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कश्मीर(Kashmir) का वर्तमान हिंसक घटनाक्रम क्या इंगित करता है? क्या कथित तौर पर सीआरपीएफ के हाथों दो लोगों के मारे जाने से सोपोर से लेकर अनंतनाग तक विरोध की आग धधक उठी? गृहमंत्री की मानें तो विगत 25 जून को सोपोर में अर्द्धसैनिक बलों द्वारा मारे गए दो लोग आम नागरिक नहीं, बल्कि आतंकी थे। फिर कश्मीर की सड़कों पर मानवाधिकार का झंडा क्यों? इस घटना की आड़ में देश-विदेश के राष्ट्रविरोधी तत्वों का जो वास्तविक लक्ष्य व प्रयोजन है उसे सेकुलर(Secular)सत्ता अधिष्ठान पहचानने से इनकार करता है। वास्तव में यह साजिश भारत की बहुलतावादी सनातन संस्कृति के खिलाफ है और इसका मूलाधार कट्टरवादी इस्लाम है, जो काफिरों के विरुद्ध हर तरह के जंग को जायज मानता है।
कश्मीर में चल रहे हिंसक विरोध का एक लक्ष्य अमरनाथ(Amarnath) यात्रा को बाधित करना भी है। इससे पूर्व सन 2008 में यात्रा की अवधि 55 दिनों से घटाकर 15 दिनों तक करने के लिए सड़कों पर बड़े पैमाने पर हिंसक उपद्रव मचाया गया था। तब तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए अमरनाथ श्राइन बोर्ड को उपलब्ध कराई गई 40 एकड़ जमीन भी अलगाववादियों को रास नहीं आई थी। भारत(India)की बहुलतावादी संस्कृति की रक्षक होने का दावा करने वाले सेकुलर सत्ता अधिष्ठान ने जमीन आवंटन को निरस्त कर अलगाववादियों का हौसला बढ़ाने का ही काम किया था।
अमरनाथ यात्रा को हतोत्साहित करने का अभियान नया नहीं है। घाटी(Valley) से कश्मीर की मूल संस्कृति के प्रतीक कश्मीरी पंडितों के बलात निष्कासन के बाद इस्लामी कट्टरवादियों का एक लक्ष्य पूरा हो चुका है। घाटी हिंदूरहित हो चुकी है। हिंदुओ के अधिकाश पूजास्थल ध्वस्त हो चुके हैं, परंतु कुछ प्रमुख आराध्य स्थल अभी भी जीवंत हैं और जिहादियों के निशाने पर हैं। अमरनाथ यात्रा का प्रत्यक्ष व परोक्ष विरोध इसी मानसिकता का उदाहरण है।
अभी हाल में जम्मू-कश्मीर(Jammu-Kashmir) की सरकार ने अमरनाथ यात्रा और वैष्णो देवी की यात्रा के लिए राज्य में प्रवेश करने वाले दूसरे राज्यों के वाहनों पर दो हजार रुपये का प्रवेश शुल्क लगाया है, किंतु बहुलतावाद व सेकुलरिज्म का पाठ पढ़ाने वाले बुद्धिजीवी व राजनीतिक दल खामोश हैं। क्यों? अजमेर शरीफ, हाजी अली या मुसलमानों के लिए पूज्य अन्य स्थलों के लिए ऐसी कोई व्यवस्था क्या कभी संभव है? कश्मीर घाटी में मुसलमान बहुसंख्यक हैं तो क्या वहा हिंदुओं का प्रवेश वर्जित कर दिया जाए? नहीं तो यह प्रवेश-कर क्यों?
बर्बर इस्लामी राज में गैर मुसलमानों को जजिया(Jajiya) कर चुकाने की शर्त पर जीने का अधिकार था। यह टैक्स हिंदू पर्व(Hindu Festivals) व अन्य समारोहों के आयोजन के समय भी बलात वसूला जाता था। कल्हण की राजतरंगिणी के बाद कश्मीर का इतिहास लिखने वाले जोनराज ने इसे ‘चंडदंड’ कहा है। संस्कृत में चंडदंड का अर्थ हिंसक व क्रूर है। जजिया वसूलने का तरीका अत्यंत अपमानजनक था। कर वसूलने वाला गरदन दबोच कर चिल्लाता था, ‘धिम्मी, जजिया चुकाओ।’ ‘धिम्मी’ इस्लामी राज में गैर मुसलमानों के लिए प्रयुक्त एक गाली है। आजाद कश्मीर का सपना देखने वाले शेख अब्दुल्ला की नेशनल कांफ्रेंस व काग्रेस की सरकार आज ‘प्रवेश शुल्क’ लगाकर जजिया ही तो वसूलना चाह रही है। यात्रा मार्ग में भंडारा लगाने वाले आयोजकों से 25 हजार रुपये बतौर शुल्क पहले से ही वसूला जाता है। क्या दुनिया में दूसरा कोई ऐसा देश होगा, जहा उस देश के बहुसंख्यकों का ही सर्वाधिक दोहन होता हो?
