए संघ को कसूरवार ठहराना एक सोची-समझी रणनीति है। इस अवसरवादी राजनीति को संरक्षण देकर कांग्रेस वस्तुत: उसी कट्टरवादी मानसिकता को पोषित कर रही है जिसने इस देश का विभाजन कराया।
पिछले दिनों अमेरिकी पाखंड को उजागर करने वाली वेबसाइट विकिलीक्स ने कांग्रेस के दोहरे मापदंडों का भी खुलासा किया है। वेबसाइट ने कहा है कि मुंबई हमले के बाद कांग्रेस नेतृत्व ने मजहबी सियासत की थी। मुंबई हमलों के तुरंत बाद ही कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एआर अंतुले ने एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे की मौत के लिए मालेगाव बम विस्फोट के आरोपियों को ही जिम्मेदार ठहराने की कोशिश की थी। ससद पर हमला कर देश की सप्रभुता को चुनौती देने वालों में से एक की फांसी की सजा टाले रखना कांग्रेस की मजहबी राजनीति का ही परिणाम है।
कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने पिछले दिनों राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ को सभ्य समाज को लहूलुहान करने वाले सिमी के समकक्ष रखा था। हाल ही मे दिल्ली में सपन्न अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ और उससे जुड़े संगठनों पर आतंकी हमलों में शामिल होने का आरोप लगाया गया। देश का चालीस प्रतिशत भूभाग नक्सली हिंसा से ग्रस्त है, किंतु जब सुरक्षाकर्मी और एजेंसिया नक्सलियों और उनके शुभचितकों के खिलाफ कार्रवाई करती है तो सेकुलरिस्ट बुद्धिजीवियों व राजनीतिज्ञों की मंडली मानवाधिकार का प्रश्न खड़ा कर पुलिस प्रताड़ना का आरोप लगाती है। हाल में माओवादियों के हमदर्द व तथाकथित सामाजिक कार्यकर्ता विनायक सेन को छत्तीसगढ़ की रायपुर सत्र अदालत ने राजद्रोह का दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई है। इसे वामपंथी बुद्धिजीवी और दिग्विजय सिंह सरीखे लोग ‘अदालत का दुरुपयोग’ और ‘लोकतंत्र की हत्या’ बता रहे है।
पाकिस्तान प्रायोजित इस्लामी आतंक की वीभत्सता को ढकने की कोशिश कर दिग्विजय सिह, अजीज बर्नी, राहुल गाधी, रहमान खान आदि क्या पाकिस्तानी एजेंडे को ही साकार नहीं कर रहे? तमाम हिंदू उग्रवादियों के संघ से जुड़े होने का कांग्रेसी दुष्प्रचार निराधार है। संघ की विचारधारा का मूल बहुलतावादी सनातनी सस्कृति में समाहित है। अमेरिका में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए आतंकी हमले से लेकर भारत में अब तक की तमाम हिंसक घटनाओं की जिम्मेदारी जिन लोगों ने ली है उन्होंने खम ठोककर कहा है कि वे कुफ्र के खिलाफ जिहाद कर रहे हैं। उनका प्रेरणाश्चोत इस्लाम है और इस्लाम की सेवा में वे अपने प्राणों की बाजी लगाकर दूसरों के प्राण लेने के लिए तत्पर रहते हैं। क्या कभी किसी ने भी आतंक की घटना को अंजाम देते हुए हिंदू दर्शन को अपना प्रेरणाश्चोत बताया है?
यह कौन सी मानसिकता है, जो इस मंडली को बाटला हाउस मुठभेड़ में इंस्पेक्टर शर्मा की शहादत को लाछित करने के लिए प्रेरित करती है और आजमगढ़ में बसे आतंकवादियों के साथ खड़ा करती है? कोयंबटूर हमले के आरोपी अब्दुल नसीर मदनी को पैरोल पर रिहा कराने के लिए जो मंडली छुट्टी वाले दिन सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित करती है वह स्वामी लक्ष्मणानद की बर्बर हत्या और अब स्वामी असीमानद की प्रताड़ना पर खामोश क्यों रहती है? क्या यह सच नहीं कि अलग पाकिस्तान की जिन्ना की मांग कभी मूर्त रूप नहीं ले पाती, यदि उन्हें कम्युनिस्टों का बौद्धिक समर्थन नहीं मिला होता? क्या यह सत्य नहीं कि जिस कुनबे ने पहले पाकिस्तान के जन्म के लिए काम किया वह आज राजनीतिक स्वार्थ के कारण पाकिस्तानी एजेंडे को साकार करने में लगा है?
[बलबीर पुंज: लेखक भाजपा के राज्यसभा सांसद हैं]
Source: Jagran Yahoo
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