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भारतीय जनता पार्टी के नए सिपहसालारों की घोषणा हो चुकी है. देश में हर तरफ इस बात को लेकर एक बहस छिड़ चुकी है कि क्या इन नए पदाधिकारियों को लेकर भाजपा किसी बड़े चमत्कार की उम्मीद कर सकती है? क्या वह अपने खोए हुए जनाधार को वापस पा सकने में सफल हो सकेगी?
भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने बदलते वक्त की जरूरत के लिहाज से अपनी टीम के चुनाव में एक संतुलन कायम करने का प्रयास किया है. उनकी टीम में कुछ अनपेक्षित चेहरे हो सकते हैं और उन्हें लेकर सवाल भी खड़े किए जा सकते हैं, लेकिन इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि उन्होंने युवाओं और महिलाओं को प्राथमिकता दी है.
ग्लैमर जगत के चेहरे भी उनकी प्राथमिकता सूची में नजर आ रहे हैं. गडकरी की इस टीम की क्षमता और उसके प्रभाव को लेकर चाहे जैसी व्याख्या की जाए, यह उम्मीद नजर आती है कि वह कुछ ताजगी और नएपन का अहसास कराएगी. समस्या यह है कि इतने मात्र से बात बनने वाली नहीं है. भाजपा को नए चेहरों के साथ राजनीति करने की जितनी आवश्यकता है उससे कहीं अधिक जरूरत एक ऐसे करिश्माई नेतृत्व की है जिसके पीछे न केवल पूरी पार्टी एकजुट खड़ी नजर आए, बल्कि उसकी राष्ट्रव्यापी स्वीकार्यता भी दिखे. फिलहाल ऐसे किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सकता कि अपनी टीम के साथ भाजपा अध्यक्ष कितनी और कैसी सफलता हासिल कर सकते हैं, क्योंकि अभी तो वह शुरुआत ही कर रहे हैं. उन्हें स्वयं को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त अवसर दिया ही जाना चाहिए.
यह सही है कि नितिन गडकरी पार्टी को नई दिशा देने के लिए तत्पर हैं तथा नए विचारों को अपनाते दिख रहे हैं, लेकिन यह भी स्पष्ट है कि उनकी अपनी सीमाएं हैं-खासकर यह देखते हुए कि वह व्यापक जनाधार वाले राजनेता नहीं हैं. यह समय ही बताएगा कि वह अपनी नीतियों, योजनाओं और विचारों से खुद की टीम को कितना प्रेरित कर पाते हैं और उसका प्रभाव आम जन मानस पर पड़ता है या नहीं? ध्यान रहे कि भाजपा नेतृत्व की पहली आवश्यकता अपने कार्यकर्ताओं में मनोबल का संचार करने की है. जब उसके कार्यकर्ता उत्साहित होंगे तभी भाजपा अपने उन समर्थकों को आकर्षित कर सकेगी जो या तो उदासीन हो गए हैं अथवा अन्य दलों की ओर खिंच रहे हैं.
वर्तमान में भाजपा की एक बड़ी समस्या ऐसे मुद्दों के अभाव की है जिनके माध्यम से वह औरों से अलग दल की अपनी छवि का निर्माण कर सके. नितिन गडकरी को मुद्दों के इस अभाव को दूर करना होगा और वह भी पुराने मुद्दों पर आश्रित हुए बगैर. यह सही है कि भाजपा राम मंदिर निर्माण, अनुच्छेद 370 और समान नागरिक संहिता को अपने प्रमुख मुद्दे बताती है, लेकिन अब ये ऐसे मसले नहीं रह गए हैं कि वह आम जनता को आंदोलित कर सके.
नितिन गडकरी और उनकी नई टीम के समक्ष एक चुनौती भाजपा को उन क्षेत्रों में मजबूत करने की भी है जो एक समय उसके गढ़ हुआ करते थे और आज जहां उसकी हालत दयनीय ही अधिक है. गडकरी के नेतृत्व में भाजपा इन चुनौतियों का सामना तभी कर सकती है जब राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक स्तर के उसके नेता न केवल उनके पीछे एकजुट होकर खड़े हों, बल्कि खड़े हुए नजर भी आएं. यह इसलिए, क्योंकि भाजपा में गुटबाजी का रोग अन्य दलों सरीखा नजर आने लगा है.
Source: Jagran Yahoo
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