Menu
blogid : 133 postid : 3

भाजपा को गांव-गांव जनता से जुड़ना होगा

संपादकीय ब्लॉग
संपादकीय ब्लॉग
  • 422 Posts
  • 640 Comments

IND2480Bराष्ट्रीय राजनीति के लिए नए नितिन गडकरी ने भाजपा की कमान उस समय संभाली है जब पार्टी अपनी अंतर्कलह से जूझ रही है। मगर उनके शब्दकोश में असंभव शब्द नहीं है। गडकरी आडवाणी की तरह किसी यात्रा पर तो नहीं निकलेंगे, लेकिन उनका स्पष्ट मानना है कि दिल्ली में बैठकर राजनीति नहीं हो सकती है, उसके लिए गांव-गांव जाना होगा। गडकरी कहते हैं कि पार्टी में कोई भी वापस आ सकता है। दैनिक जागरण के विशेष संवाददाता रामनारायण श्रीवास्तव के साथ खास मुलाकात में गडकरी ने अपनी भावी रणनीति का खुलासा किया। प्रस्तुत हैं उनसे चर्चा के अंश-
आपने अध्यक्ष रहते हुए कोई चुनाव न लड़ने का फैसला क्यों किया?
जब मैं दूसरों से कहूंगा कि आप केवल चुनाव के बारे में मत सोचिए, समाज, देश गरीबों के बारे में सोचिए तो मुझे वह नैतिक अधिकार तभी होगा जब मैं कोई पद नहीं लूंगा। इसलिए मैने तय किया कि जब तक अध्यक्ष रहूंगा, कोई चुनाव नहीं लड़ूंगा।
क्या आपने अपने लिए कोई लघुवधि या दीर्घावधि एजेंडा तय किया है?
अभी जब नए पदाधिकारी चुन कर आएंगे, उनके साथ बात करके तय करूंगा। हालांकि मोटे तौर पर मेरा मानना है कि हमें अपना वोट कम से कम दस फीसदी और बढ़ाना चाहिए। इसके लिए दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक वर्गो तक पहुंच और बढ़ानी होगी। जिन लोगों के मन में कांग्रेस ने हमारे बारे में गलत धारणा बनाई है, उनको जोड़ेंगे। जहां तक राज्यों की बात है, तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, हरियाणा में और ज्यादा काम करने की जरूरत है।
कैसे काम करेंगे?
मेरा रिकार्ड रहा है कि जो काम हाथ में लिया है उसे पूरा किया है-भले ही वह कितना भी कठिन क्यों न हो। असंभव शब्द मेरे शब्दकोश में नहीं है। सब कुछ संभव है। राजनीति समाज के लिए, राष्ट्र के लिए हो। बाकी जनता तय करेगी। मैं इसके लिए ही काम कर रहा हूं। मैं अपना काम करना चाहता हूं। मुझे विजय की चिंता या पराभव का दुख नहीं है।
उत्तर प्रदेश में पार्टी की हालत सबसे कमजोर है, आप क्या करेंगे?
अभी उत्तर प्रदेश के बारे में कोई टिप्पणी करना उचित नहीं होगा, मैं वहां के सभी नेताओं से मिल रहा हूं, चर्चा कर रहा हूं। दो सप्ताह बाद केवल उत्तर प्रदेश के लिए ही बैठने वाला हूं। हम लोग सोचकर, समझकर व मिलकर आने वाले दिनों में उत्तर प्रदेश में काफी कुछ ठीक करेंगे। मैं खुद उत्तर प्रदेश का दौरा करूंगा, पदाधिकारियों से मिलूंगा, चिंतन करूंगा, फिर जिले-जिले में जाऊंगा। विचारधारा व सिद्धातों पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं को आगे बढ़ाया जाएगा। इस पर मैं विशेष ध्यान दूंगा। वहां पर काम बढ़ाकर दस फीसदी वोट बढ़े, यह मेरी कोशिश रहेगी।
झारखंड में भाजपा ने सरकार बनाने के लिए क्या विचारधारा से समझौता नहीं किया?
मुझे यह बताइये कि कांग्रेस को वाम दलों ने समर्थन दिया था तो क्या विचारधारा मेल खाती थी? पश्चिम बंगाल व केरल में विरोध है, लेकिन केंद्र में समर्थन किया। झारखंड में परिस्थिति ऐसी निर्मित हुई कि कांग्रेस पार्टी चाहती थी कि वहां पर राष्ट्रपति शासन लागू हो जाए। उन्होंने छोटे-छोटे दलों को भी तोड़ने की कोशिश शुरू कर दी थी। उस स्थिति में हमने झारखंड की जनता को एक स्थिर व अच्छी सरकार देने की सोची।
क्या यह सिद्धांतों, विचारधारा से समझौता नहीं है?
किसी पार्टी के साथ गठबंधन सिद्धांतों के साथ समझौता नहीं होता है। शिबू सोरेन को दाग किसने लगाया? उन्हें पैसा देने का काम किसने किया? उनके मामले जो हैं वह अदालत फैसला करेगी। उन्हें जनता ने चुना है। राजनीति राजनीतिक सहमति से होती है।
पार्टी के बड़े नेताओं में मतभेद व मनभेद मुखर हैं, कैसे रोकेंगे?
पार्टी के जो भी सवाल हैं और मत भिन्नता है उसकी चर्चा पार्टी मंच पर हो, मीडिया में नहीं। पहले जब मीडिया में चर्चा होती थी तो मुझे दुख होता था। मैं कोशिश करूंगा कि मीडिया में ऐसे विषय न जाएं। इससे पार्टी की छवि खराब होती है। मतभेद हो सकते हैं, लेकिन मनभेद खत्म होने चाहिए। मुझे विश्वास है कि आने वाले समय में सभी मनभेद भुलाकर पूरी तरह एकजुटता से काम करेंगे।
पार्टी से बाहर गए नेताओं की वापसी करेंगे क्या?
इनमें किसी ने अभी कोई इच्छा व्यक्त नहीं की है। अगर करेंगे तो पार्टी के राष्ट्रीय नेता राज्यों से चर्चा कर उनके बारे में विचार करेंगे।
क्या जसवंत सिंह भी पार्टी में वापस आ सकते है?
कोई भी आ सकता है।
पहल किधर से होगी?
अभी देखिएगा आगे-आगे होता क्या है। मेरा प्रयास है कि जितने लोगों को मैं जोड़ सकता हूं, जोड़ने की कोशिश करूंगा। उसके लिए आम राय बनाऊंगा। आम राय बनाकर उनको साथ लाने की कोशिश करूंगा।
‘पार्टी विद डिफरेंस’ कहां भटक गई है?
देखिए मैं बीती बात नहीं करूंगा। मैंने सबको एक बात कही है। मैं पार्टी की विचारधारा के लिए संगठन के लिए काम करना चाहता हूं। मैं पूर्वाग्रही नहीं हूं। सबको सम्मान के साथ लेकर चलूंगा। एक ताकतवर पार्टी बनाऊंगा, यह मेरा आत्म विश्वास है, अहंकार नहीं।
दिल्ली के पार्टी की दूसरी पंक्ति के बड़े नेताओं के बीच आपको ही अध्यक्ष के लिए क्यों चुना?
वह तो आप ही बता सकते हैं। मैं तो संगठन का सिपाही हूं। जो काम पार्टी ने बताया, मैं कर रहा हूं।
आरएसएस की कितनी भूमिका है?
आरएसएस से मेरा बहुत कम संबंध रहा है। मैं पहले विद्यार्थी परिषद में था। इस पद के लिए मुझे पहले आडवाणी जी ने और बाद में राजनाथ सिंह ने कहा।
अब संघ का कितना हस्तक्षेप होगा?
संघ भाजपा में कोई निर्देश नहीं देता है। वह देश व समाज के लिए अच्छा काम करने को कहता है। वह यह कभी नहीं कहता है कि इसे टिकट दो, उसे मत दो।
राजग में विचारधारा को लेकर टकराव है, उसे कैसे मजबूत करेंगे?
राजग में किसी के साथ कोई दिक्कत नहीं है। घर-परिवार में भी थोड़ा बहुत झगड़ा चलता रहता है। इसका मतलब यह तो नहीं कि तलाक हो जाएगा?
क्या आप भी पार्टी को मजबूत करने के लिए आडवाणी की तरह किसी यात्रा पर निकलेंगे?
मैं पहले राष्ट्रीय परिषद में विधिवत चुनाव होने के बाद और नई टीम बनाने के बाद सभी राज्यों का दौरा करूंगा। साथ ही जितने मेरे पदाधिकारी हैं, उनसे कहूंगा कि आठ से दस दिन दिल्ली से बाहर जाएं, कार्यकर्ताओं से मिलें, जनता से मिलें। दिल्ली में बैठकर या मीडिया में बोलने से काम नहीं हो सकता है। दिल्ली से बाहर चलो, गांव की ओर चलो। मै भी दौरा करूंगा और आप भी जाओ।
शिवसेना के साथ संबंधों में खटास आई है?
कोई खटास नहीं है। हमारी समस्या मीडिया है। बाल ठाकरे से बात हुई है, ऐसी कोई बात नहीं है और राज ठाकरे के साथ जाने का तो कोई सवाल ही नहीं है। हमें जाति, पंथ, धर्म व भाषा की राजनीति नहीं करनी है।
[भाजपा के भावी पथ के संदर्भ में जागरण के सवालों के जवाब दे रहे हैं पार्टी प्रमुख नितिन गडकरी]

Tags:         

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply to राम कुमार पांडेयCancel reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh