Menu
blogid : 133 postid : 647

[Kashmir Crisis] कश्मीर : जन्नत का रंग अब हो रहा है लाल

संपादकीय ब्लॉग
संपादकीय ब्लॉग
  • 422 Posts
  • 640 Comments


कश्मीर भारत का एक अभिन्न अंग है. स्वंतत्रता के समय से ही यह हमारे शान और गर्व की एक वजह रहा है. भारत में जहां इसे जमीन पर स्वर्ग के बराबर मानते हैं तो विश्व में भी इसे सबसे ज्यादा सुंदर जगह का खिताब मिला हुआ हैं. भारत के लिए कश्मीर कहीं प्राकृतिक सौंदर्य का तो कहीं धार्मिक महत्व का स्थान है. डल झील से लेकर हिमालय पर्वत और वैष्णो देवी की गुफाओं से लेकर माता रानी के ज्यादातर मंदिर इसी राज्य में हैं. घाटी की फिजा इतनी रुमानी है कि कोई भी कवि या लेखक इससे प्रभावित हुए बिना रह ही नहीं पाया…. लेकिन वक्त के साथ हालात बदले और अब इस शांति में अशांति और खून का रंग मिल गया है.

कभी लोगों को शांति और शौहार्द्र का पैगाम देने वाली घाटी आज आंतक और खून का दूसरा नाम बन गई है. कभी जहां लोग जहां जाना अपना सौभाग्य मानते थे आज वहीं जाने से पहले अपने जीवन का बीमा करा लेते हैं.

jammu-and-kashmir-ind512कश्मीर एक नजर में

कश्मीर भारत का एक मुस्लिम बहुल राज्य है. यहां शुरु से मुस्लिमों की अधिकता रही है लेकिन इसके बावजूद भी कभी यहां हिंदू-मुसलमानों में भेदभाव की स्थिति पैदा नहीं हुई. आजादी के समय कश्मीर के लिए बहुत लड़ाई हुई. पाकिस्तान चाहता था कि कश्मीर में मुस्लमानों की बहुलता की वजह से वह उसे मिल जाए लेकिन होना कुछ और था. कश्मीरी पंडित, शेख़ अब्दुल्ला और राज्य के ज़्यादातर मुसलमान कश्मीर का भारत में ही विलय चाहते थे(क्योंकि भारत धर्मनिरपेक्ष है) पर पाकिस्तान को ये बर्दाश्त ही नहीं था कि कोई मुस्लिम बहुमत वाला प्रान्त भारत में रहे. इसके बाद वहां के तत्कालीन महाराज हरि सिंह ने 26 अक्‍तूबर, 1947 को आंतरिक हमलों, अलगाववाद और पाकिस्तान के हमले के डर से भारतीय संघ में विलय के समझौते पर हस्‍ताक्षर किए. इसके साथ ही भारत ने कश्मीर की सुरक्षा के लिए अपनी सेनाएं वहां भेज दी. महाराज का शासन खत्म होने पर शेख मोहम्मद अबदुल्ला को वहां के तात्कालिक शासक के रुप में शासन चलाने दिया गया जिसके दौरान उन्होंने 1948 तक शासन किया. शुरु में शेख अबदुल्ला को वहां का प्रधानमंत्री घोषित किया गया था पर 1950 में कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिलवा दिया गया. संविधान के अनुच्छेद 370 के अंतर्गत कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया जिसमें इसे ऐसे कई विशेषाधिकार मिले हैं जो बाकी के राज्यों को नसीब भी नहीं.

emblem-of-indiaसंविधान का अनुच्छेद 370 और कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा

कश्मीर भी भारत के अन्य राज्यों की तरह ही है लेकिन फर्क यह है कि इसे कुछ विशेषाधिकार दे इसके महत्व को बढ़ाया गया है. जैसा कि ज्ञात हो कश्मीर में मुसलमानों की अधिकता थी और वहां के महाराजा हिंदू थे, ऐसे में आजादी के समय पाकिस्तान को यह गवारा नहीं था कि कश्मीर भारत का हिसा बने. उसने कश्मीर को हड़पने की तैयारी की. ऐसे में कश्मीर के महाराजा ने विलय पत्रों पर हस्ताक्षर तो कर दिए लेकिन साथ ही यह बात साफ कर दी थी कि कश्मीर खास होना चाहिए. मुस्लिम बहुलता और अलगावादियों को देखते हुए तत्कालीन सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 370 के अनुसार कश्मीर को कई विशेषाधिकार दिए यथा

राज्य सरकार की सहमति के बिना केन्द्र सरकार का कोई भी कानून यहां प्रस्तावित नहीं हो सकता. कानून को प्रस्तावित करने के लिए राज्य की विधानसभा के कम से कम दो तिहाई वोट होने चाहिए.

