Menu
blogid : 133 postid : 332

आतंकवाद से निपटने की कमजोर इच्छाशक्ति

संपादकीय ब्लॉग
संपादकीय ब्लॉग
  • 422 Posts
  • 640 Comments

भारत सरकार जिस प्रकार से आतंकवाद और विदेश नीति के मामले में लगातार असफल साबित हो रही है वह देश के भविष्य के लिए एक खतरनाक संकेत है. हाल के कुछ मामले इसका ताजा उदाहरण हैं कि जब राष्ट्रहित के लिए जरूरत थी मजबूत इच्छाशक्ति की तब सरकार ने बड़े ही लापरवाही का परिचय दिया. प्र्ख्यात वरिष्ठ स्तम्भकार तरुण विजय ने इस मसले को बड़े ही संजीदगी से उठाया है.

 

अभी 26/11 के मुख्य षड्यंत्रकारियों में से एक डेविड कोलमैन हेडली से पूछताछ में भारत सरकार की असफलता की स्याही सूखी भी नहीं थी कि रेल मंत्रालय के उस विज्ञापन की चर्चा उभरकर आई, जिसमें दिल्ली को पाकिस्तान में दिखाया गया है.इस मामले पर भी उसी तरह लीपापोती की जा रही है जैसी कुछ दिन पहले समाज कल्याण मंत्रालय के विज्ञापन में पाकिस्तानी वायुसेना अध्यक्ष का चित्र छापने पर की गई थी. इसी बीच तमाम तरह की मक्कारियों और भारत विरोधी आक्रामकताओं के बावजूद पाकिस्तानी पक्ष को वार्ता के लिए बुलाकर भारत सरकार ने अमेरिकी दबाव का आरोप आमंत्रित किया था.उस वार्ता से भी कोई नतीजा नहीं निकला, बल्कि पाकिस्तानी विदेश मंत्री से यहा तक सुन लिया गया कि भारत ने घुटने टेककर पाकिस्तान को वार्ता के लिए बुलाया है.

 

कसाब पर मुकदमा चलते हुए दो साल से अधिक समय हो गया है, परंतु मामला किसी नतीजे तक पहुंचता नहीं दिखता.उधर, अमेरिका ने तो हेडली पर छह महीने से भी कम समय में मुकदमा चलाकर और साक्ष्य जुटाकर निर्णय तक पहुंचने की अद्भुत चुस्ती दिखाई है, जो भारत के लिए एक सबक होना चाहिए.भारत में आम धारणा बन गई है कि अभी तक सरकार किसी भी आतंकवादी को सजा की परिणति तक नहीं पहुंचा पाई है.मुंबई दंगों के आरोपियों को भी 13 साल तक चले मुकदमों के बाद सजा सुनाई गई.अफजल को फांसी न दिए जाने की तो अलग ही कहानी बन चुकी है.

 

कुल मिलाकर यह परिदृश्य उभर रहा है कि सरकार का शरीर भले ही दिल्ली में हो पर उसका मन भारत में नहीं है.इसलिए आतंकवादियों से बातचीत की जाती है, लेकिन देशभक्तों के शरणार्थी बनने पर भी सरकार के मन में दर्द नहीं उमड़ता. 5.5 लाख से अधिक कश्मीरी हिंदू शरणार्थी हैं.मुजफ्फराबाद और रावलपिंडी से 1947 में कश्मीर आए हिंदू शरणार्थियों की संख्या 3 लाख हो गई है.इन्हें अभी तक न कश्मीर की नागरिकता मिली है न ही मतदान करने का अधिकार है. इसके विपरीत पाक अधिकृत गुलाम कश्मीर में आतंकवाद की ट्रेनिंग लेने गए कश्मीरी मुस्लिम युवाओं को भारत के गृहमंत्री और जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री द्वारा वापस श्रीनगर लौटने का न्योता दिया जाता है. यह किस मानसिकता का द्योतक है?

