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राष्ट्रीय सुरक्षा के बहाने

संपादकीय ब्लॉग
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subhasini1-1_1264701317_mराष्ट्रीय सुरक्षा का विषय इस समय चर्चा में है। राष्ट्रीय सुरक्षा के ढांचे मे फेरबदल भी किया जा रहा है। हमारी न्यायपालिका और पुलिस के कुछ सदस्यों ने तो काफी आगे बढ़कर राष्ट्रीय सुरक्षा को बचाए रखने का काम नए अंदाज में कर दिखाया है। कर्नाटक उच्च न्यायालय के सामने एक ऐसा मामला पिछले साल अक्टूबर में गया। कर्नाटक की एक हिंदू लड़की ने केरल के एक मुस्लिम लड़के से शादी कर ली। दोनो ही बालिग थे। लड़की के माता-पिता ने न्यायालय के सामने यह बयान दिया कि उनकी लड़की इस्लामी आतंकवादी संगठन की साजिश का शिकार बनाई गई है। उनके अनुसार इस संगठन के सदस्य हिंदू लड़कियों को बहला-फुसलाकर उनसे शादी करते हैं और उसके बाद उनका इस्तेमाल आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए करते हैं। यह साजिश लव जिहाद नामक प्रक्रिया के तहत की जा रही है।

न्यायाधीश महोदय ने आनन-फानन में पुलिस को लड़की और उसके पति को उनके सामने हाजिर करने को कहा। लड़की ने बयान दिया कि उसने अपनी मर्जी से शादी की है, उसके ऊपर किसी प्रकार का दबाव नही डाला गया है। न्यायाधीश ने आदेश पारित करके लड़की को उसके मां-बाप को सुपर्द कर दिया। उन्होंने कहा कि इस मामले के राष्ट्रीय पैमाने के संदर्भ है, जो केवल सुरक्षा के मुद्दे से ही नहीं, बल्कि गैरकानूनी देह-व्यापार से जुड़े हुए हैं। उन्होंने पुलिस के उच्च-अधिकारियों को निर्देशित किया कि वह पूरे मामले की जांच तीन हफ्तों मे करे। कर्नाटक के तमाम पुलिस अधिकारी जांच में जुट गए। अंत में उनको न्यायालय के सामने आकर कहना पड़ा कि न तो उन्हें लव जिहाद के संबंध में कुछ पता चल पाया है और न ही किसी आतंकवादी साजिश का। सिल्जा को अपने पति के साथ घर जाने की अनुमति भी न्यायाधीश को देनी ही पड़ी।

इसी प्रकार दिसंबर 2009 में 33 वर्षीय नीतू सिंह को पुणे के फिल्म और टेलीविजन की मशहूर संस्था से स्थानीय पुलिस ने राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित कारण बताते हुए वापस अपने देश नेपाल भेज दिया। नीतू सिंह एक नेपाली महिला है। उनकी शादी नेपाल के एक प्रभावशाली व्यक्ति अमरेश से हुई थी जो राजनीतिक रूप से भी काफी सक्रिय थे। 2008 में ही नीतू सिंह ने पुणे में अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति के स्थानीय नेताओं से संपर्क किया और उन्हें बताया कि उनके पति द्वारा किए गए उनके मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न से बचने के लिए ही वह नेपाल छोड़कर पुणे आई थी। वह पुणे में कोर्स करने के बाद आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होकर अपने पति से अलग ही रहना चाहती थी। जुलाई में नीतू ने स्थानीय पुलिस को अपने पति के खिलाफ एक तहरीर दी जिसमें उसने बताया कि वह लिखकर और फोन के माध्यम से उसे धमकी दे रहा है कि वह उसे जबरदस्ती नेपाल वापस भिजवाने में सफल होकर रहेगा। दुर्भाग्यवश, स्थानीय पुलिस ने उसकी किसी प्रकार की मदद नहींकी। नीतू के मां-बाप भी, जो नेपाल में ही थे, उसकी बात को मानने के लिए तैयार नहीं थे।

नीतू के पति ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके दिल्ली और महाराष्ट्र के पुलिस अधिकारियों को इस बात के लिए तैयार किया कि वह राष्ट्रीय सुरक्षा का बहाना लेकर उसे जबरदस्ती पुणे से वापस नेपाल भेज देंगे। पांच दिसंबर को यही हुआ। दूसरे दिन ही मा‌र्क्सवादी सांसद वृंदा करात ने गृह मंत्री पी. चिदंबरम से इस सिलसिले में बात की। उन्होंने मामले से अनभिज्ञता व्यक्त की। अच्छा तो यह हुआ कि हमारे अति-सतर्क पुलिसवालों ने नीतू को उसके पति के बजाय उसके माता-पिता के हवाले किया। उन्होंने जब अपनी बेटी की दास्तान सुनी तो उनकी आंखें भी खुल गईं और उन्होंने उसका साथ देने का फैसला कर दिया। इधर वृंदा करात ने नीतू की तरफ से अपने प्रयास जारी रखे। पुणे में महिला समिति की इकाई ने एफटीआईआई के तमाम नामी-गिरामी पूर्व छात्र-छात्राओं से गृह मंत्री पर दबाव डलवाया। चिदंबरम ने स्वयं भी काफी दिलचस्पी ली। इस सबका परिणाम यह हुआ कि कुछ हफ्तों के अंतराल के बाद नीतू सिंह वापस पुणे आ ही गई, लेकिन उन पर इस बात की पाबंदी लगा दी गई कि वह किसी पत्रकार से कोई बात नहीं करेंगी। नि:संदेह इस तरह की हरकतों से राष्ट्रीय सुरक्षा को क्षति ही पहुंच सकती है। अगर विभिन्न राज्यों की पुलिस का इस्तेमाल इस तरह से किया जाएगा तो तो जो काम उन्हें वास्तव में करना चाहिए वह कब होगा? ऐसी घटनाएं कुल मिलाकर न्यायपालिका और पुलिस की साख को ही प्रभावित करती हैं।

[सुभाषिनी अली सहगल: लेखिका लोकसभा की पूर्व सदस्य हैं]

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