Menu
blogid : 133 postid : 98

उच्च शिक्षा की बिखरी कड़ियां

संपादकीय ब्लॉग
संपादकीय ब्लॉग
  • 422 Posts
  • 640 Comments

उच्च शिक्षा किसी देश की न केवल आर्थिक व्यवस्था की रीढ़ होती है, बल्कि वह उसके सामाजिक चिंतन की बुनियाद, सास्कृतिक बनावट की समझ और राजनीतिक प्रतिष्ठा का भी परिचायक होता है। इस पैमाने पर हम देखें तो विश्व स्तर पर पश्चिम के देशों ने बाजी मारी हुई है। यह अनायास नहीं है कि दुनिया के शैक्षणिक मानचित्र पर अमेरिका, इंग्लैंड या पश्चिमी देशों के विश्वविद्यालयों और संस्थाओं का वर्चस्व है। एशियाई देश इस मामले में थोड़े पीछे चल रहे हैं, हालाकि सिंगापुर, दक्षिण कोरिया, जापान और अब जाकर चीन इस दिशा में कदम बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। इस मामले में हमारा भारत थोड़ा पीछे चल रहा है। हमारे यहां उच्च शिक्षा के स्तर पर आमूल-चूल परिवर्तन की जरूरत है। स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर से लेकर पीएचडी स्तर तक प्रवेश, पाठ्यक्रम और प्रणाली में विभिन्न सुधारों की जरूरत है।

नए मानव संसाधन मंत्री के नेतृत्व में अनेक सुधार हो रहे हैं, लेकिन अभी भी अनेक चीजें छूट रही हैं। स्नातकोत्तर स्तर की शिक्षा अर्थात एमए, एमएससी, एमकाम, एमटेक, एमडी, एमएस आदि उच्चतर शिक्षा का एक तरह से सबसे महत्वपूर्ण पायदान है, क्योंकि एक तरफ जहां इस स्तर पर आकर विद्यार्थी किसी एक विषय में मास्टर होता है और माना जाता है कि उस विषय में व्यक्ति सम्यक, संपूर्ण और श्रेष्ठ ज्ञान से संपन्न है। दूसरी तरफ यह रिसर्च एंड डेवलपमेंट की आरंभिक सीढ़ी भी है, क्योंकि किसी विषय में मास्टरी से या उसके बाद ही उस विषय के बारे में शोधपरक सवालों, विश्लेषण, चिंतन और अनुसंधान की शुरुआत होती है, लेकिन अ्रफसोस के साथ कहना पड़ता है कि प्रवेश, पाठ्यक्रम और अध्ययन प्रणाली में स्नातकोत्तर स्तर की शिक्षा को हमारे शिक्षाविदों ने पूरी गंभीरता से नहीं लिया है। एमटेक, एमडी, एमएस आदि में तो फिर भी एक बेहतर स्थिति है, लेकिन एमए, एमएससी, एमकाम आदि परंपरागत शिक्षा के कार्यक्रम अभी तक पुरानी लीक पर ही चल रहे हैं, जबकि मानविकी, सामाजिक विज्ञान आदि ही वे आधार हैं जो समाज और देश की दशा एवं दिशा निर्धारित करते हैं। उसी तरह प्राकृतिक विज्ञानों की नींव पर ही विभिन्न प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग अथवा मेडिकल का ज्ञान टिका हुआ है। एमटेक एमडी, एमएस आदि के कोर्स में प्रवेश लेने के लिए आमतौर पर अखिल भारतीय परीक्षाओं को पास करना पड़ता है, जैसे ग्रेजुएट एप्टीट्यूड टेस्ट इन इंजीनियरिंग की परीक्षा के अंकों के आधार पर न केवल विभिन्न आईआईटी में एमटेक में दाखिला मिलता है, बल्कि विभिन्न एनआईटी और अन्य इंजीनियरिंग कालेजों में भी गेट स्कोर को प्रवेश के लिए एक महत्वपूर्ण पैमाना माना जाता है। इसी तरह आमतौर पर एमडी, एमएस में प्रवेश आल इंडिया पोस्ट ग्रेजुएट एंट्रेंस परीक्षा, जो कि अखिल भारतीय परीक्षा है या कम से कम राज्य स्तर पर होने वाली संयुक्त परीक्षा के द्वारा ही होता है।

