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ट्रैफिक जाम

संपादकीय ब्लॉग
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आज देश के महानगरों सहित छोटे-छोटे कस्बाई शहरों की सबसे बड़ी समस्या ट्रैफिक जाम है. वहीं ऑटो इंडस्ट्री की तेज ग्रोथ की कामना भी की जा रही है. देश में अब महंगी से महंगी गाड़ियां बिकने लगी हैं. भले ही उनके चलने के लिए जगह बिलकुल ना हो फिर भी लोगों के पास बढ़ते धन के कारण कारों की बिक्री पर मन्दी के दौर में भी कोई खास फर्क नहीं पड़ा.  कार के उत्पादन का उद्देश्य था कि लोग अपने गंतव्य स्थान पर जल्दी और आराम से पहुंच सकेंगे, किंतु हो रहा है इसका ठीक उलटा. गंतव्य तक पहुंचने में समय ज्यादा लग रहा है और जनता कार में बैठे-बैठे अनायास ही काला पानी की सजा भोग रही है.

 

समस्या की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए

 

ट्रैफिक जाम से केवल कार में बैठे यात्री ही परेशान नहीं होते, बल्कि स्कूटर और साइकिल सवारों को भी परेशान होना पड़ रहा है. कहीं-कहीं पैदल चलना भी संभव नहीं रह गया है. देश के लिए यह हर प्रकार से घाटे का सौदा है. सड़कों एवं कारों में हमारी पूंजी लग रही है. यात्रा में समय ज्यादा खप रहा है. ऊपर से सामान्य यात्रियों को भी परेशानी हो रही है. आकड़ों में आर्थिक विकास अवश्य दिख रहा है चूंकि कार ज्यादा संख्या में बिक रही है. जाम में खड़ी कार का इंजन चालू रहने के कारण पेट्रोल फूंका जा रहा है जो हमारे सकल उत्पाद में जुड़ जाता है. परंतु यह विकास नाकाम है. दूसरे देशों में भी ऐसी ही परिस्थितियां हैं. आस्ट्रेलिया में परामत्ता से सिडनी पहुंचने में सौ वर्ष पूर्व घोड़ा गाड़ी से एक घटे का समय लगता था. आज इससे ज्यादा समय कार से पहुंचने में लगता है. अनुमान है कि आस्ट्रेलिया में 2020 तक कार यात्रा का समय वर्तमान से दोगना हो जाएगा. ट्रैफिक जाम लगने का कारण स्पष्ट है कि कारों की संख्या सड़कों की क्षमता से ज्यादा है. इसका हल सुझाया जाता है कि सड़के चौड़ी कर दी जाएं और फ्लाईओवर बना दिए जाएं. परंतु यह समस्या का हल नहीं है. फ्लाईओवर बनाने के 4-6 महीने बाद ही कार की संख्या में इतनी वृद्धि हो जाती है कि पुन: जाम लगने लगता है.

 

एक्साइज ड्यूटी में वृद्धि

 

हाल में पेश किए गए बजट में वित्त मंत्री ने डीजल एवं पेट्रोल के दाम बढ़ाए हैं और बड़ी कारों पर एक्साइज ड्यूटी बढ़ाई है. ये कदम स्वागत योग्य हैं. परंतु इससे ट्रैफिक जाम समस्या का हल नहीं होगा क्योंकि कार के शहरी मालिकों के लिए यह भार ऊंट के मुंह में जीरे के बराबर है. एक लाख प्रति माह कमाने वाले व्यक्ति पर 2500 किलोमीटर की यात्रा पर पेट्रोल के दाम में 3 रुपए की वृद्धि का मासिक भार कुल 500 रुपए पड़ेगा. पिछले 20 वर्षों में पेट्रोल के दाम 15 रुपए प्रति लीटर से बढ़कर 50 रुपए प्रति लीटर हो गए हैं, इसके बावजूद कार से यात्रा करने वालों की संख्या में लगातार वृद्धि ही हो रही है. मेट्रो बनाने एवं बसों की संख्या बढ़ाने से भी समस्या का हल नहीं निकलता है.

 

ट्रैफिक जाम से निजात के सुझाव

 

ट्रैफिक जाम का एकमात्र हल शहरों के भीड़-भाड़ वाले इलाकों में कार चलाने पर विशेष टैक्स लगाना है. इसे ‘भीड़ टैक्स’ का नाम दिया जा सकता है. लंदन शहर के केंद्र में कार चलाने को एक दिन का 500 रुपए का परमिट खरीदना पड़ता है. स्टाकहोम, सिंगापुर एवं सियोल जैसे महानगरों में भी इसी प्रकार के टैक्स लगाए गए हैं और सार्थक परिणाम सामने आए हैं. हमें सभी शहरों के चिह्नित इलाकों में प्रवेश पर एक हजार रुपए प्रतिदिन का परमिट लागू करना चाहिए. टैक्सियों के लिए भी इन क्षेत्रों में प्रवेश को महंगे परमिट जारी करने चाहिए. केवल सचिव स्तर के अधिकारियों एवं मंत्रियों को इस टैक्स से छूट दी जानी चाहिए. साथ-साथ बस एवं मेट्रो का विस्तार किया जाना चाहिए. फिर भी, इस सुझाव को लागू करने में सावधानी बरतनी चाहिए. एक रपट के अनुसार लंदन में 4600 करोड़ रुपए के ‘भीड़ टैक्स’ वसूल करने के बावजूद ट्रैफिक जाम की समस्या हल नहीं हुई. वसूल की गई अधिकतर रकम का उपयोग ट्रैफिक प्रशासन के खचरें में खप गया. अत: हमें इस व्यवस्था को लागू करने का सरल उपाय खोजना होगा. विदेशों में इलेक्ट्रानिक उपकरणों के माध्यम से टोल टैक्स अदा किया जाता है. इसी प्रकार के इलेक्ट्रानिक उपकरणों से दैनिक परमिट धारकों पर नजर रखी जा सकती है. टैक्स की दर भी ऊंची रखनी होगी ताकि लागों के लिए शहरों में कार चलाना वास्तव में महंगा हो जाए.

 

‘भीड़ टैक्स’ लगाने की इस प्रकार की संस्तुति योजना आयोग की होडा कमेटी ने 2006 की रपट में दी थी. कमेटी द्वारा दिए गए अन्य सुझावों पर भी अमल किया जाना चाहिए. ये हैं- शहरों में पार्किंग फीस में भारी वृद्धि; कार के रजिस्ट्रेशन चार्ज में वृद्धि और वार्षिक रोड टैक्स को कार की साइज अथवा पेट्रोल की खपत के अनुसार निर्धारित करना. इन सभी संस्तुतियों को तत्काल लागू करना चाहिए. कार उद्योग के लाभ के लिए भोली-भाली जनता का कीमती समय ट्रैफिक जाम में बर्बाद नहीं करना चाहिए. ट्रैफिक जाम में बर्बाद हो रहे पेट्रोल को सकल उत्पाद में नहीं जोड़ना चाहिए.

Source: Jagran Yahoo

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