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पूर्वोत्तर की आग से अनजान भारत

संपादकीय ब्लॉग
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पूर्वोत्तर जल रहा है. जनता कराह रही है, अलगाववादियों के आतंक ने कहर बरपा रखा है. फिर भी सरकार सो रही है. इस देश को बड़ा ही विचित्र लोकतंत्र बना दिया है भारत के शासकों ने जहॉ हर विघटनकारी तत्व पनाह पाते हैं और देशभक्त रोते हैं. यहॉ कोई भी संगठन हाथ में बंदूक लेकर अपनी अनुचित मांग रखता है और अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर उसे ऐसा करने दिया जाता है. यहॉ शांतिपूर्वक धरना-प्रदर्शन कर उचित मांग करने वालों को गोली से उड़ा दिया जाता है. इसी गड़बड़झाले को समझाने का प्रयास करते राज्यसभा सांसद बलबीर पुंज.

 

राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 39 पिछले चालीस दिनों से नगा अलगाववादियों के कब्जे में है. नागालैंड के प्रवेशद्वार दिमापुर के पास की गई इस नाकेबंदी के कारण मणिपुर में आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति ठप्प हो गई है, जनजीवन अस्तव्यस्त है. विगत बुधवार से राष्ट्रीय राजमार्ग 53 स्थित दक्षिणी असम के सिलचर के रास्ते आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति शुरू की गई है, किंतु सड़कों की दुर्दशा के कारण भारी वाहनों का जाना असंभव है. छोटी गाड़ियों से की जा रही आपूर्ति ऊंट के मुंह में जीरा साबित हो रही है. वहीं राष्ट्रीय राजमार्ग 39 स्थित दिमापुर में भारी वाहनों का ताता लग गया है, जिन पर पेट्रोल-डीजल से लेकर रोजाना की जरूरतों के सामान लदे पड़े हैं. एक खबर के अनुसार काले बाजार में पेट्रोल 200 रुपये प्रति लीटर बिक रहा है. खाने-पीने की वस्तुओं की किल्लत के कारण पहले से ही महंगी वस्तुओं की कीमतें आसमान छू रही हैं. जीवनरक्षक औषधियों का अकाल हो गया है.

 

अलगाववादी संगठन नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल आफ नागालैंड के महासचिव थुंईंगालेंग मुइवा के मणिपुर प्रवेश पर राज्य सरकार द्वारा प्रतिबंध लगाने के कारण अनेक नागा संगठन विद्रोह पर उतर आए हैं. मणिपुर के सोमदाल में मुइवा का पुश्तैनी घर है और अरसे बाद वह वहा जाना चाहते थे और इसके लिए केंद्र सरकार से उन्होंने अनुमति भी प्राप्त कर ली थी. जबकि मणिपुर के काग्रेसी मुख्यमंत्री इबोबी सिंह का तर्क है कि मुइवा के साथ संघर्ष विराम की शर्त मणिपुर में लागू नहीं होती. ग्रेटर नागालैंड के लिए आदोलन चला रहे मुइवा जब तक अपनी अलगाववादी नीति पर कायम हैं, तब तक वे मणिपुर के लिए भगोड़ा हैं. अलगाववाद को लेकर काग्रेस की दोहरी नीति का ज्वलंत प्रमाण स्वयं मणिपुर की अराजक स्थिति है. काग्रेसी मुख्यमंत्री इरोम इबोबी सिंह के खिलाफ दो उग्रवादी संगठनों-कागलेई यावोल
कन्नालूप को वर्ष 2005 में 50 लाख और रिवोल्यूशनरी पीपुल्स फ्रंट को एक करोड़ रुपये चंदा देने के सबूत खुफिया विभाग के पास हैं. केंद्रीय गृहमंत्री और प्रधानमंत्री कार्यालय को तत्कालीन सैन्य प्रमुख कर्नल जेजे सिंह ने यह सूचना भेजी थी. इबोबी सिंह का अब तक मुख्यमंत्री पद पर बने रहना क्या संकेत करता है?

 

राज्य के बहुसंख्यक मैतियों को खुश करने के लिए इबोबी सिंह ने मुईवा के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाकर घाटी में रहने वाले नागाओं को फिर से बंदूक उठाने के लिए विवश कर दिया है, जो ग्रेटर नागालिम के लिए सत्ता अधिष्ठान से लंबे समय से संघर्षरत हैं.

 

आज पूरा पूर्वोत्तर अलगाववाद की चपेट में है तो इसके लिए केंद्र की नीतियां ही जिम्मेवार हैं. आजादी के बाद समस्त पूर्वोत्तर का असम ही प्रतिनिधि हुआ करता था. मणिपुर और त्रिपुरा को छोड़कर पूर्वोत्तर का प्राय: सारा क्षेत्र किसी न किसी तरह असम से जुड़ा था. इस क्षेत्र में बसने वाले विभिन्न जनजातीय समूहों द्वारा स्वतंत्रता और संप्रभुता की माग तेज होने के बाद वर्ष 1972 में केंद्र ने असम की कोख से अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड पैदा किया. आजादी के दो दशक बाद तक कांग्रेस ने बहुत ही धूर्ततापूर्वक नागा, मिजो, खासी जनजातियों के ऊपर असमियों के प्रभुत्व को एकीकृत भारत की जरूरत के नाम पर पोषित किया था.

 

देश के रक्तरंजित विभाजन के बाद से ही असम अपने जनसाख्यिकीय स्वरूप में तेजी से आ रहे बदलाव से खासा चिंतित था. विभाजन के बाद असम और त्रिपुरा में बंगाली शरणार्थियों की संख्या तेजी से बढ़ी. 1961 तक शरणार्थियों की संख्या छह लाख से ऊपर पहुंच गई. केंद्र ने राज्य सरकार पर सबको समायोजित करने का दबाव डाला और जब तत्कालीन मुख्यमंत्री गोपीनाथ बोरदोलई ने इसका विरोध किया तो पंडित जवाहर लाल नेहरू ने विकास मद में दिए जाने वाले केंद्रीय अनुदान में भारी कटौती करने की धमकी दी. राज्य सरकार का घुटने टेकना असमियों से पचा नहीं. कालातर में अप्रवासियों को निकाल बाहर करने के लिए हिंसक आदोलन हुए. पूर्वोत्तर राज्यों की प्रमुख चिंता आर्थिक विकास की है, जिस पर कांग्रेस की अवसरवादी नीतियों से ग्रहण लगे. डिगबोई से प्राप्त कच्चे तेल के परिशोधन हेतु बरौनी में संयंत्र लगाने का क्या औचित्य था? यदि असम में ही यह संयंत्र लगाया जाता तो स्थानीय निवासियों के लिए रोजगार के बड़े अवसर उपलब्ध होते. ब्रितानियों के राज की ही तरह काग्रेस के भी राज में असम के चाय बागान और वन संपदा का असम के विकास में कोई योगदान नहीं रहा.

 

असम के पुनर्गठन तक असमी संभ्रात वर्ग ने काग्रेस के साथ मिलकर बाग्लादेशी घुसपैठियों को असम की जमीन पर बसने की इजाजत दी. ये अवैध घुसपैठिए असमी को अपनी मातृभाषा मानने को तैयार थे. वस्तुत: इस सौदेबाजी से जहा असमी संभ्रात वर्ग का बंगाली, मिजो, खासी आदि जातियों पर प्रभुत्व बना रहा, वहीं काग्रेस को ठोस वोट बैंक मिला. इस क्षुद्र राजनीति के कारण 1980 में असम असंतोष भड़क उठा, किंतु इंदिरा गांधी की सरकार ने उसे निरंकुशता पूर्वक दबा दिया. बाग्लादेश से आए अवैध घुसपैठियों के विरोध में 1983 के चुनावों का बहिष्कार भी किया गया, क्योंकि बिना किसी पहचान के लाखों बांग्लादेशियों का नाम मतदाता सूची में दर्ज कर लिया गया था. मूल निवासियों के विरोध की अनदेखी करते हुए तत्कालीन सरकार चुनाव कराने पर अड़ी रही. चुनाव बहिष्कार के कारण केवल 10 प्रतिशत मतदान ही दर्ज हो सका. किंतु काग्रेस ने इसे ही पूर्ण जनादेश माना और राज्य में ‘चुनी हुई सरकार’ का गठन कर लिया गया. 1983 में काग्रेस सरकार ने अवैध घुसपैठियों की पहचान असंभव करने के लिए ‘अवैध परिव्रजन (पहचान अधिकरण)अधिनियम’ पारित किया. आज असम की समस्या सुरसा की तरह विकराल हुई है तो इसके लिए यह अधिनियम ही प्रमुख रूप से जिम्मेवार है, जिसे वर्तमान काग्रेस नीत सरकार अदालती आदेश की अनदेखी कर पिछवाड़े से जारी रखे हुए है.

 

जनगणना 2001 के आकड़ों में असम की आबादी शामिल नहीं करना अवैध मुस्लिम घुसपैठियों की समस्या की विकरालता का प्रमाण है. जहां तक मणिपुर और नागालैंड का प्रश्न है, यहा भी इन राज्यों का जनसांख्यिकीय स्वरूप ही अलगाववाद को हवा दे रहा है. इसाक मुइवा का संगठन ‘ग्रेटर नागालैंड’ की माग करता है, जिसमें मणिपुर, असम, अरुणाचल प्रदेश के वैसे क्षेत्र भी शामिल हैं, जहा ईसाइयत में धर्मातरित नागा रहते हैं. मिजो नेशनल फ्रंट मणिपुर के मिजो बहुलता वाले क्षेत्र को मिजोरम में शामिल करना चाहता है.

 

उल्फा और नेशनल फ्रंट आफ बोडोलैंड का मकसद अलग-अलग है. बोडोलैंड ब्रह्मपुत्र नदी के उत्तरी किनारे पर स्वाधीन बोडोलैंड के लिए आंदोलन चला रहा है, वहीं उल्फा का उद्देश्य ‘स्वाधीन अहोम’ है. प्राय: समस्त पूर्वोत्तर एक पहाड़ी क्षेत्र है, जहा कृषि योग्य भूमि नाममात्र ही है. स्वतंत्र व्यापार चलाने के लिए कोई नजदीकी समुद्री संपर्क भी नहीं है. पूर्वोत्तर में शाति लाने के लिए सरकार को उसके समग्र विकास के साथ उसकी नृजातीय विशेषता व विविधता के बीच संतुलन कायम करने की आवश्यकता है. इसके लिए चर्च प्रायोजित धर्मातरण और आईएसआई पोषित घुसपैठ पर अंकुश लगाना अपरिहार्य हो चुका है.

Source: Jagran Yahoo

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