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देश की शान बढ़ाने, दुनियां में नाम रोशन करने और भारत को महाशक्ति बनाके विकसित देशों की कतार में खड़ा कर देने के वादे के साथ कॉमनवेल्थ गेम्स के आयोजन का बीड़ा भारत सरकार ने जब उठाया था तो किसी ने ये कल्पना भी नहीं की होगी कि हमारे राजनीतिज्ञ स्थिति को इतनी बुरी बना देंगे कि दो शब्द बोलना भी नामुमकिन हो जाएगा.
पूरा तंत्र कई बरसों से जिस एक काम के लिए पूरा ध्यान देता नजर आ रहा है वह है कॉमनवेल्थ गेम्स की तैयारी और उसका आयोजन शानदार ढंग से संपन्न करना. इस विशिष्ट आयोजन के लिए हजारों करोड़ रुपए बिना किसी शिकन के जारी किए गए और ये दावा अभी तक किया जा रहा है कि आप चिंता ना कीजिए दिल्ली पूरी तरह तैयार है और अगर चौबीस घंटे में भी आयोजन करवाना हो तो भी कोई बात नहीं. सरकार और उसके नुमाइंदे गेम्स के लिए सारी कवायद पूरी हो जाने का दम भर रहे हैं और अपनी मूंछें ऐंठते हुए जनता को ख्याली पुलाव परोस रहे हैं.
कॉमनवेल्थ गेम्स फेडरेशन के सीईओ और चेयरमैन माइक हूपर और फेनेल ने पूरी तैयारी पर ही सवालिया निशान लगा दिया है. अभी भी खेल गांव पूरी तरह से तैयार नहीं है दिल्ली की बात ही छोड़ दीजिए. जब विदेशी खिलाड़ी आएंगे तो खेल आयोजन समिति उन्हें किस तरह सारी सुविधाएं मुहैया कराएगी ये भगवान ही जाने. यानी अब सारी तैयारी का ईश्वर ही मालिक है आयोजन समिति तो सिर्फ यही कहने की स्थिति में है.
पूर्व केंद्रीय मंत्री मणि शंकर अय्यर ने कुछ समय पूर्व कहा था कि मैं बहुत खुश होऊंगा अगर इंद्र देवता दिल्ली पर मेहरबान हों और कॉमनवेल्थ गेम्स का बेड़ा गर्क हो और अब कह रहे हैं कि कॉमनवेल्थ गेम्स सर्कस है और वह स्वयं इसके जोकर. ये सब देखते-सुनते यही लग रहा है जैसे सरकार खेलों के महाकुम्भ के आयोजन की नहीं वरन किसी हंसी के अखाड़े की तैयारी कर रही हो.
इस कॉमनवेल्थ गेम्स की तैयारी ने भ्रष्टाचारियों को एक नया और बहुत बड़ा अवसर मुहैया करा दिया. पूरा आयोजन विवादों से घिरा पड़ा है. आरोप लगते जा रहे हैं और सफाई में जो कुछ कहा जा रहा है उसी से लग रहा है कि कहीं भारी गड़बड़ है. कुल मिलाकर स्थिति काफी संवेदनशील हालत में पहुंच चुकी है किंतु अब चारा क्या बचा है.
अब तो बस यही गुजारिश है भगवान से कि “हे ऊपर वाले लाज तुम्हारे हाथों में है किसी तरह से बेड़ा पार करा दो नीचे वालों ने तो बेड़ा गर्क करने में अपनी पूरी ताकत लगा ही दी है.”
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