इसके अलावा भी कश्मीर को कई विशेषाधिकार मिले हैं पर इन विशेषाधिकारों की वजह से ही कश्मीर की जनता खुद को अन्य भारतीय राज्यों से अलग मानती है.

धारा 370 की वजह से कश्मीर में न तो कोई जमीन खरीद सकता है और न ही कोई और प्रॉपर्टी इस तरह कश्मीर में अन्य राज्यों के लोगों का रहना नामुमकिन है. हालांकि यहां भारत का कोई भी नागरिक घूम सकता है. साथ ही कश्मीर सरकार को जो सहायता राशि मिलती है उसका कोई हिसाब नही लगाया जा सकता है और ऐसे में सरकार के कुछ नुमाइंदे काफी लंबे समय से इसक गलत प्रयोग कर रहे हैं. दरअसल धारा 370 जिस समय कश्मीर पर लागू की गई थी उस समय इसका प्रावधान सिर्फ कुछ दिनों के लिए था लेकिन सरकार की अक्षमता और हीलाहवाली की वजह से आज भी यह अनुच्छेद वहां लागू है जिसकी वजह से कश्मीर का शोषण जारी है. अलगाववादी जहां इसे स्वंतत्र राज्य बनाना चाहते हैं वहीं कश्मीर सरकार के कुछ नुमाइंदे धारा 370 को खत्म करने का इरादा नहीं रखते क्योंकि ऐसे में उनका मुनाफा मारा जाएगा और साथ ही ऐसे लोग भी हैं जो पाकिस्तानियों की पकड़ बनाए रखना चाहते हैं. तमाम ऐसे तत्व भी हैं जो कश्मीर का पाकिस्तान में विलय भी चाहते हैं.

kashmir-warकश्मीर की फिजा क्यों हो गई खूनी

कश्मीर में शुरु से ही हालात कभी स्थिर नहीं रहे. जब यहां शांति होती है तो यह स्वर्ग से भी सुंदर लगता है और इसकी सुंदरता अपने सातवें आसमान पर होती है लेकिन समय एक सा कभी नहीं रहता. कश्मीर में अलगाववाद और हिंसक इतने ज्यादा है कि वह इसकी शांति को खा जाते हैं. आज कश्मीर में पाकिस्तान की इतनी पैठ जम चुकी है कि यहां की आम जनता और बाहरी की पहचान मुश्किल हो गई है. कश्मीर में ऐसे लोगों की भी जमात है जो कश्मीर को स्वतंत्र राज्य का दर्जा दिलाने के लिए अलगाववादी राग अलाप रहे हैं.

दुविधा तो तब और हो जाती है जब इस मसले पर सरकार में ही मतभेद हो. कश्मीर की सरकार में हमेशा से मंत्रियों में ही एकमत नहीं हो पाता. कुछ नेता इसे स्वंतत्र राज्य बनाना चाहते हैं तो कुछ इसका संपूर्ण विलय अर्थात कश्मीर से धारा 370 के हटाने की मांग कर रहे हैं. अब ऐसे में जहां इतनी आंतरिक हलचल हो तो घुसपैठी घुसेंगे ही. पाकिस्तान इसी चीज का फायदा उठा कर लश्कर और अन्य गैर सामाजिक संगठनों की मदद से कश्मीर में अशांति फैलाने का काम कर रहा है.

आज तो हालात ऐसे हो गए हैं कि वहां पैसे देकर लोगों से सेना पर पत्थरबाजी करवाई जाती है. अलगावादी और गैर-सामाजिक तत्व कश्मीर के बेरोजगार युवाओं को पैसा देकर सेना पर पत्थर बाजी करने को कहते हैं जिसके जवाब में जब सेना कोई कदम उठाती है तो आम नागरिक मारा जाता है और सरकार के खिलाफ महौल बनाने का मौका मिल जाता है.

jk3पुलिस क्यों हो जाती है लाचार

कश्मीर में पुलिस का रोल काफी विवादास्पद हैं. यह बात काफी अटपटी लगती है कि कश्मीर में आखिर पुलिस की नाकामी की वजह है क्या. कश्मीर में पुलिस अलगावादियों से प्रभावित है और वह अपने हक को सही दिशा में इस्तेमाल नहीं कर पाती, जिसकी वजह से सेना आए दिन हमलों का शिकार होती है. साथ ही पुलिस को यहां यह हक नही हैं कि वह किसी को भी यूं ही पकड़ ले पर इसके बावजूद पुलिस के दामन पर बार-बार युवाओं को हवालात में बंद करने और उनकी हत्या का आरोप लगता है, इसके बाद जनता में हिंसा भड़क जाती है.

जनता का रोल भी बड़ा विवादास्पद है. अपने स्वभाव से शांत रहने वाली कश्मीर की जनता आखिर क्यों बार-बार बगावत का बिगुल बजाती है? इस बात का सीधा जवाब है कि इस हिंसा में सबसे ज्यादा भाग लेते हैं युवा वर्ग और कश्मीर का युवा वर्ग बेरोजगार है. यह  जितना काल्पनिक लगता है उतना ही सत्य है. कश्मीर का युवा वर्ग भारत के अन्य राज्यों की तरह विकास चाहता है लेकिन नेताओं के भ्रष्टाचार के कारण उसे मूलभूत जरुरतों से भी प्राय: महरुम होना पड़ता है.

नेता यहां के कितने भ्रष्ट और घूसखोरी में लिप्त हैं इसका ताजा उदाहरण था पिछ्ले वर्ष प्रकाश में आया सेक्स रैकट जिसमें कश्मीर के कई नेता लिप्त थे. अब जो नेता अपने राज्य की लड़कियों के साथ ऐसे कर्म करते हों उनके भ्रष्टाचार को समझना ज्यादा मुश्किल नहीं.

650केन्द्र सरकार का ढुलमुल रवैया

केन्द्र सरकार का कश्मीर में शुरु से रवैया ढुलमुल रहा है. केन्द्र में काबिज सभी सरकारों सहित अधिकांश राजनीतिक दलों ने तुष्टीकरण की नीति अपनाते हुए निरंतर मुसलमानों के प्रति एकांगी दृष्टिकोण अपनाया है. फलत: न्यायसंगत तथ्य की उपेक्षा हुई है. इतना ही नहीं अलगावादियों के मन को बढ़ाने और उनकी गतिविधियों पर कोई रोक न लगाने की नीति अपनाई गई. स्वाभाविक है कि समस्या जो कुछ भी नहीं थी आज अपने विकरालतम स्वरुप में विद्यमान है.

धारा 370 के प्रति आखिर इतना अतिशय मोह क्यों? विशेष राज्य का दर्जा मिलने की बात तक तो बात ठीक है किंतु इसी श्रेणी के अन्य राज्यों की परिस्थितियों से बेहतर स्थिति में होते हुए भी कश्मीर के साथ यह विशिष्ठ प्रकार का व्यवहार क्यों रखा गया है. कौन सा डर है जो भारत का अभिन्न अंग होने के बावजूद, संसद में कश्मीर मसले पर विशेष संकल्प लिए जाने के बाद भी ढुलमुल रवैया अपनाया जाता है.

Jammu,_Kashmir_and_Ladakhलद्दाख का रोना

जब हम कश्मीर के बारे में प्रशासनिक स्तर पर सोचते हैं तो कश्मीर तीन भागों में विभाजित है पहला घाटी, दूसरा जम्मू और तीसरा लद्दाख.  लद्दाख जहां बौद्ध धर्म के अनुयायियों की संख्या ज्यादा है तो वहीं जम्मू में हिंदू और घाटी में मुस्लिम धर्म ज्यादा प्रचलित है. अब ऐसे में दो भागों जम्मू और लद्दाख को घाटी से कम महत्व मिलता है जबकि हकीकत में लद्दाख का हिस्सा ज्यादा प्रभावित और पिछडा हुआ है. जम्मू-कश्मीर के लिए जिस सहायता राशि की घोषणा होती है उसका एक बहुत बड़ा भाग घाटी को दिया जाता है. ऐसे में लद्दाख की समस्या यह है कि पिछड़ा होने के बाद भी उसकी तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दिया जा रहा है.

इसकी अहम वजह है घाटी में मुसलमानों की बहुलता और तुष्टीकरण की सरकारी नीतियां. मुस्लिम संप्रदाय को कोई भी सरकार हमेशा खुश देखना चाहती है और इसी चाहत में वह लद्दाख जैसे हिस्सों को भूल रही है.

kashmir_violence_20090701आखिर क्या है असली सच्चाई: काली सच्चाई या कड़वी सच्चाई

इस पूरे लेख में यह भाग सबसे अहम है क्योंकि आज तक मीडिया ने जो तस्वीर कश्मीर की बनाई है यह उससे अलग ही नहीं बल्कि पूरी तरह उलटी है. कश्मीर का आवाम एक अलग राज्य या पाकिस्तान में विलय नही चाहता. कश्मीर की जनता जिसे मूल आवश्यकताओं की तो उतनी कमी नहीं है लेकिन उसका जो शोषण हो रहा है उसका किसी को नहीं पता.

