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एंडरसन को बचाने वाला हाथ

संपादकीय ब्लॉग
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भोपाल गैस त्रासदी के मामले में दिए गए फैसले और उस पृष्ठभूमि में यूनियन कार्बाइड के प्रमुख वारेन एंडरसन को भारत से सुरक्षित भागने में सहायता के प्रसंग ने देश का सिर झुका दिया है। अमेरिकी गुप्तचर एजेंसी सीआईए के 26 वर्ष पूर्व के गोपनीय दस्तावेजों को जनवरी 2002 में सार्वजनिक किया गया था। इन दस्तावेजों में उल्लिखित है कि मध्य प्रदेश पुलिस की कैद से यूनियन कार्बाइड के प्रमुख वारेन एंडरसन को ‘दिल्ली’ के दबाव से 8 दिसंबर, 1984 को रिहा किया गया। इसका कारण यह बताया गया कि तत्कालीन केंद्र सरकार यह मानती थी कि वारेन एंडसरन की कैद को मध्य प्रदेश सरकार राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल कर रही है।

 

उधर, मध्य प्रदेश के दस्तावेजी प्रमाण बताते हैं कि तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने वारेन एंडरसन को विशेष विमान से भोपाल से भाग जाने की सुविधा उपलब्ध करवाई थी। काग्रेस अर्जुन सिंह पर वार कर रही है, लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाधी को बचा रही है, जबकि अमेरिकी अमेरिकी गुप्तचर एजेंसी ने संकेत दिया है कि उनके कहने पर ही अर्जुन सिंह ने एंडरसन को रिहा किया होगा। वंशवादी राजनीति का यह दोहरा चरित्र राष्ट्रघातक ही रहा है। अर्जुन सिंह और राजीव गाधी, दोनों ही काग्रेस के नेता रहे हैं। फर्क सिर्फ इतना ही रहा कि एक गाधी-नेहरू खानदान के थे तो दूसरे ‘बाहरी’।

 

अर्जुन सिंह ने चाहे काग्रेसी आकाओं को खुश करने के लिए कितनी ही जूतिया तोड़ी हों, राष्ट्रीय हितों एवं हिंदू संवेदनाओं पर भीषण प्रहार किए हों, मुस्लिम तुष्टीकरण की हदें पार कर दी हों, पर जीवन के संध्याकाल में वह काग्रेस द्वारा ‘त्याज्य’ घोषित हो गए। उन पर प्रहारों का न सिर्फ काग्रेस मजा ले रही है, बल्कि अपनी तरफ से भी और आघात कर रही है, लेकिन उसी अपराध में राजीव गाधी का नाम आते ही वंशवादी राजनीति के दरबारी एक सुर में ‘राजीव निर्दोष हैं’ अलापने लगे।

 

2 और 3 दिसंबर, 1984 को हुई भयावह दुर्घटना में मिथाइल आइसोसाइनेट गैस के रिसाव से हजारों लोग मारे गए थे। पशुओं के मारे जाने की संख्या का एक लाख के लगभग आकलन किया जाता है। प्राय: पाच लाख लोग जहरीली गैस के कारण अंधे हुए या भयंकर जानलेवा बीमारियों के शिकार हुए। 1984 से चल रहे मुकदमे का 2010 में फैसला आया, लेकिन यह न्यायिक त्रासदी भोपाल गैस रिसाव त्रासदी जैसी ही भयंकर है। इन 26 वषरें में जहरीली गैस प्रभावित जनता ने कैसे जिंदगी जी और किस तरह प्रभावित परिवार के अनाथ बच्चे बड़े हुए, यह मानवीय इतिहास की एक लोमहर्षक कथा है, लेकिन क्या राजनेताओं की नींद पर इससे कोई असर पड़ा?

 

क्या जिन राजनेताओं ने हजारों की मौतों एवं लाखों को अपंग बनाने के जिम्मेदार अपराधी को सरकारी सुविधाएं देकर भारतीय कानून की गिरफ्त से छूटने में मदद दी, उनकी आखों में हिंदुस्तान था या वे अमेरिकी दबाव में उसी तरह सिर झुकाए हुक्म का पालन कर रहे थे जैसे वर्तमान संप्रग सरकार पाकिस्तान से वार्ता एवं परमाणु दायित्व विधेयक के बारे में कर रही है? विडंबना है कि न केवल भोपाल गैस त्रासदी के अपराधियों को उचित सजा नहीं दी गई, बल्कि उनको भगाने वालों के प्रति भी कार्रवाई नहीं की जा रही है। केंद्र चाहे तो अपने नियंत्रण वाली सीबीआई द्वारा भी जाच करवा सकती है, लेकिन तब भी उसे डर होगा कि जाच में राजीव गाधी की भूमिका का भी पर्दाफाश हो जाएगा। दुर्भाग्य से 1984 के अपराधियों को बचाने की यह घटना यूनियन कार्बाइड तक सीमित नहीं है। उसी वर्ष सिख विरोधी काग्रेसी हमलों में तीन हजार निरपराध सिखों के कत्लेआम के अपराधी भी इसी काग्रेस सरकार द्वारा बचाए जाते रहे हैं।

 

अदालतों का कमजोर गठन, सबूत प्रस्तुत करने में लापरवाही, सरकारी तंत्र के उपयोग द्वारा संदिग्ध अपराधियों को निर्दोष साबित करने के उपक्रम काग्रेसी वंशवादी राजनीति का राष्ट्रघातक चेहरा है। इसी वजह से जनता का उन तमाम न्यायिक संस्थानों से विश्वास हटता जा रहा है, जो लोकतात्रिक व्यवस्था के आधारस्तंभ हैं। सीबीआई को संप्रग ने राजनीतिक लाभ एवं भयादोहन का साधन बनाकर सत्ता-केंद्र की निष्पक्षता पर बहुत बड़ा आघात किया है। न्यायपालिका भी निरंतर ऐसी ही संदेहास्पद चर्चाओं के दायरे में घिरी रही है। सवाल उठता है कि जनता निष्पक्ष एवं वस्तुपरक शासन तथा न्याय की आस किससे करें? यह राष्ट्रीय जीवन व्यवहार एवं लोकतात्रिक राजनीति के लिए बहुत बड़े खतरे के संकेत हैं। जिनसे रक्षा की उम्मीद हो यदि वही आघात करने लगें और जिनसे न्याय की आशा हो वही अन्याय करते पकडे़ जाएं तो नतीजा विस्फोटक हो सकता है।

 

भोपाल भारत की क्रूरतम त्रासदियों में से एक है। जो अंध सेकुलर गुजरात दंगों के बारे में केवल इसलिए मुखर होते हैं क्योंकि उनको लगता है कि गोधरा पर चुप्पी और गुजरात पर मुखरता से उनका सेकुलर रंग निखरता है, वे भोपाल गैस त्रासदी में अधिकतम मुस्लिमों के मारे जाने पर भी क्यों चुप हैं? शायद इसलिए क्योंकि उन्हें काग्रेसी सरकारों की तिजोरियों से जो कुछ मिलता रहा, उसकी अदायगी काग्रेसी गुनाहों पर चुप्पी साधकर ही की जा सकती है। भोपाल गैस त्रासदी का जिम्मेदार एंडरसन उतना ही बड़ा अपराधी है, जितने बड़े अपराधी अफजल और कसाब हैं। दोनों ही विदेशी हैं और दोनों ने ही भारतीय राज्य एवं नागरिकों के प्रति अपराध किया है। अत: दोनों की सजा में भी फर्क क्यों होना चाहिए?
Source: Jagran Yahoo

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