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नए भारत के उदय की आहट

संपादकीय ब्लॉग
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भारत के लगभग हर क्षेत्र में गिरावट और अनाचरण के जुगुप्साजनक वातावरण में एक नए भारतोदय की लालिमा लिए विजेंदर सिह, मजीत कौर, साइनी जोस अश्विनी अकुंजी जैसे लोग उभरकर आते दिखते हैं। विकास के लिए समर्पित मुख्यमंत्रियों का राजनीति में उभार ताजा अहसास दिलाता है। यहा तक कि काग्रेस को भी आध्र में एक साफ-सुथरी और बेदाग छवि वाले किरण कुमार रेड्डी को लाना पड़ा। अगर नीतीश कुमार, रमन सिह, शिवराज सिंह चौहान, नरेंद्र मोदी, प्रेमकुमार धूमल और रमेश पोखरियाल निशक अच्छा काम कर रहे हैं तो किरण कुमार रेड्डी भी आध्र प्रदेश की जनता को विकास और सुशासन दें, यह कामना करना देश-विरोधी काम नहीं होगा।


आम जनता नफरत और अहंकार की राजनीति का पाखंड देख-देखकर थक गई है। नए भारत को चाहिए ऐसे राजनेता जो नएपन की ताजगी का चेहरा लिए हुए हों और जो विकास तथा साफ-सुथरे शासन की गारंटी दे सकें, जिनमें अहंकार न हो और भले ही अपने लिए दो पैसे कम कमाएं, लेकिन जनता को भरोसा दिला सकें कि वे ईमानदार और साफ नीयत वाले नेता हैं। मजहब, भाषा और सकीर्णता के आधार पर अतिवादी शब्दों का प्रयोग कर शोर और बड़बोलेपन की राजनीति ने देश को तबाह ही किया है। पत्रकारिता में भी यही दौर देखने को मिल रहा है। जो पुराने जमे-जमाए मठाधीश पत्रकार थे वे ध्वस्त हुए हैं और उनकी जगह नौजवानी का नया तराना लिए नए पत्रकार उभरे हैं।


यह नया दौर उस समय देश के हताश मानस को ढांढस तथा हिम्मत बंधाता है जब चारों ओर हर क्षेत्र के ‘नायक’ आरोपों से घिरे हैं। पिछले दिनो मैं माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के नए छात्रों से मिलने भोपाल गया था। उनमें जो हिम्मत और कलम का जुझारुपन देखने को मिला वह बाजार में बैठे राजनीति और पत्रकारिता के धुरंधरों को चुनौती देता प्रतीत हुआ। वे गाव, गरीब तथा दूरस्थ भारतीय क्षेत्रों की जानकारी अखबार में देने के लिए लालायित दिखे। पत्रकारिता में जो भी नकारात्मक दौर दिख रहा है वह जल्दी खत्म होगा, इसमें कोई शक नहीं। अच्छी बात यह है कि देश के गैर-राजनीतिक क्षितिज पर वे लोग उभरकर मजबूत बन रहे हैं जिनकी अपनी छवि बेदाग और साफ-सुथरी है तथा वे अपने जीवन के उदाहरण से ऐसा माहौल बनाने में सक्षम दिख रहे हैं जो वर्तमान भ्रष्टाचार तथा राजनीतिक पाखंड में लिपटे नेताओं को पतझड़ के पत्ते की तरह बेजान बनाकर स्वय गिरने पर मजबूर कर देगा।