मीडिया ने कश्मीर को अलगाववादियों से भरा हुआ दिखाया है उसकी हिंसक प्रवृति को दिखाया, जनता के गुस्से को दिखाया है लेकिन आज तक मीडिया ने उन घरों की की ओर नही झांका जिनके परिवार पर जुल्म हो रहे हैं. न जाने कितने युवक प्रतिमाह गुम हो जाते है न जाने कितने अपने परिवार से बिछुड चुके हैं इसकी संख्या मीडिया या पुलिस किसी को नहीं  हैं. कश्मीर में महिलाओं की स्थिति के बारे में मीडिया हमेशा सही दिखाती है लेकिन वास्तविकता उस समय नंगी हो गई जब कश्मीर में बड़े पैमाने पर सेक्स रैकेट में वहां की स्थानीय लडकियों के शामिल होने की खबर आई. और सबसे दिल दहलाने वाली बात कि इन लडकियों से यह काम जबरदस्ती और इनके परिवार पर जुल्म कर के करवाए जा रहे थे. हद तो तब पार हो गई जब इनका भोग कोई और नही खुद इनके रक्षक यानी नेता और पुलिस महकमे के लोग कर रहे थे. पढ़कर आपको दुख तो होगा और लगेगा कि यह सच नहीं है लेकिन सच्चाई कड़वी ही होती है.

मीडिया को पैसे लेकर पत्थर फेंकते युवक तो नजर आते हैं लेकिन वह वजह नजर नहीं आता कि ऐसा यह युव करते क्यों है. सबसे पहले तो कश्मीर में रोजगार के सीमित साधन और दूसरा अगर वह किसी और भाग में जाएं तो उन्हें हीन भावना से देखना वह आम वजह है जिससे यह वर्ग गुण्डे की संज्ञा लेने को तैयार हो गया. अपने ही राज्य में पराए की भावना से ग्रस्त यहां का युवा वर्ग ऐसी मानसिकता की चपेट में है जिससे देश को खतरा हो सकता है.

कश्मीर की जनता आखिर चाहती क्या है

कश्मीर की जनता आम भारतीय राज्यों के निवासियों की तरह ही बनना चाहती है जहां सभी राज्यों के लोग आ सकें और बस सकें. ताकि कश्मीर में भी रोजगार के अवसर बढ़ सकें. अनुच्छेद 370 ने कश्मीर को बांध दिया है और अब वहां की जनता इस बेड़ी को तोड़ना चाहती हैं. जनता की मांग है कि जितना शोषण वहां के नेताओं ने अनुच्छेद 370 की आड़ में किया अब बंद हो. सहायता राशि का इस्तेमाल नेताओं के बैंक बैलेंस बढ़ाने के बजाय आम जनता की जरुरतों को पूरा करने के लिए होना चाहिए.

अगर कश्मीर को बनाना है फिर से स्वर्ग

संविधान का अनुच्छेद 370 कश्मीर में एक तात्कालिक हल के तौर पर इस्तेमाल हुआ था अब हालात सामान्य हैं तो इसकी जरुरत भी नहीं. केन्द्र सरकार को विधि मंत्रालय के साथ मिलकर इसके खात्मे के बारे में सोचना चाहिए वरना कहीं ऐसा न हो कि पड़ोसी देश इसी अनुच्छेद का फायदा उठा कश्मीर को हड़प लें. साथ ही सहायता राशि के व्यय आदि का ब्यौरा भी लेना चाहिए.

हम सब को कश्मीर पर गर्व था, है और रहेगा. यह हमें हर स्थिति में स्थिर रहने की प्रेरणा देता है. हम एक बार फिर कश्मीर की फिजाओं में रुमानी हवा और शांति का अहसास करना चाहते हैं ताकि जब हम अगली बार कश्मीर जाएं तो बड़े हमें सुरक्षा का ध्यान रखने को न कहें. आखिर जन्नत में खून-खराबे का क्या काम. स्वर्ग तो शांति और सुन्दरता की प्रतीक है, सरकार चाहे तो इस जन्नत को और खूबसूरत बनाया जा सकता है. हम सब की यही आस है कि एक दिन फिर कश्मीर में सुन्दरता और शांति फैलेगी.

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply to razia mirzaCancel reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh