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कश्मीर में अमन की चुनौती

संपादकीय ब्लॉग
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कश्मीर के बिगड़ते हालात के बारे में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ जम्मू-कश्मीर के दस भाजपा विधायकों की बैठक 5 अगस्त को हुई। बैठक में मनमोहन सिंह का रुख काफी सकारात्मक दिखा। यह प्रतिनिधिमंडल लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में मिला, जिसमें सुषमा स्वराज, अरुण जेटली, शांता कुमार, राजन सुशांत के साथ मैं भी उपस्थित था। प्रधानमंत्री ने स्पष्ट तौर पर कहा कि कश्मीर घाटी की वर्तमान दुरावस्था के लिए पाकिस्तान जिम्मेदार है जो वहा असंतोष भड़काकर कश्मीर मामले का अंतरराष्ट्रीयकरण करना चाहता है। प्रधानमंत्री ने स्वीकार किया कि कश्मीर में वर्तमान स्थिति अभूतपूर्व है और फिलहाल उनके सामने एक ही लक्ष्य है कि घाटी में अमन की स्थापना की जाए। वे कोई भी ऐसा कदम नहीं उठाना चाहेंगे जिससे सुरक्षा बलों के मनोबल पर असर पड़े। उन्होंने कहा कि भारतीय सुरक्षा बल बहुत अनुकरणीय ढंग से संयम एवं अनुशासन का पालन करते हुए कश्मीर में अपना कर्तव्य निभा रहे हैं।


यह सब सुनना तो अच्छा था, लेकिन इसका उपाय क्या है? सिवाय सर्वदलीय बैठक की योजना के मनमोहन सिंह और कुछ बता नहीं सके। आज कश्मीर में हालात जितने खराब हैं, उतने पहले कभी नहीं रहे। पाकिस्तान कश्मीर घाटी में आतंकवादियों को संगबाज बता कर सुरक्षा बलों को रक्षात्मक कार्रवाई के लिए विवश करने की रणनीति पर चल रहा है। वहा अली शाह गिलानी के नेतृत्व में हुर्रियत काफ्रेंस का आदेश बाजार और व्यवस्था मानने पर मजबूर है। जब गिलानी कहते हैं कि रविवार को बाजार खोले जाएं तो स्थानीय स्कूल और दुकानें ही नहीं, सरकार नियंत्रित जम्मू-कश्मीर बैंक की शाखाएं भी खुलती हैं। अब प्रस्ताव है कि इस्लामी रीति के अनुसार वहा रविवार की छट्टी के बजाय शुक्रवार को छुट्टी होनी चाहिए।


इसमें कोई शक नहीं कि उमर अब्दुल्ला घाटी के सबसे अलोकप्रिय व्यक्ति बन गए हैं, जिनके साथ उनकी पार्टी के लोग भी नहीं हैं। इस संदर्भ में सरकारी नीतियों द्वारा जम्मू और लद्दाख की अनदेखी वहा तीव्र विरोध की भावनाएं भड़का रही हैं। केंद्र की कश्मीर तुष्टीकरण की नीति का आज तक विषफल ही मिला है। क्षेत्र, जनसंख्या और राजस्व प्राप्ति में कश्मीर से अधिक होने के बावजूद केंद्र द्वारा जम्मू और लद्दाख के साथ सौतेला व्यवहार किया जाता है। चमनलाल गुप्ता ने 5 अगस्त की बैठक में मनमोहन सिंह से स्पष्ट कहा कि लद्दाख और जम्मू के प्रति केंद्र की अनदेखी कहीं वहा भी लोगों को हुर्रियत जैसे संगठन पैदा करने को मजबूर न कर दे, क्योंकि उन्हें लगता है कि जब तक उग्र तरीका न अपनाया जाए, केंद्र सुनेगा नहीं। श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने 1953 में ही नेहरू सरकार को चेतावनी देते हुए कहा था-एक ही देश में, अपने ही एक राज्य में दो निशान, दो विधान और दो प्रधान की पद्धति चलाना अलगाववाद को मजबूत करेगा तथा हमेशा के लिए कश्मीर नासूर बन जाएगा। आज तक देश नेहरू की कश्मीर नीति का नतीजा भुगत रहा है। देश में कश्मीर के पृथक एजेंडे के विरुद्ध असंतोष और गुस्सा है। वहा धारा 370 के कारण अलगाव को मजबूती मिली है। ‘पत्थरबाजी’ इसी का नतीजा है।


जम्मू-कश्मीर देश का एकमात्र मुस्लिम बहुल प्रांत है और वहीं अलगाव का जहर फैल रहा है। वहा इस्लाम के नाम पर आतंकवादियों ने स्थानीय नेताओं की मौन परस्त प्रत्यक्ष सहमति से हिंदुओं को अपमानित करके बाहर निकाल दिया है। श्रीनगर का तंत्र पूर्णत: सांप्रदायिक विद्वेष के आधार पर काम करता है। वहा लद्दाख के बौद्ध इतने संत्रस्त हैं कि उन्होंने श्रीनगर से मुक्ति के लिए लद्दाख को पृथक ‘केंद्र शासित प्रदेश’ बनाने का आंदोलन छेड़ा और स्थानीय शासन में बहुमत हासिल किया। ये हालात कश्मीर के प्रति एक सर्वागी नीति की माग करते हैं। यह निश्चित है कि कश्मीर के संगबाजों को नियंत्रित कर वहा के पाकिस्तान-समर्थक देशद्रोही तत्वों के विरुद्ध कड़ी और कार्रवाई होनी चाहिए, पर उनके नेताओं पर प्रहार पहले हों। वर्तमान स्थिति में कश्मीर के संदर्भ में राष्ट्रीय नेताओं को और सक्रिय होना होगा। कश्मीर नीति देशभक्ति और राष्ट्रीयता के आधार पर बनाई जानी चाहिए। गत मई और जून में मैं करीब 15 दिन श्रीनगर रहकर आया। वहा स्थानीय मुसलमानों के सक्रिय सहयोग से हम गत 57 वषरें में पहली बार डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का बलिदान दिवस सार्वजनिक समारोह में मना कर आए। वे कश्मीरी मुस्लिम क्या हमारे विश्वास और कृतज्ञता के पात्र नहीं? उनमें और संगबाजों में तो हमें फर्क करना ही होगा।


कश्मीर में हालात में सुधार के लिए कुछ कदम तुरंत उठाए जाने की आवश्यकता है। सर्वप्रथम तो सुरक्षा बलों को अधिक अधिकार एवं स्वतंत्रता दी जाए। दूसरे, स्थानीय अलगाववादी संगठनों को प्रतिबंधित कर उनके नेताओं को गिरफ्तार किया जाए। स्थानीय युवाओं से साथ वार्ता कर विद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों में नियमित शैक्षिक कार्य सुश्चित किया जाए। महिला संगठन कश्मीर की महिलाओं से संवाद स्थापित करें। केंद्र द्वारा राज्य को दिए जाने वाले धन के खर्च पर कड़ाई से निगरानी रखी जाए। जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख में केंद्रीय वित्तीय सहायता के न्यायपूर्ण प्रबंधन के लिए केंद्रीय सरकार की देखरेख में त्रिपक्षीय प्रबंध-मंडल बने जो हर क्षेत्र के प्रति किसी भी अन्याय की जाच करे एवं बजट का उचित आवंटन करे।

Source: Jagran Yahoo

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