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बराक ओबामा के अफगानिस्तान में दिए गए सन्देश का निहितार्थ

संपादकीय ब्लॉग
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अमेरिका की अफगानिस्तान में मौजूदगी के समय को लेकर तमाम तरह के कयास लगाए जाते रहे हैं किन्तु बराक ओबामा के काबुल दौरे में दिए गए वक्तव्य से संदेह के बादल छंटते नजर आ रहे हैं. इससे भारत को जरूर राहत मिली है और अफगानिस्तान में उसके हितों को नुकसान ना पहुँचने की संभावना बढ़ गयी है.

 

28 मार्च को छह घंटे के काबुल दौरे पर अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने साफ शब्दों में एक संदेश दिया, जिसने न तो पश्चिमी देशों और न ही दक्षिण एशिया का उतना ध्यान खींचा जितना खींचना चाहिए था। अफगानिस्तान के राष्ट्रपति करजई के साथ बैठक के अंत में उन्होंने कहा, ‘मैं यह कड़ा संदेश देना चाहता हूं कि अमेरिका और अफगानिस्तान के बीच साझेदारी जारी रहेगी..किंतु हम नागरिक प्रक्रिया में प्रगति भी देखना चाहेंगे, जो कृषि व ऊर्जा उत्पादन, सुशासन, कानून-व्यवस्था, भ्रष्टाचार रोकने के उपायों में परिलक्षित होगी। पड़ोसियों का अफगानिस्तान में हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। परिवर्तन तभी संभव है जब अफगानिस्तान के लोग सुरक्षा व्यवस्था कायम करने में अधिक से अधिक सक्षम होंगे।’

 

इस बयान में तीन महत्वपूर्ण बिंदु हैं। पूर्व आकलन के विपरीत अमेरिका 2011 के मध्य तक अफगानिस्तान से वापस नहीं जा रहा है। दूसरा बिंदु यह है कि नागरिक विकास प्रक्रिया लंबी चलेगी। इसका मतलब यह है कि अफगानिस्तान में ढांचागत विकास में भारत की भूमिका खत्म नहीं होगी, जिसको लेकर भारत चिंतित और पाकिस्तान आशान्वित था। तीसरा संदेश यह था कि अफगानिस्तान के पड़ोसियों को वहां हस्तेक्षप नहीं करने दिया जाएगा।

 

जाहिर है, वहां दखलंदाजी करने वाले पड़ोसी पाकिस्तान और ईरान ही हैं। यह चेतावनी वाशिंगटन में पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल की कूटनीतिक वार्ता और करजई व ईरानी राष्ट्रपति अहमदीनिजाद के दौरों के विनिमय के तुरंत बाद जारी की गई है। ओबामा ने करजई को शासन में सुधार और भ्रष्टाचार में कमी लाने को भी कहा है। किंतु साथ ही 12 मई को करजई को वाशिंगटन के न्यौते से ओबामा ने यह संदेश भी दिया है कि वह करजई के साथ साझेदारी जारी रखना चाहेंगे। इसमें एक और चेतावनी निहित थी कि करजई ईरान के अधिक करीब जाने का प्रयास न करें।

 

मीडिया के अनुसार वाशिंगटन कूटनीतिक वार्ता में पाकिस्तान अपनी मांगों के संदर्भ में अमेरिका के रुख में कोई बदलाव लाने में सफल नहीं हुआ। कुछ रिपोर्टो में यह भी कहा गया है कि इस बार पाकिस्तान ने अलग रणनीति अपनाई थी। अब तक दोनों देशों के बीच वार्ता सौदेबाजी पर केंद्रित रहती थी। यह अमेरिका के पक्ष में पाकिस्तान के सहयोग के लिए विशिष्ट आर्थिक सहायता के मुद्दे तक सिमटी रहती थी। इस बार पाकिस्तानी सैन्य प्रमुख ने पाकिस्तान की मांगों और चिंताओं को समग्र रूप में अमेरिका के सामने रखा है। ये 56 पेज के मसौदे के रूप में पहले ही अमेरिका को सौंप दी गई थीं।

