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बाल अधिकार संगठन सेव द चिल्ड्रन की एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार भारत मां बनने के लिए सबसे फिसड्डी जगहों में शामिल है. मां बनने के लिए सर्वोत्तम स्थान की सूची में शामिल 77 देशों में भारत का स्थान 73वां है. स्टेट आफ द वल्र्ड्स मदर्स 2010 नामक रिपोर्ट में सर्वाधिक चौंकाने वाली बात यह है कि भारत का स्थान हिंसाग्रस्त अफ्रीकी देशों केन्या व कागो से भी नीचे है. रिपोर्ट में भारत के पड़ोसी देशों में चीन 18वें स्थान पर, श्रीलंका 40वें स्थान पर है जबकि पाकिस्तान भारत के बाद 75वें स्थान पर है. यदि समग्रता में देखा जाए तो जच्चा-बच्चा स्वास्थ्य की दृष्टि से सभी विकासशील देशों की समस्याएं लगभग एक जैसी हैं. प्रतिवर्ष 90 लाख नवजात और पाच वर्ष से कम आयु के बच्चों की अकाल मौत हो जाती है. इसी प्रकार गर्भावस्था व प्रसव संबंधी कठिनाइयों के चलते 350000 महिलाएं अकाल मौत का शिकार बनती हैं. इनमें से अधिकाश मौतें विकासशील देशों में होती हैं जहा बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं का घोर अभाव है.
यह अनुमान है कि यदि गर्भावस्था व प्रसव के दौरान सभी महिलाओं तक स्वास्थ्य कर्मियों की पहुंच बन जाए तो मातृत्व मृत्यु दर में 74 प्रतिशत की कमी हो जाएगी. इसी प्रकार सभी आवश्यत स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुंच बनाकर पाच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मौत में 63 प्रतिशत की कमी की जा सकती है. इन प्रयासों से प्रतिवर्ष 2.5 लाख महिलाओं व 55 लाख बच्चों को असमय मौत के मुंह में जाने से बचाया जा सकता है. इसमें महिला स्वास्थ्य कर्मी महत्वुपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं. कई विकासशील देशों के उदाहरणों से यह प्रमाणित हो जाता है कि महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के सुदृढ़ ढाचे के बल पर मृत्यु दर में उल्लेखनीय कमी लाई जा सकती है. यहा मलेशिया, श्रीलंका व थाईलैंड का उल्लेख प्रासंगिक होगा, जिन्होंने मातृत्व मृत्यु दर में 97 फीसदी तक की कमी लाई है.
यहा भारत की भाति पांच सितारा अस्पताल खोलने की जगह कम कीमत वाली स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थापना की गई जिस तक गरीबों की सहज पहुंच थी. दूसरे इन देशों में स्वास्थ्य रक्षा के क्षेत्र में महिलाओं को अग्रणी भूमिका दी गई. नर्स व मिडवाइफ के प्रशिक्षण, संख्या बढ़ाने और स्थानीय स्तर पर तैनाती में भारी निवेश किया गया. विश्व के 57 देशों में स्वास्थ्य कर्मियों की भारी कमी है. इन देशों में प्रति 10,000 जनसंख्या पर डाक्टरों, नर्र्सो, मिडवाइफों की संख्या 23 से भी कम है. फिर यहां स्वास्थ्य कर्मियों का वितरण बेहद असमान है. पिछड़े व दूरस्थ इलाकों में स्वास्थ्य कर्मियों की पहुंच न के बराबर रहती है. अधिकतर स्वास्थ्य कर्मी शहरी इलाकों में रहते हैं जहां अस्पताल हैं और लोगों की आय अधिक है. फिर पिछड़े क्षेत्रों में काम करने वाले स्वास्थ्यकर्मियों के पास आवश्यक चिकित्सकीय उपकरणों का अभाव रहता है.
बच्चों के जीवन में सबसे खतरनाक समय जन्म और उसके कुछ सप्ताह तक होता है. पाच वर्ष से कम आयु के बच्चों की जितनी मौतें होती है उनमें 40 प्रतिशत जन्म के चार सप्ताह के भीतर हो जाती हैं. विकासशील देशों की महिलाओं के लिए प्रसव का समय सबसे खतरनाक होता है. यदि हम मातृत्व व नवजात मृत्यु दर के अंतरसंबंधों को आपस में जोड़ सकें तो इनमें कमी लाई जा सकती है. कई सामाजिक-धार्मिक कारणों से गर्भवती महिला और उसके परिवार के सदस्य चाहते हैं कि उनकी देखरेख कोई महिला स्वास्थ्यकर्मी ही करे. अनुभवों से भी प्रमाणित होता है कि महिलाओं से महिला की देखरेख बेहतर होती है.
दक्षिण एशिया, मध्य पूर्व और अफ्रीका के कई देशों में सामाजिक कारणों से परिवार के निर्णय में महिलाओं की सीमित भागीदारी रहती है. विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में पति व परिवार के पुरुष सदस्य ही निर्णय करते हैं कि महिलाओं को बाहर के अस्पतालों में जाना है कि नहीं. जब महिला स्वास्थ्य कर्मियों की सेवाएं नहीं सुलभ होती हैं तो परिवार में ही प्रसव हो जाता है. दरअसल स्वास्थ्य सुविधा ढांचे की कमी के साथ-साथ उंची मातृत्व व शिशु मृत्यु दर का एक प्रमुख कारण ग्रामीण क्षेत्र की लड़कियों में व्याप्त निरक्षरता है. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार हिंसा के खतरे और पारिश्रमिक में भेदभाव भी नर्र्सो को भुगतना पड़ता है. ऐसे असुरक्षित वातावरण में नर्सें भला कैसे चौबीस घंटे अपनी सेवाएं दे पाएंगी?
Source: jagran Yahoo
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