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26 वर्षो तक चले गृहयुद्ध के बाद लग रहा था कि श्रीलंका में शांति की स्थापना हो गई है और देश के हर वर्ग के लोग मिलकर आर्थिक विकास के लिए भरपूर प्रयास करेंगे। हाल ही में संपन्न राष्ट्रपति के चुनाव में महिंदा राजपक्षे को अभूतपूर्व सफलता मिली थी। उन्हें 58 प्रतिशत मत प्राप्त हुए और उनके प्रतिद्वंद्वी जनरल सरथ फोंसेका को मात्र 40 प्रतिशत। विडंबना है कि श्रीलंका के दोनों समुदाय सिहंली और तमिल भारत से ही गए हैं। आजादी के बाद सिंहली और तमिलों में जातीय दंगे होने शुरू हो गए थे। सरकार में सिंहलियों का प्रभुत्व था। उन्होंने तमिलों के प्रति भेदभाव का रवैया अपनाया। सरकार ने ऐसे नियम बनाए जिससे स्कूल और कालेज में दाखिलों और सरकारी नौकरियों में तमिलों की अपेक्षा सिंहलियों को ज्यादा महत्व दिया जाने लगा। नतीजा यह हुआ कि पर क्षेत्र में सिंहली छा गए। तमिलों में इसकी घोर प्रतिक्रिया हुई और उनकी तरफ से यह मांग होने लगी कि देश के उत्तर और पूर्वी क्षेत्रों में जहां वे मुख्य रूप से बस गए थे, उन्हें स्वायत्तता दी जाए।
श्रीलंका में उग्रवादी संगठन लिट्टे का उदय हुआ, जिसका प्रधान प्रभाकरण था। प्रभाकरण की मांग थी कि श्रीलंका के उत्तर और पूर्वी क्षेत्रों को मिलाकर एक अलग देश बनाया जाए। पिछले साल राजपक्षे ने निर्दयतापूर्वक लिट्टे को कुचल दिया। प्रभाकरण भी इस लड़ाई में मारा गया। किंतु लिट्टे के सफाए के बाद जनरल सरथ फोंसेका और राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे के बीच मतभेद पैदा हो गए। पद से इस्तीफा फोंसेका राष्ट्रपति के चुनाव में राजपक्षे के खिलाफ कूद पड़े। पुनर्निर्वाचन के बाद राजपक्षे ने देश में लोकतंत्र की बहाली के लिए उदारवादी रवैया नहीं अपनाया। उन्होंने संसद भंग कर दी और यह घोषणा की कि अप्रैल के महीने में नए संसद सदस्यों का चुनाव होगा। साथ ही श्रीलंका के पूर्व सैन्य प्रमुख सरथ फोंसेका को गिरफ्तार कर लिया गया। उन पर आरोप लगाया गया कि सैन्य सेवा के दौरान उन्होंने सेना नियमों का उल्लंघन किया था। साथ ही राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे की सरकार का तख्ता पलट करने की साजिश की थी और राजपक्षे की हत्या की योजना बनाई थी। सारा देश यह जानकर स्तब्ध रह गया कि झूठे आरोप लगाकर जनरल फोंसेका को गिरफ्तार कर लिया गया है। पूरी दुनिया के मीडिया ने राजपक्षे के इस कदम की घोर भर्त्सना की है। अमेरिका के प्रमुख समाचारपत्रों ने अपने संपादकीय में लिखा है कि राजपक्षे ने लोकतांत्रिक देशों की सहानुभूति खो दी है। श्रीलंका में आज वही हो रहा है जो कभी पाकिस्तान और बांग्लादेश में होता था। जहां राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को झूठे आरोप लगाकर कड़ी सजा दी जाती थी। वह राजनीतिक बदले की भावना से काम कर रहे हैं।
फोंसेका को कहां रखा गया है यह किसी को मालूम नहीं है। उनकी पत्नी अनोमा ने संवाददाताओं को बताया कि बिना कारण बताए कुछ जवान उन्हें घसीटकर ले गए हैं। सरकार ने यह नहीं बताया कि फोंसेका कहां हैं। सारे संसार के लोकतांत्रिक देशों में यह भावना फैल रही है कि फोंसेका की गिरफ्तारी के कारण राजपक्षे ने जो कुछ अर्जित किया था उसे खो दिया। राजपक्षे ने देश की मीडिया का गला घोंट दिया है। श्रीलंका में अनेक समाचारपत्रों को बंद कर दिया है। सरकार की आलोचना करने वाली कई वेबसाइटों को भी बंद कर दिया है। सन 2008 में ‘संडे लीडर’ के संपादक लासंथा विक्रमतुंगा की हत्या कर दी गई थी। उन्होंने सरकार के खिलाफ अनेक लेख लिखे थे। अपने अंतिम लेख में उन्होंने आशंका प्रकट की थी कि पुलिस या फौजी जवान उनकी हत्या कर सकते हैं। उनका भय सही निकला। आज तक यह नहीं पता लग सका कि उनकी हत्या किसने की थी। इसी प्रकार अन्य बहुत से पत्रकारों को राजपक्षे सरकार ने प्रताड़ित किया है।
श्रीलंका की घटनाएं सभी लोकतांत्रिक देशों के लिए चिंता का विषय हैं। यह सच है कि लिट्टे की तरह का कोई अन्य उग्रवादी संगठन वहां तैयार नहीं हो सकेगा परंतु यह नहीं भूलना चाहिए कि फोंसेका का भी श्रीलंका में जनाधार है। उन्हें राष्ट्रपति के चुनाव में 40 प्रतिशत मत मिले थे और देश की सभी विपक्षी पार्टियों ने उनका समर्थन किया था। ऐसे में यदि फोंसेका के साथ न्याय नहीं होता है तो डर इस बात का है कि श्रीलंका में भयानक राजनीतिक तूफान आ जाएगा और वह देश एक बार फिर से किसी न किसी रूप में गृहयुद्ध का शिकार हो जाएगा।
[डा. गौरीशंकर राजहंस: लेखक पूर्व सांसद एवं पूर्व राजदूत हैं]
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