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गुलाम मानसिकता का प्रतीक

संपादकीय ब्लॉग
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खेल-खेल में करोड़ों का खेल चल रहा है। भारत में गंभीर चुनौतिया हैं। राष्ट्र-राज्य से युद्धरत नक्सली हैं। आक्रामक आतंकवाद है। अशात पूर्वोत्तर है, आख दिखाता चीन है, आतंक निर्यातक पाकिस्तान है, ध्वस्त अर्थव्यवस्था है, अनियंत्रित महंगाई है, बावजूद इसके केंद्र की मुख्य चिंता राष्ट्रमंडल खेल हैं।

 

राजधानी दिल्ली सजाई जा रही है। मुख्यमंत्री शीला दीक्षित अतिरिक्त तनाव के साथ-साथ अतिरिक्त उत्साह में भी हैं। मंत्रियों का विशेष समूह सक्रिय है, कैबिनेट सचिव भी जुटे हैं। फिर भी खेलों से जुड़ा कोई भी काम समय पर पूरा नहीं हो पाया। 1899 करोड़ का बजट था, 70,000 करोड़ खर्च हो गए। तमाम काम अभी भी बाकी हैं। शीला का दावा है कि दिल्ली सुंदर हो रही है, भव्य हो रही है लेकिन दिल्ली अव्यवस्था की शिकार है। राष्ट्रमंडल खेलों के बहाने लगभग एक लाख परिवार उजाड़े जा चुके हैं। खेल गाव में 2008 में ही लगभग सौ मजदूरों की मौत हुई थी।

 

भारत के प्राचीनकाल में खेल निष्काम कर्म होते थे, इसलिए अतिरिक्त आनंद का स्त्रोत थे। आधुनिक सभ्यता ने खेलों को कमाऊ बनाया। खेलों में मैच फिक्सिंग जैसे आर्थिक अपराध जुड़े। प्रायोजकवाद बढ़ा। आईपीएल का भ्रष्टाचार इसी का चरम है। अंतरराष्ट्रीय स्तर के खेल भी सर्वथा मुक्त नहीं हैं। लेकिन ‘राष्ट्रमंडल खेलों’ में एक दूसरी बात भी है। ‘राष्ट्रमंडल’ वस्तुत: अंतरराष्ट्रीय संगठन नहीं है। यह ब्रिटेन की गुलामी में रहे देशों का एक मंच है। लार्ड रोजबरी नाम के एक ब्रिटिश राजनीतिक चिंतक ने 1884 में ‘ब्रिटिश साम्राज्य’ को ‘कामनवेल्थ आफ नेशंस’ बताया।

 

ब्रिटेन ने अपना वैचारिक आधिपत्य बनाए रखने के लिए 1931 में कनाडा, आयरिश राज्य, दक्षिण अफ्रीका व न्यूफाउंड लैंड के साथ मिलकर ‘ब्रिटिश कामनवेल्थ’ बनाया। ब्रिटेन का राजा ही इसका प्रमुख था। 1946 में ब्रिटिश शब्द हटा, यह ‘कामनवेल्थ आफ नेशंस’ हो गया। लंदन में इसका मुख्यालय है। सेक्रेटरी जनरल संचालक हैं। 54 देश इसके सदस्य हैं। लेकिन ब्रिटेन का राजा/महारानी ही इस संगठन के स्थायी प्रमुख हैं।

 

भारत में प्रस्तावित ‘कामनवेल्थ खेलों’ में ब्रिटेन की महारानी को आना था। लेकिन खबर है कि वे इस आयोजन में युवराज को भेजेंगी। कायदे से महारानी की गैरहाजिरी में किसी अन्य सदस्य देश के राजप्रमुख को इसका मुख्य अतिथि बनाया जाना चाहिए था, लेकिन औपनिवेशिक मानसिकता की हद है कि ब्रिटिश ताज ही राष्ट्रमंडल व राष्ट्रमंडल खेलों का स्थायी अगुवा है। भारत की संविधान सभा में ‘कामनवेल्थ’ की सदस्यता पर भारी विवाद उठा था। पंडित नेहरू ‘लंदन घोषणापत्र’ पर हस्ताक्षर करके लौटे थे। नेहरू ने राष्ट्रमंडल सदस्यता संबंधी प्रस्ताव रखा और लंदन घोषणापत्र पढ़ा कि राष्ट्रमंडल देश क्राउन के प्रति समान रूप से निष्ठावान हैं, जो स्वतंत्र साहचर्य का प्रतीक है।

