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दिल्ली कॉमनवेल्थ गेम्स के आयोजन की तैयारियों को लेकर मीडिया के रुख में एक नई बात देखने को मिली. कॉमनवेल्थ गेम्स के बारे में करीब साल भर से मीडिया की सरगर्मियां बहुत तेज हो गयीं थी. तैयारियों की हालत के बारे में जनता को लगातार नए अपडेट्स मिल रहे थे. मंत्रालय से लेकर फेडरेशन तक पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए जा रहे थे और उधर से भी सफाई में कई बातें कही जा रही थीं.
पूरे देश में ये माहौल व्याप्त हो चुका था कि कहीं ना कहीं कुछ गड़बड़ी हो रही है. लोग सतर्क और जागरुक हो रहे थे. देश की लाज बचाने की मुहिम छेड़ी जाने लगी. इस बीच एक और बात ये देखने को मिली कि कुछ बुद्धिजीवी वर्ग मीडिया पर ही आरोप लगाने लगा. ये वर्ग मीडिया द्वारा दिए जाने वाली जानकारियों की सत्यता पर ही सवाल उठाने लगा. इसे केवल टीआरपी और व्यूवरशिप बढ़ाने की होड़ बताया जाने लगा. वाकई जनता के सामने एक दुविधा भरी स्थिति पैदा हो गयी.
लेकिन अचानक मीडिया का रुख बदल गया. खेलों के शुरू होने के ठीक कुछ दिन पूर्व से मीडिया सब कुछ बेहतर ढंग से निपट जाने की वकालत करती दिखने लगी. जनता में सकारात्मकता भरी जाने लगी. भारत की छवि को लेकर जो चिंताएं मौजूद थीं वह बहुत जल्दी मिटने लगीं और पूरा देश राष्ट्रमंडल खेलों के स्वागत में जुट गया.
अब देखने वाली बात ये है कि ऐसा क्यूं किया मीडिया ने. बिलकुल दो विरोधाभाषी रूपों में मीडिया का यह तरीका बहुत से लोगों की समझ में नहीं आया होगा. इसे ध्यान से समझने की जरूरत है. आज के युग में जबकि भ्रष्टाचार का चरम है और शासन-प्रशासन में पारदर्शिता की मांग तेज हो रही है तो जन भागीदारी को उपेक्षित नहीं किया जा सकता है. मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ होने के कारण अपनी जिम्मेदारियों को बेहतर ढंग से निभाने की कोशिश कर रहा है. यकीनन दोषों को चिन्हित करके ही उनका उपचार किया जा सकता है. कॉमनवेल्थ की पूरी तैयारी मीडिया के द्वारा जनता के सामने रही. इसलिए भ्रष्टाचार की गुंजाइश कम है. लेकिन यदि आयोजन में संलग्न लोगों को ये भय नहीं होता कि उनकी कड़ी निगरानी हो रही है तो आप स्वयं सोच सकते हैं कि तब क्या स्थिति होती. यानी आज ज्यादा सतर्क और तेज मीडिया की मौजूदगी लोकतंत्र को सही मायने में सफल लोकतंत्र की ओर ले जाने में महती भूमिका निभा रही है.
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