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एक और विभाजन

संपादकीय ब्लॉग
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जम्मू-कश्मीर कड़ाके की सर्दी में भी गरमा गया है। अलगाववादी राजनीतिक दल पहले से ही स्वायत्तता माग रहे थे। 26 जून, 2000 को विधानसभा ने एक खतरनाक ‘स्वायत्तता प्रस्ताव’ पारित किया था। 6 अप्रैल, 2006 को मुफ्ती मोहम्मद सईद ने कहा था कि जम्मू-कश्मीर ने 1947 से अब तक अपनी सरकार नहीं देखी। फारूख अब्दुल्ला ने 9 अप्रैल, 2006 को कहा था कि भारत ने जम्मू-कश्मीरी अवाम को 58 वर्ष से धोखा दिया है। उन्होंने केंद्र के बजाय भारत को धोखेबाज कहा। नवंबर 2009 में महबूबा मुफ्ती ने कहा था कि 1947 से अब तक बलपूर्वक हमसे आत्मसमर्पण ही कराया गया है। जम्मू-कश्मीर को अरबों रुपए की केंद्रीय सहायता मिलती है। अनुच्छेद 370 के अधीन राज्य को विशेष दर्जा है तो भी भारत से अलग मुल्क बनाने की तैयारी है। बावजूद इसके केंद्र-राज्य संबंधों पर प्रधानमंत्री द्वारा गठित कार्यदल के अध्यक्ष न्यायमूर्ति सगीर अहमद ने भी स्वायत्तता की अलगाववादी मागों पर मोहर लगा दी है। सगीर अहमद ने अनुच्छेद 370 के अस्थाई दर्जे पर अंतिम फैसले की भी पैरवी की है। लेकिन जम्मू में बीती 10 जनवरी को हुई बैठक में कार्यदल के सदस्यों में से पैंथर्स पार्टी के विधायक हर्षदेव, डा. अजय, अश्विनी कुमार, शेख अब्दुल रहमान व राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष अरुण जेटली ने रिपोर्ट को फर्जी और नेशनल काफ्रेंस का एजेंडा बताया है। जेटली ने सवाल उठाया कि सितंबर 2006 के बाद कार्यदल की कोई बैठक नहीं हुई तो यह रिपोर्ट कहा से आ गई?

प्रधानमंत्री जी क्षमा करें। आपके आयोग और समितिया अलगाववादी सिफारिशों के लिए ही कुख्यात हो रही हैं। सच्चर कमेटी की सिफारिशें अलगाववादी हैं। लिब्रहान आयोग की रपट फर्जीवाड़ा और राष्ट्रीयता पर हमला है। रंगनाथ आयोग संविधान विरोधी मजहबी आरक्षण की सिफारिशें लाया है। न्यायमूर्ति सगीर अहमद जम्मू-कश्मीर को अलग देश बनाने जैसी सिफारिशें पेश कर चुके हैं। राष्ट्रीय जिज्ञासा यह है कि संविधानविद्-न्यायमूर्ति भी तुष्टीकरण के एजेंडे को क्यों बढ़ाते हैं? क्या वे ऐसी सिफारिशें स्वयं लिखते हैं या संप्रग का कोई विशेषज्ञ समूह राजनीतिक दृष्टि से रपट लिखता है और वे हस्ताक्षर करते हैं। सगीर अहमद लंबे अर्से से बीमार हैं। वे कार्यदल के साथ नहीं बैठ पाए। रिपोर्ट केंद्र को देनी थी, लेकिन जम्मू-कश्मीर सरकार को पहुंचा दी गई? इस रिपोर्ट में नेशनल कांफ्रेंस की मागों की शब्दावली है। केंद्र और राज्य संबंधों पर पहले भी तमाम रिपोर्टें बनी हैं। बहुप्रतिष्ठित सरकारिया आयोग की संस्तुतिया देश को याद हैं। क्या इस रिपोर्ट को नेशनल कांफ्रेंस के राजनीतिक इस्तेमाल के लिए ही केंद्र ने तैयार करवाया है?

इस विवादास्पद और अलगाववादी रिपोर्ट के आने और केंद्र द्वारा कश्मीर से लगभग 30 हजार सैनिक बल हटाने का समय लगभग एक है। क्या केंद्र ने स्थानीय सरकार और अलगाववादियों से कोई गुप्त समझौता किया है? क्या पाकिस्तान भी इस खेल में शामिल है। स्वायत्तता की ऐसी ही माग पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीरी क्षेत्र से भी उठी है। हाल ही में पाक अधिकृत कश्मीर के प्रधानमंत्री फारूख हैदर ने भी इस्लामाबाद केंद्रित ‘आजाद जम्मू-कश्मीर काउंसिल’ को असंवैधानिक बताया है। यह काउंसिल कथित आजाद जम्मू-कश्मीर के अंतरिम संविधान 1974 की धारा 21 के अधीन काम करती है। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इसके अध्यक्ष हैं, छह अन्य सदस्य पाकिस्तानी संसद से व बाकी सदस्य स्थानीय होते हैं। दोनों तरफ से समान मागों का एक साथ उठना मात्र संयोग नहीं हो सकता। केंद्र जम्मू-कश्मीर को अंतरराष्ट्रीय विवाद मानने वाली अमेरिका जैसी ताकतों के प्रभाव में है। दोनों कश्मीरी क्षेत्रों को मिलाकर एक नया देश बनाने की गुपचुप तैयारी दिखाई पड़ रही है। ख्वाब यह है कि इस नए राज्य में भारत और पाकिस्तान की साझा मुद्रा भी चलेगी। लेकिन तब संसद द्वारा समूचे कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बताने वाले सर्वसम्मत संकल्प का क्या होगा?

जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। यह महाराजा हरी सिंह के विलय प्रस्ताव से ही भारत का अंग नहीं बना। इस्लामी हमलों के पहले भी यह भारत का अंग था। यहीं उत्तरवैदिक काल में देश के कोने-कोने से आए छह दार्शनिकों ने पिप्पलाद ऋषि से सृष्टि रहस्यों पर तर्क किए थे। इन्हीं प्रश्नों प्रतिप्रश्नों का संग्रह विख्यात दर्शन ग्रंथ ‘प्रश्नोपनिषद्’ है। अभिनव गुप्त का प्रत्यभिज्ञा दर्शन यहीं उभरा। जम्मू-कश्मीर भारतीय संस्कृति, संस्कृत और दर्शन की प्राचीन भूमि है। इसे अलग करने की कोई भी साजिश बर्दाश्त के बाहर होगी। भारत अब और टूटने को तैयार नहीं है। 1947 के रक्तपात और विभाजन के नतीजे यह राष्ट्र अभी भी नहीं भूला। इसका कोई भी भूभाग किसी राजनेता या राजनीतिक दल की जागीर नहीं है। स्वायत्तता और स्वतंत्र राष्ट्र में फर्क करना चाहिए। संविधान निर्माताओं ने अस्थाई अनुच्छेद 370 जोड़कर ही महापाप किया था। सगीर अहमद ने इसी दुखती रग को फिर से छेड़ने की कोशिश की है। संविधान में प्रत्येक राज्य की स्वायत्तता है। ढेर सारे अधिकार हैं। जम्मू-कश्मीर भी एक राज्य है। इसे ज्यादा स्वायत्तता चाहिए तो दीगर राज्य भी ऐसी ही स्वायत्तता का दावा क्यों नहीं कर सकते?

पूर्वोत्तर के राज्यों में आगजनी और बमबाजी है। वे भी तमाम तरह की स्वायत्तता माग रहे हैं। अब तक जम्मू-कश्मीर सहित ऐसे तनावग्रस्त राज्यों की मागे स्थानीय गुटों, दलों द्वारा की जाती थीं, लेकिन इस बार केंद्रीय प्राधिकार भी इस खेल में शामिल है। काग्रेस में इतिहासबोध और भविष्यदृष्टि का अभाव है। पं. नेहरू ने 1948 के कबाइली हमलावरों को खदेड़ती सेना को बीच में ही रोक दिया था। तबसे आज तक वही एलओसी है। वह मसले को संयुक्त राष्ट्र संघ ले गए। शेख अब्दुल्ला इसे स्वतंत्र मुल्क बनाना चाहते थे। पं. नेहरू ने संसद में 26 जून, 1952 कहा था, आप यूपी, बिहार या गुजरात नहीं एक विशेष क्षेत्र पर विचार कर रहे हैं। ऐतिहासिक, भौगोलिक और सभी नजरिए से इस क्षेत्र की भिन्न स्थिति है। इसी सोच और समझौते से अनुच्छेद 370 आया था। शेख अब्दुल्ला इस राज्य के प्रधानमंत्री बने, अलग राष्ट्रीय ध्वज और अलग संविधान भी बना। डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने ‘एक देश में दो विधान, दो प्रधान, दो निशान’ के विरोध में आंदोलन किया। वे शहीद हो गए। अमरनाथ भूमि विवाद को लेकर हुआ जबर्दस्त आंदोलन अभी ताजा है।

क्या स्वायत्तता और आजादी पर्यायवाची हैं? जम्मू-कश्मीर विधानसभा का स्वायत्तता प्रस्ताव गौरतलब है कि अनुच्छेद 370 के पहले दर्ज ‘अस्थाई’ शब्द हटाइए और इसकी जगह ‘विशेष’ लिखिए। अनुच्छेद 324- निर्वाचन आयोग के अधिकार इस राज्य में हटाइए। अनुच्छेद 355- केंद्र द्वारा राज्यों को निर्देश के अधिकार, 356- राज्य सरकार की बर्खास्तगी के साथ ही 357, 358 और 360 भी यहा लागू न हों। सर्वोच्च न्यायालय की अधिकारिता इस राज्य से समाप्त कीजिए। इसी तरह के ढेर सारे संवैधानिक उपबंधों के साथ ही संसद द्वारा बनाए गए कानूनों की सर्वोपरिता (अनुच्छेद 254) से भी इस राज्य को मुक्त किए जाने की माग ‘स्वायत्तता’ है। सगीर अहमद की सिफारिशें इसी स्वायत्तता की पैरोकार हैं। प्रधानमंत्री जी कृपया बताइए कि संविधान आधारित स्वायत्तता व स्वतंत्र राष्ट्र में फर्क क्या है? वे स्वायत्तता के नाम पर आजाद मुल्क माग रहे हैं और आप इसे स्वायत्तता बता रहे हैं।

[हृदयनारायण दीक्षित: लेखक उप्र सरकार के पूर्व मंत्री हैं]

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