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साइबर जंग की चुनौती

संपादकीय ब्लॉग
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विकिलीक्स के खुलासे ने एक नए तरह के प्रकरण की ओर दुनिया का ध्यान खींचा है कि आने वाले समय में साइबर व‌र्ल्ड से किस तरह की चुनौतियां और खतरे हैं। विकिलीक्स ने जिस स्तर पर और जितनी तादाद में गोपनीय सूचनाओं को उजागर किया है, वह अभूतपूर्व है। अभी तक राष्ट्रीय स्तर पर छोटे-मोटे स्तर पर सूचनाएं हैक करने की घटनाएं सामने आई थीं, लेकिन पहली बार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न राष्ट्रों की अति गोपनीय और संवेदनशील सूचनाओं को एक साथ हैक किया गया और उन्हें दुनिया के सामने लाया गया। वास्तव में विकिलीक्स पत्रकारिता का एक नया स्वरूप भी है, जो अभी अपने शुरुआती दौर में है। नब्बे के दशक में वर्ड वाइड वेब आया फिर ई-मेल और सोशल नेटवर्किग और अब विकिलीक्स जैसे नए माध्यम। इस तरह यह एक नए युग की शुरुआत है, जहां से सूचना एवं संचार क्रांति के एक नए स्वरूप का अध्याय खुल रहा है। आने वाले समय में यह और भी मजबूत होगी, जिससे अंतत: लोकतंत्र का ही भला होगा।


पत्रकारिता की तरह ही डिजिटल माध्यमों द्वारा खुलासा करने वाले व्यक्ति से भी यह नहीं पूछा जाना चाहिए कि उसे ये सूचनाएं कहां से, किससे और किस तरह प्राप्त हुई हैं। इसके अलावा ध्यान दिए जाने योग्य एक और बात यह है कि अमेरिका एकमात्र देश नहीं है जिसकी सूचनाओं का खुलासा विकिलीक्स ने किया हो। इससे पहले भी विकिलीक्स अनेक देशों की गोपनीय सूचनाओं का खुलासा कर चुका है। इसलिए यह सहज सवाल पूछा जा सकता है कि तब अमेरिका क्यों सोया हुआ था? असांजे ने जो कुछ किया है वह अपने पेशे की जरूरत और कर्तव्यों के निर्वाह के तौर पर किया है और इसमें उनका व्यक्तिगत लाभ अथवा स्वार्थ नहीं था। इस कारण असांजे की गिरफ्तारी के बाद साइबर स्वतंत्रता के नाम पर हैक्टिविस्टों ने विश्वव्यापी साइबर गुरिल्ला युद्ध की घोषणा की और उस पर अमल भी शुरू कर दिया। दरअसल, नैतिकतावादी हैकर मानते हैं कि विकिलीक्स का खुलासा पारदर्शिता को बढ़ाने के लिए किया गया है। इसमें कुछ भी गलत नहीं है और ऐसा करना उनका अधिकार है। इस गुस्से और आक्रोश को व्यक्त करने के लिए ही ऑपरेशन एनोन और ऑपरेशन पे बैक के तहत मास्टरकार्ड, पे पाल, अमेजन और स्विस बैंक के एकाउंट को हैक करने की कोशिश की गई। यहां यदि यह मान भी लिया जाए कि असांजे गलत नहीं हैं तो भी उनके समर्थक हैक्टिविस्टों को एथिकल हैकिंग के सिद्धांतों के तहत सही नहीं ठहराया जा सकता।


वैसे यह काफी अरसे से कहा जा रहा है कि आज दुनिया के सामने परमाणु बम से भी कहीं ज्यादा बड़ा खतरा साइबर व‌र्ल्ड से है। 21वीं सदी सूचना एवं तकनीक की सदी है और यदि दुनिया में तीसरा विश्व युद्ध लड़ा जाएगा तो वह लड़ाई विध्वंसक हथियारों, गोला-बारूद अथवा परमाणु बम का नहीं, बल्कि साइबर युद्ध का होगा। जो देश इसमें जितना ज्यादा दक्ष और सक्षम होगा वह अन्य देशों की सूचनाओं और इलेक्ट्रॉनिक गतिविधियों पर उतनी ही आसानी से नियंत्रण पा लेगा। इस समय यह सवाल महत्वपूर्ण है कि क्या इस तरह के साइबर क्राइम और समस्याओं से लड़ने के लिए राष्ट्रीय अथवा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हमारी कोई सशक्त तैयारी है? यदि हम भारत की ही बात करें तो मुझे नहीं लगता कि इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए अथवा ऐसा करने वाले व्यक्ति को सजा देने के लिए हमारे पास पर्याप्त तकनीकी दक्षता अथवा सशक्त निरोधक कानून है। आधिकारिक गोपनीयता कानून यानी ऑफिसियल सीक्रेट एक्ट और भारतीय सूचना तकनीक कानून-2000 अवश्य हमारे पास है, लेकिन इनमें विकिलीक्स जैसी घटनाओं को रोकने अथवा ऐसे कामों में शामिल होने वाले व्यक्तियों को सजा दिला पाने लायक प्रावधान नहीं है। ऐसे में यदि कल किसी आतंकवादी संगठन द्वारा भी ऐसा ही कोई काम किया जाता है तो हम स्पष्ट कानूनों के अभाव में उन पर प्रभावी कार्रवाई कर पाने में खुद को लाचार और विवश ही पाएंगे।



उल्लेखनीय है कि साइबर क्राइम करने वाले व्यक्ति अथवा संस्था पर कानूनी कार्रवाई उस देश के कानून के मुताबिक ही की जा सकती है, जहां पर कि यह संस्था स्थित है अथवा जिस देश में बैठकर यह काम किया गया है। हैकिंग के कामों में जुटे लोग इस तरह की कानूनी खामियों का भरपूर फायदा उठाते हैं और अपने दफ्तर उन देशों में ही खोलते हैं, जहां के कानून में उनके बच निकलने की गुंजाइश होती है। उदाहरण के तौर पर विकिलीक्स के संस्थापक असांजे को ही लें। वह आस्ट्रेलियाई नागरिक हैं, लेकिन अपना दफ्तर स्वीडन में खोल रखा है, क्योंकि वहां के साइबर कानून इतने सशक्त नहीं हैं कि उन्हें पकड़ा जा सके। अभी तक साइबर अपराधों को रोकने के लिए सर्वस्वीकृत अंतरराष्ट्रीय कानूनों का अभाव है। इस कारण आज मजबूत राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति के अलावा अंतरराष्ट्रीय साइबर स्पेस नियमन कानूनों की भी जरूरत है, जिसके लिए त्वरित गति से काम करने की आवश्यकता है।


आज यह सभी राष्ट्रों और सरकारों के लिए चिंता का विषय है कि उनके पास इस चुनौती से निपटने के लिए कोई प्रतिरोधक तंत्र नहीं है। कुल मिलाकर कहा जाए तो विकिलीक्स का एक प्रशंसनीय योगदान यह है कि इसने सोती हुई सरकारों को जगाने का काम किया है। अब यह राष्ट्रों की समस्या है कि वे किस तरह इस चुनौती को लेते हैं और आपस में कोई तालमेल बिठाते हैं ताकि भविष्य में विभिन्न देशों की राष्ट्रीय सुरक्षा, संप्रभुता और अखंडता प्रभावित न हो सके।


[पवन दुग्गल: लेखक साइबर मामलों के विशेषज्ञ है]

Source: Jagran Yahoo

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