 

ब्रिटिश राजमुकुट के प्रति निष्ठा और सम्राट की मान्यता भारत की संप्रभुता के लिए सम्मानजनक नहीं थी। सो सभा में स्वाभाविक ही बड़ा विरोध हुआ। संविधान सभा के वरिष्ठ सदस्य शिब्बन लाल सक्सेना ने कहा, ‘भारत उस राष्ट्रमंडल का सदस्य नहीं बन सकता, जिसके कई सदस्य अब भी भारतीयों को निम्न प्रजाति का समझते हैं, रंगभेद अपनाते हैं।’ पंडित नेहरू ने अंतरराष्ट्रीय संधियों पर संशोधन लाना गलत बताया।

 

‘कामनवेल्थ गेम’ ब्रिटेन की साम्राज्यवादी धारणा से ही अस्तित्व में आए। 19वीं सदी के आखिरी दिनों में एस्टेले कूपर ने साम्राज्य के सभी सदस्यों का एक साझा खेल प्लेटफार्म बनाने का विचार रखा। विचार चल निकला। 1930 में कनाडा में ‘ब्रिटिश एम्पायर कामनवेल्थ गेम्स’ हुए। 1970 में ‘एम्पायर’ शब्द हटा और 1978 में ब्रिटिश। अंतत: ‘कामनवेल्थ गेम्स’ के नाम से ब्रिटिश सम्राट को प्रमुख मानने वाले सदस्य देश हर चार वर्ष बाद ऐसे आयोजन में हिस्सा लेते हैं।

 

भारत ने अक्टूबर 2010 के राष्ट्रमंडल खेलों की मेजबानी ली है। गरीब उजाड़े जा रहे हैं। झोपड़ियां उखाड़ी जा रही हैं। खेलों के दौरान शहर को खूबसूरत दिखाई देने के तमाम इंतजाम किए जा रहे हैं। खेल आयोजनों के लिए जरूरी स्टेडियम और अन्य व्यवस्थाएं करना बेशक मेजबान देश का फर्ज है, लेकिन खेलों के आयोजनों के लिए अनावश्यक रूप से करोड़ों रुपये बहाने का कोई औचित्य नहीं है। गरीबों, झुग्गी-झोपड़ी वालों को उजाड़ना और तमाम निर्माण गिराना असभ्य और अभद्र सरकारी आचरण है। सरकार ब्रिटिश सम्राट संरक्षित राष्ट्रमंडलीय अतिथियों के प्रति जरूरत से ज्यादा अभिभूत है?

 

सरकार पर ब्रिटिश सम्राट, सभ्यता और संस्कृति का हौव्वा है। राजधानी में अरबपति हैं, पाच सितारा होटल हैं, संसद भवन है, भव्य राष्ट्रपति भवन है, तमाम ऐतिहासिक स्थापत्य भी है, लेकिन इसके साथ-साथ पुलों के नीचे रहने वाले गरीब परिवार भी हैं। लुंजपुंज बेसहारा भिखारी हैं। अवैध वसूली करते पुलिस वाले हैं। भूखे-नंगे मजदूर भी हैं। सरकार क्या-क्या छिपाएगी? मुख्यमंत्री दिल्ली संवारने का दावा कर रही हैं। मूलभूत प्रश्न यह है कि यही दिल्ली उन्होंने अपने लंबे कार्यकाल में अब तक क्यों नहीं संवारी?

 

दिल्ली के सुंदरीकरण और समग्र विकास का इन खेलों से कोई संबंध नहीं है, लेकिन सरकार अपनी पूरी ताकत से इसी आयोजन की कामयाबी में जुटी है। सरकार सारे नियम और कानून ताक पर रखकर ‘राष्ट्रमंडल खेलों’ के प्रति ही निष्ठावान है। अच्छा होता कि सरकार ऐसी ही तत्परता अन्य सरकारी कार्यों में भी दिखाने की आदत डाले। लेकिन आयातित प्रशासनिक मानसिकता से ऐसी अपेक्षा नहीं की जा सकती।

Source: Jagran Yahoo

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