सबसे अच्छी बात यह है कि ये नए पत्रकार राजनेताओं को अधिक महत्व देना नहीं चाहते। वास्तव में वर्तमान राजनीतिक अहंकार और कदाचरण के पीछे एक कारण यह भी है कि मीडिया में राजनेताओं को उनके वास्तविक कद से कई गुना अधिक महत्व दिया जाता है। जिस दिन भारतीय पत्रकारिता में राजनीतिक समाचार पहले पन्ने से भीतर चले जाएंगे और पहले पन्ने पर देश के किसी भी गैर-राजनीतिक क्षेत्र के महत्वपूर्ण समाचार छपने लगेंगे उस दिन वास्तविक भारत उजाले में आएगा। आज भी देश के वास्तविक नायक और लोकप्रिय व्यक्ति वे हैं जो कम बोलते हैं, उपलब्धिया हासिल करके दिखाते हैं तथा अपने अर्जित कौशल के बल पर सफलता हासिल करते हैं। पिछले दिनों मुझे नागपुर जाना हुआ, वहा नितिन गडकरी के एक नए रूप का परिचय मिला। उन्होंने 10 हजार से अधिक लोगों के लिए रोजगार तथा आजीविका के साधन जुटाए हैं। मुस्लिम लड़कियों को इंजीनियरिंग तथा टेक्नालॉजी में प्रशिक्षण के लिए एक बड़े महाविद्यालय को बनवाने में मदद दी। राजनीति में अपने कर्तव्य और बाहुबल से आर्थिक विकास और अर्थ उपार्जन का पारदर्शी उदाहरण प्रस्तुत कर किसी के भरोसे पार्टी चलाने के बजाय अपने दम पर पार्टी का खर्च उठाने की साम‌र्थ्य हासिल की। नतीजा यह निकला है कि विदर्भ क्षेत्र में हजारों नौजवान सकारात्मक दृष्टि से पार्टी से जुड़े। जब भी नितिन गडकरी नागपुर में होते हैं, उनसे मिलने आने वाले लोगों में अधिकाश सामान्य किसान, अध्यापक और परिस्थितियों के शिकार लोग होते हैं। यह तथ्य बहुत कम लोगों को पता होगा कि नितिन अपनी आय से अब तक 1500 से अधिक हृदय के ऑपरेशन करवाने में मदद दे चुके हैं। देश में ऐसे अनेक साफ-सुथरी छवि वाले नेता हैं, जो विभिन्न पार्टियों में हैं और उन सबके प्रति जनता में एक आदर्श सूचक छवि बनी है। यही नेता आज सोनिया और मनमोहन सिह के जंग लगे नेतृत्व के समक्ष सूर्योदय का आभास कराते हैं।


आज के कलुषमय राजनीतिक वातावरण में ऐसा आशावाद सामान्यत: अप्रासगिक करार दिया जा सकता है। इस राजनीति में जिसमें सिवाय ईष्र्या, विद्वेष और धनाधारित अहंकार के और कुछ दिखता नहीं, वहा नए सहज और सौम्य राजनेताओं का उदय गूलर के फूल की तरह महसूस हो सकता है, पर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जब कभी, जहा कहीं ऐसे व्यक्ति का उदय हुआ है, जनता ने उसे आगे बढ़कर अपनाया है। काग्रेस में अनेक वरिष्ठ नेता ससद के केंद्रीय कक्ष में यह कहते मिल जाते हैं कि भाई राहुल नहीं कर पाएंगे। समझ नहीं आता क्यों ज्योतिरादित्य सिधिया या सचिन पायलट जैसे लोगों को आगे नहीं लाया जा रहा, जो राहुल से तो ज्यादा अच्छी तरह से पढ़े-लिखे नौजवानों को प्रभावित कर सकते हैं। नई पीढ़ी का भारतीय नागरिक नई राजनीति चाहता है। खेल, पत्रकारिता, विज्ञान, प्रशासन तथा उद्योग में देश को नए छंद, नए मुहावरे और नए प्रयोगों को देखने की कसमसाहट है। इसलिए आज हर दिशा में और हर क्षेत्र में गलत आचरण का कुहासा दिख रहा है वह स्थायी नहीं रहेगा, यह भरोसा करके नए भारत के उदय की आहट सुनें।


लेखक तरुण विजय राज्यसभा सदस्य हैं

Source: Jagran Yahoo

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