सेकुलर देश में हिंदुओं के साथ एक ओर ऐसा बर्ताव है वहीं मुसलमानों के मामलों में सत्ता अधिष्ठान दरियादिली दिखाने में पीछे नहीं रहता। प्राय: हर साल हज सब्सिडी के मद में तीन-चार सौ करोड़ की बढ़ोतरी आम बात है। 2008 में हज सब्सिडी(Haj Subsidy) के मद में राजकोष से 826 करोड़ का भुगतान किया गया अर्थात एक हाजी पर सरकार 35 से चालीस हजार खर्च करती है, किंतु कैलाश मानसरोवर(Kailash Mansarovar)की यात्रा के लिए सरकार प्रति तीर्थयात्री 3250 रुपये का भुगतान कुमाऊं मंडल विकास निगम को करती है। यह राशि संचार व सुरक्षा व्यवस्थाओं में खर्च की जाती है। वहीं सरकार ने अलग से हज सेल बना रखा है। हज कमेटी आफ इंडिया का मुंबई में बड़ा कार्यालय है। राज्य स्तर पर हज समितिया गठित हैं। हज दौरे पर जाने वाले मुसलमानों के साथ सरकार डॉक्टरों, नसरें, हज अधिकारी, हज सहायक और खादिमुल हजाजों की फौज भेजती है। मक्का-मदीना में 90 बेड का अस्पताल और 18 डिस्पेंसरी की व्यवस्था के साथ 17 एंबुलेंस हाजियों की सेवा में तत्पर रखे जाते हैं, किंतु अमरनाथ यात्रियों के निमित्त अस्थायी शिविरों के निर्माण के लिए जब जमीन लीज पर आवंटित की गई तो अलगाववादियों के साथ सेकुलरिस्टो को नागवार गुजरा। प्रगतिशील कहलाने वाले तथाकथित मुस्लिम बुद्धिजीवी तब भी खामोश थे और आज जब एक बार फिर अमरनाथ यात्रा को बाधित करने की कोशिश की जा रही है तो विरोध या निंदा का एक भी स्वर सुनाई नहीं दे रहा। यहा यह प्रश्न प्रासंगिक है कि क्या हज सब्सिडी मंत्री अपनी जेब से देते हैं? यह तो जनता से एकत्रित राजस्व से दी जाती है, जिसका अधिकाश भाग बहुसंख्यक समाज से आता है। इसलिए हज सब्सिडी वस्तुत: हिंदुओं पर जजिया कर के समान है। यह द्रोहभाव क्यों?
नीलमत पुराण में कश्मीर किस तरह बसा, उसका उल्लेख है। कश्यप मुनि को इस भूमि का निर्माता माना जाता है। उनके पुत्र नील इस प्रदेश के पहले राजा थे। चौदहवीं सदी तक बौद्ध और शैव मत परस्पर पल्लवित होते रहे। काशी के बाद कश्मीर को ज्ञान की नगरी के नाम से जाना जाता था, किंतु इस्लाम के आने के बाद कश्मीर की सनातन संस्कृति का लगातार क्षय हो रहा है। जब अरबों की सिंध पर विजय हुई तो सिंध के राजा दाहिर के पुत्र राजकुमार जयसिंह ने कश्मीर में शरण ली। राजकुमार के साथ सीरिया निवासी उसका मित्र हमीम भी था। कश्मीर की धरती पर पाव रखने वाला पहला मुस्लिम यही था। अंतिम हिंदू शासिका कोटारानी के आत्म बलिदान के बाद पर्शिया से आए मुस्लिम मतप्रचारक शाहमीर ने राजकाज संभाला और यहीं से दारूल हरब को जबरन हिंसा के रास्ते दारूल इस्लाम में तब्दील करने का सिलसिला चल पड़ा। वर्तमान घटनाक्रम इसी प्रक्रिया की एक और कड़ी है।
भारतीय महाद्वीप(Indian Subcontinent)के अधिकाश मुसलमान मतातरित हैं, उनके पूर्वज हिंदू थे। आजाद कश्मीर का सपना देखने वाले शेख अब्दुल्ला ने स्वयं अपनी आत्मकथा ‘आतिशे चीनार’ में स्वीकार किया है कि कश्मीरी मुसलमानों के पूर्वज हिंदू थे। उनके परदादा का नाम बालमुकुंद कौल था। इसके बावजूद भारत के प्रति शेख अब्दुल्ला का रवैया क्या रहा? कश्मीर को भारत से अलग करने की नींव यदि शेख अब्दुल्ला ने डाली तो पंडित नेहरू के अधीन सेकुलर सत्तातंत्र ने उसे सिंचित भी किया। भारत में सेकुलरवाद और इस्लामी कट्टरवाद वस्तुत: एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। दोनों ही भारत की कालजयी सनातन संस्कृति को क्षय करने का काम करते हैं। कश्मीर का वर्तमान घटनाक्रम इसे ही रेखाकित करता है।
Source: Jagran Yahoo
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