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पाकिस्तान की निष्क्रियता

संपादकीय ब्लॉग
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भारत में बौद्धिक वर्ग के सम्मेलनों तथा मीडिया में यह आग्रह किया जा रहा है कि नई दिल्ली को पाकिस्तान के साथ समग्र बातचीत फिर से आरंभ करनी चाहिए। ज्यादातर पाकिस्तानी नेताओं की भी यह राय है कि भारत बातचीत की शुरुआत न कर आतंकियों के हाथ ही मजबूत कर रहा है और यदि द्विपक्षीय वार्ता फिर से आरंभ होती है तो इससे पाकिस्तान में लोकतांत्रिक सरकार को मजबूती मिलेगी। जब यह अभियान चल ही रहा है तो श्रीनगर के लाल चौक में एक होटल पर आतंकी हमला हो गया। इस हमले के दौरान भारतीय सुरक्षा अधिकारियों को हमलावरों तथा पाकिस्तान में बैठे उनके आकाओं के बीच बातचीत सुनने में सफलता मिली। हाल के समय सीमा पर पाकिस्तान की ओर से घुसपैठ की घटनाओं में भी वृद्धि हुई है। पाकिस्तान में डेविड कोलेमन हेडली तथा लश्कर-ए-तैयबा के बीच संपर्क के प्रमाण भी सामने आए हैं। 26 नवबंर के आतंकी हमले में लश्कर के आतंकियों की भूमिका दिन प्रतिदिन साबित होती जा रही है। हाल के समय में स्वयं पाकिस्तान में आतंकी हमलों की बाढ़ सी आ गई है। इसमें संदेह नहीं कि पाकिस्तान आतंकवाद का शिकार है, लेकिन यह वहां की सेना और आईएसआई द्वारा आतंकवाद को विदेश नीति के उपकरण के रूप में इस्तेमाल करने का परिणाम है। आज केवल भारत ही नहीं, बल्कि अमेरिका भी लश्कर के निशाने पर है। इसी कारण अमेरिका पाकिस्तान पर आतंकी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई तेज करने का अभियान छेड़े हुए है। आतंक के खिलाफ संघर्ष को लेकर पाकिस्तान की प्रतिक्रिया स्पष्ट नहीं रही है-सिवा इसके कि उसने पाकिस्तानी तालिबानी के खिलाफ कुछ सख्ती दिखाई है। दूसरी ओर भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर में सैन्य बलों में कटौती कर सद्भावना का परिचय दिया है। उसने सैन्य बलों के आकार की आगे भी समीक्षा करने का भरोसा दिलाया है।

कुछ दिनों पहले तक पाकिस्तान में राष्ट्रपति पद पर आसिफ अली जरदारी के बने रहने को लेकर काफी अनिश्चितता उत्पन्न हो गई थी, लेकिन फिलहाल संदेह के स्वर थमते नजर आ रहे हैं। समस्याग्रस्त दो राष्ट्रों के बीच बातचीत हमेशा स्वागत योग्य होती है, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि मौजूदा स्थितियों में बातचीत फिर से आरंभ होने को आतंकवाद का इस्तेमाल करने की नीति के विजय के रूप में चित्रित किया जा सकता है। मनमोहन सिंह ने बार बार भरोसा दिलाया है कि यदि पाकिस्तान आतंकवाद को विदेश नीति का हिस्सा बनाना बंद कर देता है तो उसके साथ बातचीत फिर से शुरू कर दी जाएगी। यह सहज समझा जा सकता है कि पाकिस्तान सार्वजनिक रूप से ऐसी घोषणा करने की स्थिति में नहीं है, लेकिन उसे अपनी ईमानदारी का कुछ प्रदर्शन तो करना ही चाहिए। उदाहरण के लिए भारत की ओर से यह शिकायत की जा रही है कि पाकिस्तान में मुंबई हमले के संदर्भ में अदालती कार्रवाई सही तरह आगे नहीं बढ़ रही है। कोई भी समझ सकता है कि मुकदमे के नाम पर पाकिस्तान नाटक करने में लगा हुआ है। पाकिस्तान के कानून में तो आतंकी हमलों के त्वरित निस्तारण तथा दोषियों को दंडित करने के प्रावधान हैं, लेकिन बदनीयती के चलते उनका पालन नहीं हो पाता। पाकिस्तान में एक ऐसी सरकार है जिसने बेनजीर भुट्टो की हत्या की संयुक्त राष्ट्र जांच की मांग की थी, लेकिन अब वह संयुक्त राष्ट्र जांच दल को काम करने की अनुमति देने से इंकार कर रही है। ऐसी सरकार की आतंकवाद से लड़ने के संदर्भ में क्या विश्वसनीयता हो सकती है? चूंकि पाक में सेना अभी भी अंतिम नीति निर्माता है इसलिए आतंकवाद विरोधी अभियानों पर सेना के रुख का आकलन करना जरूरी है। इस मामले में अगले तीन महीनों में कुछ नतीजे सामने आने के आसार हैं, क्योंकि अमेरिकी सेना अफगानिस्तान में अपनी कार्रवाई तेज कर रही है। अमेरिका खुफिया सूचनाएं एकत्रित करने तथा आतंकी ठिकानों पर हमले करने में और अधिक आक्रामक रवैया अपनाने जा रहा है। यह स्वाभाविक है कि अमेरिका की यह आक्रामकता अफगान और पाकिस्तानी तालिबान के खिलाफ समान रूप से सामने आएगी और तब पाकिस्तानी सेना के लिए सच का सामना करना मुश्किल होगा। यह देखना होगा कि पाकिस्तानी सेना आतंकी ताकतों से निपटने में अमेरिका का कितना साथ देती है? जैसे हालात हैं, उसमें भारत में आतंकीतत्वों की सक्रियता बढ़ सकती है। ऐसा लगता है कि पाकिस्तानी सेना जुलाई 2011 का इंतजार कर रही है जब ओबामा अफगानिस्तान से अपनी सेनाएं वापस बुलाने की शुरुआत करेंगे।

अब यह स्पष्ट है कि पाकिस्तान न केवल आतंकवाद को भारत और पाकिस्तान के बीच अप्रत्यक्ष युद्ध का जरिया बनाए हुए है, बल्कि वह इसकी मदद से दोनों देशों के बीच बातचीत के ढांचे को भी प्रभावित कर रहा है। समस्या यह भी है कि पाकिस्तान में लोकतांत्रिक सरकार होने के बावजूद नीति-निर्माण का अधिकार न तो राष्ट्रपति के हाथों में है और न प्रधानमंत्री के हाथों में। पाकिस्तान जब तक आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के मामले में अपनी विश्वसनीयता के कुछ प्रमाण नहीं देता तब तक उसकेसाथ बातचीत करने का कोई आधार नहींबनता। हमें अगले कुछ माह में यह देखना होगा कि पाकिस्तानी सेना अमेरिका द्वारा सूचीबद्ध पांचों आतंकवादी संगठनों के खिलाफ किस तरह की कार्रवाई करती है?

[के. सुब्रह्माण्यम: लेखक रक्षा एवं विदेश मामलों के विशेषज्ञ हैं]

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