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सत्य, धर्म और शक्ति का प्रतीक – दशहरा

संपादकीय ब्लॉग
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भारत में इन दिनों त्यौहारों का सीजन चल रहा है. नवरात्र के साथ ही दशहरे का सबको बेसब्री से इंतजार है. रावण-वध और दुर्गा पूजन के साथ विजयदशमी की चकाचौंध हर जगह होगी. दशहरे का त्यौहार जहां बच्चों के मन में मेले के रुप में आता है तो बड़ों को रामलीला की याद और स्त्रियों के लिए पावन नवरात्र के रुप में यादों को जगाता है. यह त्यौहार प्रतीक है कि असत्य और पाप चाहे कितने भी बड़े हों लेकिन अंत में जीत हमेशा सत्य की ही होती है. इस संसार में कहीं भी असत्य और पाप का साम्राज्य ज्यादा नही टिकता.

dussehra-2009-14अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को दशहरे का आयोजन होता है. भगवान राम ने इसी दिन रावण का वध किया था. इसे असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है. इसीलिये इस दशमी को विजयादशमी के नाम से जाना जाता है. दशहरा वर्ष की तीन अत्यन्त शुभ तिथियों में से एक है, अन्य दो हैं चैत्र शुक्ल की एवं कार्तिक शुक्ल की प्रतिपदा. इसी दिन लोग नया कार्य प्रारम्भ करते हैं, शस्त्र-पूजा की जाती है. प्राचीन काल में राजा लोग इस दिन विजय की प्रार्थना कर रण-यात्रा के लिए प्रस्थान करते थे. इस दिन जगह-जगह मेले लगते हैं. दशहरा का पर्व दस प्रकार के पापों- काम, क्रोध, लोभ, मोह मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी के परित्याग की सद्प्रेरणा प्रदान करता है.

रामलीला का आयोजन

दशहरा से दस दिन पूर्व ही देश के कोने-कोने में रामलीलाओं का आयोजन शुरू हो जाता है जिसमें प्रभु राम के जीवन का वर्णन दिखाया जाता है और दशहरे वाले दिन रावण का संहार किया जाता है. पूरे देश भर में इस दिन विभिन्न जगहों पर रावण, कुम्भकरण तथा मेघनाथ के बडे-बडे पुतले लगाए जाते हैं और शाम को श्रीराम के वेशधारी युवक अपनी सेना के साथ पहुंच कर रावण का संहार करते हैं. यह आयोजन सभी आयु वर्ग के लिए आकर्षण का केंद्र होते हैं.

राम-रावण युद्ध की अहम वजह थी रावण द्वारा राम की पत्नी सीता का अपहरण एवं रावण का बढ़ता अत्याचार. इस कहानी के सहारे जनता में यह संदेश दिया जाता है कि अगर आम आदमी भी चाहे तो वह पुरुषोत्तम बन सकता है और अत्याचार के खिलाफ लड़ना ही बहादुरी है.

the-day-of-victory-of-good-over-evil-dussehra3दुर्गा पूजा बंगाल में आज भी शक्ति पूजा के रूप में प्रचलित है. अपनी सांस्‍कृतिक विरासत के लिए मशहूर बंगाल में दशहरा का मतलब है दुर्गा पूजा. बंगाली लोग पांच दिनों तक माता की पूजा-अर्चना करते हैं जिसमें चार दिनों का खासा अलग महत्व होता है. ये चार दिन पूजा का सातवां, आठवां, नौवां और दसवां दिन होता है जिसे क्रमश: सप्तमी, अष्टमी, नौवीं और दसमी के नामों से जाना जाता है. दसवें दिन प्रतिमाओं की भव्य झांकियां निकाली जाती हैं और उनका विसर्जन पवित्र गंगा में किया जाता है. गली-गली में मां दुर्गे की बड़ी-बड़ी प्रतिमाओं को राक्षस महिषासुर का वध करते हुए दिखाया जाता है.

देश के अन्य शहरों में भी हमें दशहरे की धूम देखने को मिलती है. गुजरात में जहां गरबा की धूम रहती है तो कुल्लू का दशहरा पर्व भी देखने योग्य रहता है.

दशहरे का सांस्कृतिक पहलू भी है. यह एक पर्व एक ही दिन अलग-अलग जगह भिन्न-भिन्न रुपों में मनाया जाता है लेकिन फिर भी एकता देखने योग्य होती है.

इस साल भी हमें आशा है कि दशहरे का त्यौहार आपके जीवन में बुराइयों का अंत करेगा और समाज में नई ऊर्जा और उत्साह का संचार करेगा.

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