 

हेडली का मामला तो सबसे शर्मनाक और आत्मघाती है.हेडली मुख्यत: भारत का अपराधी है.उस पर अमेरिका में मुकदमा चलाए जाने से अधिक न्यायसंगत भारत में मुकदमा चलाया जाना है.26/11 का मुख्य युद्धस्थल भारत था.हेडली 12 बार भारत आकर षड्यंत्र की आधारभूमि तैयार कर गया था.कुछ अमेरिकियों के उस आक्रमण में मारे जाने के कारण अमेरिका हेडली पर मुकदमा चलाने का मुख्य नैतिक अधिकार नहीं प्राप्त कर लेता जैसे अमेरिका में 9/11 के हमले में कुछ भारतीयों के मारे जाने के परिणामस्वरूप भारत 9/11 के आरोपियों पर मुकदमा चलाए जाने का मुख्य नैतिक अधिकार प्राप्त नहीं कर सकता.लेकिन अमेरिका ने न केवल कसाब से भारत आकर पूछताछ का अधिकार प्राप्त किया, बल्कि जब भारत के गुप्तचर अधिकारी हेडली से पूछताछ के लिए अमेरिका गए तो उन्हें बैरंग वापस लौटा दिया.अमेरिका हेडली से पूछताछ के मामले में यह बात ढकने की कोशिश कर रहा है कि उसने हेडली को मुस्लिम नाम बदलकर इसाई नाम रखने की अनुमति दी.हेडली अमेरिका के लिए डबल एजेंट का भी काम करता रहा है.

 

ओबामा ने भारत को हेडली के मामले में पूरी तरह से निराश और विफल किया है तो दूसरी ओर भारत की दब्बू अमेरिकापरस्त सरकार ने भारतीय नागरिकों को असफल किया है.भारत सरकार को हेडली के मामले में अमेरिका सरकार के सामने जो आक्रामकता दिखानी चाहिए थी, उसका शतांश भी नहीं दिखाई. दुनिया में आतंकवाद का सबसे अधिक शिकार होने के बावजूद भारत दुनिया के किसी भी देश को प्रभावित करने या उसे अपने साथ आतंकवाद विरोधी मुहिम में जोड़ने में पूरी तरह नाकामयाब रहा है.

 

वास्तव में अमेरिका की आतंकवाद विरोधी नीति पूरी तरह से एकातिक और स्वार्थ केंद्रित है.यह मानना बड़ी भूल होगी कि ओबामा आतंकवाद विरोधी मुहिम में भारत की संवेदनाओं को समझेंगे या यहा की लोकतात्रिक परंपरा का सम्मान करेंगे.पाकिस्तान को अमेरिका पूरी तरह से अपनी मुस्लिम विश्वनीति और अपनी दृष्टि के आतंकवाद विरोधी युद्ध में एक आवश्यक सहयोगी के नाते मान्य करता है.उसका स्वार्थ है कि पाकिस्तान अपने पश्चिमी मोर्चे पर अफगानी तालिबानी से लोहा लेता रहे.पाकिस्तान भारत के खिलाफ आतंकवादियों को बढ़ावा दे रहा है या नहीं, इससे अमेरिका को कोई सरोकार नहीं है.यही कारण है कि मुंबई 26/11 के हमले के संदर्भ में अमेरिका द्वारा पकड़े गए हेडली से भारत के अधिकारी प्रत्यक्ष पूछताछ से भी दूर रखे गए हैं.

 

शक्तिहीन सत्ता केंद्र राष्ट्रीय भावनाओं के अभाव में युद्ध कैसे हारते हैं, वर्तमान सरकार उसका एक दयनीय उदाहरण है. ओबामा अमेरिका के राष्ट्रपति हैं, भारत की चिंता करना उनका काम नहीं है.वह अपनी दृष्टि से अपने देश का हित कर रहे हैं. सवाल उठता है कि भारत के नेता भारत के हित के संदर्भ में क्या कर रहे हैं? दोनों ओर से परमाणु शक्ति संपन्न शत्रु देशों से घिरा भारत आंतरिक तौर पर नक्सली आतंक से लहुलुहान है.लेकिन कहीं भी आतंक पर विजय प्राप्त कर नागरिकों को निर्भय बनाने की इच्छाशक्ति नहीं दिखती.

Source: Jagran Yahoo

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply to R S Singh patelCancel reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh