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कायर नेतृत्व का परिणाम नक्सल आतंकवाद

संपादकीय ब्लॉग
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गत कई आलेखों से यह लगातार कहा जा रहा है कि अब और इंतजार नहीं बल्कि कुचल के रख देना चाहिए देश के दुश्मनों को. अकर्मण्य सरकारों के कान पर जूं भी नहीं रेंग रही है. ये सरकारें निर्दोष नागरिकों की अभी और कितनी बलि लेंगी कुछ नहीं कहा जा सकता. हावड़ा-कुर्ला लोकमान्य तिलक ज्ञानेश्वरी सुपर डीलक्स एक्सप्रेस पर माओवादियों का हमला इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि देश में आस्तीन के सांप पाले जा रहे हैं जो अंततः देश को ही खा जाएंगे.

 

पाकिस्तान आज जिस प्रकार स्वयं के द्वारा रचे गए आतंकियों का शिकार हो रहा है और अभी कल वहां के मस्जिदों पर हुए हमले में तमाम नागरिक मारे गए ठीक वही हाल भारत का हो रहा है.

 

अभी तक नक्सलियों को आतंकी करार देने में कायर नेता भ्रम पैदा करते रहे हैं. कोई उन्हें आदिवासी और गरीब समर्थक बताता है और कोई कहता है कि वे क्रांतिकारी हैं और व्यवस्था के खिलाफ हैं.

 

हाल ही में दंतेवाडा में नागरिकों से भरे बस पर हुए नक्सलियों के हमले के बाद लालू प्रसाद यादव ने कहा कि नक्सली पुलिस के मुखबिरों को मारते हैं जैसे यह बड़ी अच्छी बात हो. हैरत तो ये होती है कि देश ऐसे नेताओ को अभी तक बर्दाश्त कैसे कर रहा है? ऐसे नेताओं ने ही देश में अराजक तत्वों का हौसला बढ़ा रखा है.

 

अब भी वक्त है कि बिना किसी बहस के तुरंत सेना को आदेश दिया जाए और अविलम्ब सभी नक्सलियों और उनके समर्थकों को समाप्त कर दिया जाए. वैसे भी बहुत देर हो चुकी है कहीं ऐसा ना हो कि देश की निर्दोष जनता अपने नेताओं के कायराना रुख की वजह से ऐसे नक्सली आतंकियों की गुलाम बन अपनी इज्जत-आबरू सहित जान भी गँवा बैठे.

 

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नक्सलियों के अविलंब सफाए की जरूरत

 

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