इस तरह इंजीनियरिंग और मेडिकल आदि में स्नातकोत्तर स्तर पर प्रवेश लेने वाले छात्रों में वही छात्र आते हैं जिनकी शोध, विश्लेषण, विवेचन में रूचि हो या जो कम से कम इसके लिए मानसिक रूप से तैयार हों और अंतत: जो नए शोधों तथा अनुसंधानों को जन्म दे सकते हैं, जबकि एमए, एमएससी, एमकाम आदि परंपरागत कोसरें में प्रवेश आमतौर पर उनके स्नातक के अंकों के आधार पर होता है। इससे यह कठिनाई होती है कि जिन संस्थाओं में स्नातक स्तर पर उदारता से अंक मिल जाते हैं वहा के छात्रों को विभिन्न जगहों में आसानी से दाखिला मिल जाता है, लेकिन अनेक संस्थाओं में बहुत कड़ाई होती है और मुश्किल से विद्यार्थी को प्रथम श्रेणी मिलता है, जिससे उन्हें आगे दाखिला मिलने में परेशानी होती है। फिर चंद विश्वविद्यालयों में अगर प्रवेश परीक्षा होती भी है तो वह उस यूनिवर्सिटी के विभाग के स्तर पर होती है और परीक्षा का केंद्र भी सामान्यतया उसी यूनिवर्सिटी या शहर में होता है। किसी उम्मीदवार के लिए हर यूनिवर्सिटी में जा-जाकर प्रवेश परीक्षा में बैठना असंभव ही है। जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी नई दिल्ली एक अपवाद ही है, जहां परीक्षा के केंद्र देश के लगभग हर राज्यों में होते हैं। अर्थात एक ऐसी व्यवस्था की जरूरत है जिसकेतहत उम्मीदवारों को परीक्षा के केंद्र पास में ही मिल जाएं, इसके लिए इंजीनियरिंग और मेडिकल आदि की तरह एक केंद्रीकृत माडल की आवश्यकता है यानी एमए, एमएससी, एमकाम आदि में भी केंद्रीय स्तर पर प्रवेश परीक्षा कराई जाए और इसमें प्राप्त अंकों को भी दाखिला देने में आधार बनाया जाए।

यहीं प्रवेश से जुड़ी एक दूसरी समस्या का उल्लेख करना जरूरी होगा कि ये सभी प्रवेश परीक्षाएं सिर्फ अपने विषय से संबंधित होती हैं। यह जगजाहिर है कि एमए, एमएससी, एमकाम का पठन-पाठन परिचयात्मक न होकर शोधपरक, विश्लेषणपरक और अनुसंधानपरक होता है अर्थात विद्यार्थियों में एक तर्क शक्ति, आलोचनात्मक चिंतन, विश्लेषण क्षमता और लेखन कौशल का होना भी आवश्यक है, लेकिन सिर्फअपने विषय से संबंधित परीक्षाओं से इन योग्यताओं का निर्धारण संभव नहीं अर्थात एक ऐसी व्यवस्था की भी जरूरत है जो उम्मीदवारों की इन योग्यताओं का परीक्षण कर सके। यहां हमारे लिए अमेरिका में आयोजित ग्रेजुएट रिकार्ड परीक्षा एक मिसाल हो सकती है। जीआरई वह परीक्षा है जो अमेरिका, कनाडा और कई अन्य देशों में स्नातकोत्तर स्तर पर प्रवेश लेने के लिए आवश्यक है और जो अध्ययन के किसी विशेष क्षेत्र या विषय से संबंधित नहीं हैं। इसमें मौखिक तर्क परीक्षा, मात्रात्मक या संख्यात्मक तार्किकता, आलोचनात्मक और अमूर्त चिंतन, विश्लेषण क्षमता और लेखन कौशल का परीक्षण होता है। यह सिर्फ विदेशी छात्रों के लिए नहीं है, बल्कि उनके अपने विद्यार्थियों के लिए भी अनिवार्य है। हर साल लगभग 230 देशों के 600000 से अधिक संभावित स्नातक जीआरई जनरल टेस्ट में बैठते हैं। वैसे यह कंप्यूटर आधारित परीक्षण है, जहा कंप्यूटर उपलब्ध नहीं है उन परीक्षण केंद्रों पर यह कागज-कलम के आधार पर होता है। इसी तरह अमेरिका में विभिन्न विषयों से संबंधित जीआरई टेस्ट भी होता है। हालांकि कुछ कारणों से कुछ विषयों में यह टेस्ट अभी नहीं हो रहा है। इन विकसित देशों ने उच्चतर शिक्षा कार्यक्रमों को गुणवत्तापूर्ण बनाने के लिए वर्र्षो के शोध के बाद दाखिले में ऐसे कड़े मानक तय किए हैं।

आज हमारे यहां भी समय आ गया है कि हम अपने उच्चतर शिक्षा कार्यक्रमों में ऐसे सुधारों को शामिल करें अर्थात एमए, एमएससी, एमकाम आदि के दाखिले के लिए एक केंद्रीकृत परीक्षा आयोजित किया जाए, जो साल में दो बार आयोजित हो। यह परीक्षा सामान्य टेस्ट और विषय से संबंधित, दोनों ही तरह की हों। समाज के कमजोर वगरें के छात्रों के लिए यह नि:शुल्क होनी चाहिए। साथ ही यह नियम भी कि कोई विद्यार्थी इसमें अधिकतम तीन बार बैठ सकता है। नई सदी में बढ़ते हुए भारत के लिए इन उपायों को अपनाने से निश्चित रूप से लाभ होगा और ज्ञान आधारित भू-आर्थिक दुनिया में हम अपना झडा बुलंद कर सकेंगे।

[निरंजन कुमार: लेखक कई अमेरिकी विवि में प्राध्यापक रहे हैं]

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh