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क्रूर दमन ही एकमात्र विकल्प

संपादकीय ब्लॉग
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एक और नक्सली हमला और कई लोगों की मृत्यु. सरकारी फाइलों में फिर दर्ज होगा इन सब का नाम और दान या मुवावजे की बड़ी-बड़ी घोषणाएं भी की जाएंगी. दांतेवाड़ा में इससे पूर्व 6 अप्रैल को भी एक बड़ा ही सुनियोजित हमला हुआ था. जिसमें 76 जवान मारे गए थे. इस बार आम नागरिक मारे गए हैं. नक्सली समर्थक प्रपंचवादी दलालों की ये एक बड़ी विजय है. सरकार दब गयी और उसने कोई भी कार्यवाही करने की जुर्रत नहीं की.

 

वैसे एक बात तो तय है कि आज देश में फैली इस भयावह विभीषिका के पीछे सरकार की हीलाहवाली ही जिम्मेदार है. अभी हम पिछले नक्सली हमले के बाद की गयी सरकारी कार्यवाही पर नजर डालें तो पता चल जाएगा कि वह देश के नागरिकों की जान की कीमत क्या समझती है.

 

पिछले हमले(6 अप्रैल) के बाद सरकार ने ना तो वहॉ के स्थानीय प्रशासन के विरुद्ध कुछ किया और न ही दोषियों के खिलाफ कोई कदम उठाए. उसने ये तथ्य भी नहीं जाहिर होने दिया कि जंगल में ऑपरेशन के दौरान पीछे से कौन कमांड कर रहा था. क्या इतने अधिक जवान बिना किसी के निर्देश के ऑपरेशन में संलग्न हुए.

 

जंगल के भीतर मोबाइल या अन्य किसी भी माध्यम से सन्देश देने के लिए क्या व्यवस्था की गयी थी. कमांडिंग और सपोर्ट ग्रुप क्या कर रहा था.

 

आखिर नक्सलियों को कौन सूचना दे रहा है?

 

यह बात तो कभी भी आसानी से हजम नहीं होगी कि आमजन नक्सलियों के लिए गुप्तचर का काम करेगा. सत्ता, प्रशासन और पुलिस में से ही कोई है जो नक्सलियों का हिमायती बना हुआ है. ऐसे लोगों को चिन्हित क्यों नहीं किया जा पा रहा है.

 

तमाम आपराधिक व्यक्तियों का संसद और विधानसभाओं में प्रवेश एक बेहद खतरनाक संकेत है. आपराधिक तत्वों से मिले हुए लोगों या अभी भी सक्रिय रूप से अपराध में शामिल नेताओं के चरित्र का कोई भरोसा नहीं होता. वे सिर्फ पैसे और सत्ता की खातिर देश को बेच देने में कोई गुरेज नहीं करने वाले. क्या देश ऐसे लोगों के ऊपर अपनी सुरक्षा का दायित्व छोड़ कर निश्चिंत हो जाए?

 

छद्म मानवाधिकारवादियों और दलाल बुद्धिजीवियों को पकड़कर क्यों नहीं बंद कर दिया जा रहा है? ये शैतान सिर्फ अपने क्षुद्र लाभ की खातिर नक्सली आतंकवादियों के लिए सहानुभूति का वातावरण तैयार कर रहे हैं.

 

क्रूर दमन ही एकमात्र विकल्प

 

देश के खिलाफ किसी भी तरह के कृत्य अब भी क्यों बर्दाश्त किए जा रहे हैं, इसका जवाब दिए बिना काम नहीं चलने वाला. वक्त आ गया है कि जनता स्वयं आगे आकर जनतंत्र के मसीहाओं से हिसाब मांगे.

 

जरूरत है कि अब सेना और हवाई हमले का विकल्प अपनाने में और विलंब ना किया जाए. राष्ट्र की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ अब बंद होना चाहिए. किसी भी वाद-विवाद और बहस की कोई गुंजाइश बाकी नहीं है. अब सिर्फ दमन और क्रूर दमन ही एकमात्र विकल्प शेष है.

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