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युवा नेतृत्व की दरकार है देश को

संपादकीय ब्लॉग
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Youth Politiciansकिसी भी देश की बुनियाद होती है राजनीति. राजनेता लोगों का प्रतिनिधित्व करता है और देश को उन्नत बनाने में योगदान देता है. भारत में राजनेताओं को हम दो श्रेणी में बांट सकते हैं. पहले वह जो अपने पुराने विचारों और मापदंडों के आधार पर वर्षों से देश पर राज करते आ रहे हैं. दूसरे युवा राजनेता, जिनके विचार बदलते हुए सामाजिक परिवेश के अनुसार नवीन है, और जो देश को नई राह की ओर अग्रसर करने का माद्दा रखते हैं.

आजादी से अब तक भारत में बहुत से परिवर्तन आए हैं. जहां आज भारत विश्वस्तर पर एक आर्थिक महाशक्ति बनकर उभरा है वहीं तकनीकी क्षेत्र में हमने असीम सीमाएं नापी हैं. हरित क्रांति से लेकर तकनीकी क्रांति सभी ने देश को उन्नत बनाया है. सभी दिशाओं में बदलाव देखे गए. लेकिन इन सब के बावजूद राजनीति एक ऐसा क्षेत्र रहा है, जिसमें नाम मात्र का बदलाव हुआ. भारतीय राजनेता अभी भी अपनी पुरानी मानसिकता के आधार पर राज करते हैं, उनके विचार उनके पूर्वजों से बहुत मेल खाते हैं. लेकिन क्या आज के युग में यह विचार देश का बहुमुखी विकास कर सकते हैं.

‘प्रणव दा’ की मानें तो निज़ी और सरकारी क्षेत्रों की तरह राजनीति में भी रिटायरमेंट की भी उम्र होनी चाहिए. हमारे यहां अक्सर देखा जाता है कि राजनेता तब तक राज करते हैं जब तक वह चाहते हैं. यही नहीं बुढ़ापे का जीवन जी रहे यह राजनेता कई प्रमुख पद भी ग्रहण करते रहते हैं जिसके फलस्वरूप युवाओं को मौका नहीं मिल पाता. इन राजनेताओं का कहना है कि आज के युवा नेता इस लायक नहीं हुए हैं कि उनके कंधों पर देश को चलाने की ज़िम्मेदारी दी जाए. दसों साल लगते हैं एक कुशल राजनेता बनने के लिए अतः अगर राजनीति से हम लोग रिटायरमेंट लेकर घर बैठ जाएं तो युवाओं का सही से मार्गदर्शन नहीं हो पाएगा.

Young_Policticsअगर ऐसी ही बात है तो क्यों हम राजीव गांधी को अभी तक याद करते हैं. भारत के सबसे युवा प्रधानमंत्री राजीव गांधी जिसने 40 वर्ष की उम्र में ही देश की बागडोर संभाल ली थी, को अभी भी पूरा देश क्यों याद रखता है? इस प्रश्न का उत्तर सरल है – “केवल उनके कार्यों के कारण”. देश को तकनीकी विकास की ओर ले जाने में जितना बड़ा हाथ राजीव गांधी का था उतना शायद ही किसी का रहा हो. उस समय यह प्रश्न क्यों नहीं उठा कि राजीव जी केवल चालीस साल के युवा नेता हैं. और राजनीति में तो चालीस की उम्र में तो व्यक्ति बच्चा कहलाता है.

ब्राज़ील, चीन, रूस जैसे विश्व की महाशक्तियों ने इस गहन मुद्दे को बहुत पहले समझ लिया था और जिसे अपनाने में उन्होंने ज़रा सा भी समय नहीं लगाया तथा सफलता पाई. अब देखना है कि क्या हमारे देश के राजनेता युवा शक्ति का लोहा मानते हैं और देश की बागडोर युवा कंधों पर सौंपते हैं.

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