 

पाकिस्तानी नेतृत्व ने यह मान लिया था कि अमेरिका 2011 के मध्य तक अफगानिस्तान से निकलने का उत्सुक है। इसलिए पाकिस्तान ने तालिबान और अल-कायदा के खिलाफ लड़ाई में अमेरिका को सहयोग देने की कीमत वसूलनी चाही। पाकिस्तान की मांगों में सैन्य उपकरणों और हथियारों की आपूर्ति, विकास कार्र्यो में योगदान और कश्मीर व पानी के मुद्दे पर भारत के खिलाफ पाकिस्तान को समर्थन देना शामिल है। साथ ही भारत के साथ परमाणु करार की तर्ज पर पाकिस्तान के साथ भी परमाणु करार करने की मांग पाकिस्तान ने रखी है। हथियारों व सैन्य उपकरणों की आपूर्ति और दीर्घकालीन विकास के मुद्दे पर तो अमेरिका का रवैया सकारात्मक था किंतु कश्मीर, परमाणु करार और पानी के बंटवारे पर उसका रुख नकारात्मक था।

 

अब काबुल संदेश में ओबामा ने संकेत दिया है कि अमेरिका अफगानिस्तान के प्रति वचनबद्धता पर तब तक टिका रहेगा जब तक वह एक स्थिर देश के रूप में स्थापित न हो जाए और वहां पड़ोसियों की दखलंदाजी बंद न हो जाए। अफगानिस्तान व पाकिस्तान में सैन्य कार्रवाई के संबंध में ओबामा ने बगराम एयरफोर्स बेस पर अमेरिकी सैनिकों से कहा, ‘हम यह नहीं भूल सकते कि हम यहां क्यों हैं। हमने इस युद्ध को नहीं चुना..हम पर 9/11 का भयावह हमला किया गया। हमारे देश, हमारे सहयोगियों, अफगानिस्तान व पाकिस्तान के खिलाफ षड्यंत्र रचे जा रहे हैं। और अगर यह क्षेत्र पीछे जाता है, अगर देश पर फिर अल-कायदा काबिज हो जाता है तब और अमेरिकी लोगों की जान पर बन आएगी..और जब तक मैं आपका कमांडर इन चीफ हूं, तब तक ऐसा नहीं होने दूंगा। इसीलिए आप यहां हैं..हमारा व्यापक अभियान स्पष्ट है-हम अल-कायदा और इसके उग्रवादी सहयोगियों को बर्बाद करके उन्हें करारी शिकस्त देंगे। यही हमारा मिशन है। और इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए अफगानिस्तान में हमारे लक्ष्य भी स्पष्ट हैं-हम अफगानिस्तान को अल-कायदा को सुरक्षित पनाहगाह नहीं बनने देंगे। हम अफगान सुरक्षा बलों और अफगान सरकार को मजबूत बनाना चाहते हैं ताकि वह अपने कंधों पर जिम्मेदारी उठा सके और अफगानियों में विश्वास जगा सके।’

 

‘द क्वाडरनिअल डिफेंस रिव्यू आफ यूएस डिफेंस डिपार्टमेंट’ ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था, ‘हम अब स्वीकार कर सकते हैं कि खतरों से निपटने की हमारी क्षमता मुख्यत: वर्तमान संघर्ष में सफलता पर निर्भर करती है।’ कोई भी समझ सकता है कि पाकिस्तानी अमेरिका के संबंध में गलत आकलन कर रहे थे, जैसाकि उन्होंने 1947, 1965, 1971 और 1999 में भारत के खिलाफ किया था। भारत और पाकिस्तान में यह अवधारणा है कि अमेरिका युद्ध में मात खाएगा। और इसके बाद वह वहां अव्यवस्था फैल जाएगी। किंतु ऐसा नहीं है कि अमेरिका युद्ध के बीच ही मैदान छोड़ देगा। ओबामा ने साफ कर दिया है कि वह ऐसी गलती नहीं करने जा रहे हैं। यही ओबामा का संदेश है।

Source: Jagran Yahoo

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